Today's fashion & earliest fashion
आज के फैशन और शुरुआती फैशन के बीच अंतर। Difference between today's fashion and earliest fashion ?
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फैशन ऐसी प्रक्रिया है। जो चक्र के तरह घुमता रहता है । फैशन शुरू से लेकर अब तक जितने भी पहनावे देखने को मिल रहे हैं फैशन चक्र की तरह घूम फिर के बाजार में लोगों के सम्मुख प्रस्तुत करते है नए रूप में। फैशन हर समय बदलता रहता है। बात रहा आज की फैशन व शुरुआती फैशन के बीच अंतर जानना ।
शुरुआती फैशन वह फैशन है। जो सभ्यता व संस्कृति से परिपूर्ण होता है । और आज के फैशन में लज्जा हीन फुहड़ता देखने को मिलता है। आज हम इस आर्टिकल में आज के फैशन शुरुआती फैशन के बारे में जानेंगे।
आज के फैशन व शुरुआती फैशन के बीच बहुत से अंतर देखने को मिलते हैं सभ्यता के विकास के साथ साथ फैशन में भी आश्चर्यजनक परिवर्तन होते हुए। यह परिवर्तन और फैशन 400 B.C (before Christ) से माना जाता है। तथा 12वीं सदी से ही फैशन की अच्छी शुरुआत हुई । उस युग से ही प्राचीनतम वस्त्र विज्ञान की धारा में एक परिवर्तन हुआ जिसे मध्यकालीन युग के फैशन में एक नई शुरुआत मानी जाती है। इससे पहले लोग फैशन कपड़ों से ज्यादा पेड़ पत्तों के पहनावे से दिखाते थे धीरे-धीरे परिवर्तन होता गया और फैशन नए-नए रूप लेते गए। देखा जाए तो मध्यकालीन युग के फैशन में एक नई शुरुआत मानी जाती है उस काल में स्त्री पुरुष ही डबल ट्यूनिक पोशाक समीज जिसकी लंबी बाजू तथा हाई नेक पहना करते थे। साथ ही उन्हें ओवर ट्यूनिक भी होती थी जिसकी बाजूए ढीली होती थी जिसका प्रयोग सर्दी के मौसम में किया जाता था।
उसके बाद फैशन के तौर-तरीके दिन पर दिन बढ़ता गया और पहनावे में परिवर्तन होता गया 12वीं सदी में एक खास तरह से fine fabric पूर्वी देशों से आई थी, उसी से यूरोप में बहुत ऊंचे स्तर elegant पोशाके बनाई जाने लगी । फैशन की शुरुआत मध्यकाल से हुई इससे पहले कि सदी में लोग पत्ते व कपड़े का उपयोग बस शरीर पर लपेटने के लिए करते थे आज हम फैशन और कपड़े की इतिहास पर रोशनी डालते हैं कि किस काल में किसने कौन सी चीज को चालू किया और किस काम में तरक्की की जो इस प्रकार है।
1. आर्य काल
2. मध्यकाल
3. मुगल काल
4. ब्रिटिश काल
5. आधुनिक काल
अब हम जानेंगे शुरू से लेकर अब तक के फैशन में परिवर्तन और अंतर के बारे में कि किस तरह से शुरुआती फैशन और आज के फैशन में अंतर देखने को मिले।
1. आर्यकाल :- संसार के बनने से पहले यह धरती एक आग का गोला था दूसरी जो चीज दिखाई देती थी वह सिर्फ पानी था। जब आदमी जाति की शुरुआत हुई तो लोग नंगे ही फिरते थे। यही नहीं फिर धीरे-धीरे वही आदमी दिमाग का इस्तेमाल करने लगा बीज का पता लगाने, जिसको बीज कर समय अनुसार उसमें से एक मोटी तार निकाली जा सके जिससे कपड़ा तैयार होने लगा। इसी प्रकार और प्रगति हुई जिससे इंसान ने रेशम के कीड़े पालकर रेशम तैयार किया। इस युग में बहुत उन्नति हुई इस युग में धोती पहनने का रिवाज था, अंगिया भी डाली जाती थीं। इस युग में कपड़े सिलाई होने शुरू हुए इस काल को राम और कृष्ण का युग भी कहा जाता है। उनकी मूर्तियां अथवा पुरानी शिलाओ से पता लगता है कि आदमी सिर्फ धोती पहनकर अपने शरीर को ढक लेते थे और स्त्रियां धोती के साथ अंगिया पहनती थी। इसलिए इस काल में फैशन का कोई खास प्रचार नहीं हुआ। धोती और अंगिया ही डाली जाती थी जो बिना सिलाई के पहनी जाती थी अंगिया भी एक छोटी सी पट्टी लेकर छाती के अगले हिस्से खोलकर और पिछली तरफ उसी कपड़े को गांठ लगा दी जाती थी।
2. मध्यकाल (Medieval period) :--
इस काल को स्वर्ण युग या सोने का युग कहा जाता है इस युग को उन्नति का युग कहा जाता है इसमें पूरातनता को सामने रखते हुए नयापन पैदा किया गया । यही युग है जिसमें मनुष्य ने जीना सिखा सभ्यता की ओर कदम बढ़ाएं और बनाने के लिए भी कपड़ा अच्छा डालने लगा अधिकतर लोग चोला ही पहनते थे या लंबे-लंबे चोगा । अंगरक्खा पट्टीयों का बना होता था। यह वह ड्रेस है जो आज तक लोग राजस्थान में डालते हैं। नेपाली लोग तो बहुत ही इस प्रकार की ड्रेस पहनते हैं इस ड्रेस की अंदाजे से ही सिलाई की जाती थी। आर्य लोग बिना सिलाई के कपड़े डालते थे परंतु यह पट्टीयों को हाथ से ही जोड़कर और चोला भी सीधे डालकर बनाया जाता था। कपड़े अंदाजे से ही काट लिए जाते थे और सिर्फ शरीर ढकने लग पड़े थे। फिटिंग का सवाल ही पैदा नहीं होता था। जिस प्रकार का कपड़ा तैयार हुआ उसी तरह का ही अच्छा लगने लग जाता था। परंतु इस युग में उन्नति बहुत हुई। कढ़ाई भी थोड़ी बहुत इसी युग में चली इस प्रकार इस युग को स्वर्ण युग कहा जाता है इससे आगे चलकर भी इस काल में बहुत उन्नति हुई।
3. मुगल काल ( Mughal period) :- -
1627 ई. मैं मुगलों का आगमन हुआ यह लोग ईरान और अफगानिस्तान से होते हुए पंजाब आए ठंडे देश के रहने वाले थे इसलिए यह लोग चूड़ीदार पजामा से ढींगरी कट पजामा, बंद गले का कुर्ता प्रयोग करते थें। महिलाएं भी बुर्का पहनती थीं। इसका पंजाब के लोगों पर भी असर पड़ा ऊपर का बुर्का नहीं लिया परंतु बाकी कमीज सलवार की ड्रेस जरूर ले ली। ऊपर दुपट्टा लेने लगे। मुसलमान तो चाहे बुर्के में से निकलकर बेल बाटम और शर्ट पर आ गए, परंतु पंजाब में तो अभी भी लड़कियों को विशेषकर गांव के लोग सिर के ऊपर अच्छी तरह चुन्नी ओढ़नी लेने को कहते हैं। इनके आने से ही परदे की रस्मे शुरू हुई। मुगलों कपड़ा पहनना अच्छी तरह जानते थे वह तंग पजामी और खुला कुर्ता शौक से पहनते थे। इस युग में भी इन पर गिरह का पता नहीं था फिर भी अंदाजे से फिटिंग रखी जाती थी। मुगल काल में बहुत उन्नति हुई। मुगल काल में सोने का प्रचार पहले से ही शुरु था और इन लोगों के कपड़ों पर सोने का बटन लगाए जाने लगे। वैसे तो यह सब कुछ स्वर्ण युग में हुआ। पर इस युग में सोने चांदी के तारों से कढ़ाई होने लगी सलमा तिल्ले का इस्तेमाल होने लगा। उनकी पोशाक के ऊपर सलमे और तिल्ले का प्रयोग किया जाने लगा। लोग कुर्ते कढ़ाई किए हुए या बंद गले की शेरवानी पहन कर और मुंह में पान रखना ही शान समझते थे। उस समय से ही यह मलमल चली थी जिसको कहा जाता है कि एक अंगूठी में से पूरा पूरा थान निकल जाता था। इससे यह तात्पर्य यह है कि बहुत बारीक कपड़ा बना। इसको ढाके की मलमल भी कहा जाता है इस काल में लोग कपड़ा बनाना सीख गए थे और सिलाई किया हुआ और कढ़ाई किया हुआ कपड़ा पहनते थे। इस साल से लोगों ने कढ़ाई सिलाई सीखी ।
4. अंग्रेजों का काल (British period) :--
अंग्रेज लोग सबसे पहले भारत में व्यापार करने आए थे उस समय मुगलों का पूरा बोलबाला था उस समय अंग्रेजों ने 1600 ई. में East India Company की स्थापना की। उस समय अंग्रेजों ने कारखानों में अपने मजदूर रखे जो पराया भारतवासी ही थे । इन वर्दीयो को इंग्लैंड से बनाकर लाया करते थे। ड्रेस डालकर भी बहुत चुस्त दिखाई देते थे प्रत्येक भारतीय जो उनका नौकर था वर्दी डालने पर मजबूर था। परंतु बाद में यह उनका शौक बन गया। वर्दियां डालकर कहीं आना जाना अपनी शान समझने लगे और यही शान उनका फैशन बन गया तथा प्रत्येक हिंदुस्तानी अंग्रेज बनने की कोशिश करने लगा। यदि देखा जाए तो फैशन की अच्छी प्रकार से शुरुआत अंग्रेज के जमाने में हुई। यह वह युग आ गया था जो हाथ से सिलाई ना कर के मशीन से काम शुरू हो गया था तब सिलाई होने लगी जब अंग्रेजों द्वारा सिलाई की मशीन भारत में लाई गई। इन मशीनों को लेकर आने से अंग्रेजों को दो लाभ हुए एक तो यह मशीनों की बिक्री बहुत हुई दूसरा उनका समय बहुत बच गया क्योंकि पहले उनको इंग्लैंड जाकर कपड़े लाने पड़ते थे और अब भारत में ही रेडीमेड कपड़े लेने लगे। वह जमाना आ गया था कि दिनों का काम एक दिन में होने लगा और दिन का काम घंटों में होने लगा हाथ से वह सफाई नहीं आ सकती जो मशीन से आती है। अंग्रेजों की ड्रेस में बहुत फर्क था जबकि पहले कोई भी पैंट शर्ट नहीं पहनता था। अंग्रेजों ने ही हर एक को पैंट डालना सिखा दिया। अंग्रेजों की पोशाक कोट, पेंट, कमीजे, हाफ कोट, हाफ पेंट आदि थी और औरतों की ड्रेस भी वही थी। परंतु भारत में औरतों ने एक ड्रेस पहले परदे की ले ली थी और अंग्रेजों की ड्रेस का औरतों पर कोई असर नहीं पड़ा। आदमी भी अंग्रेजों के दफ्तरों में काम करते थे , इस तरह करके उन पर ड्रेस का असर बहुत बढ़ गया और आज तक अंग्रेजों की देन प्रत्येक भारतीय पाकर खुश होता है। सिर्फ कपड़े का ही असर नहीं हुआ बल्कि कपड़े को एक नया रूप दिया जाने लगा। हर कोई कपड़े की फिटिंग करके डालने लगा। कई बड़े घरों की लड़कियां भी स्कर्ट और पेंट डालती थीं इस युग में अनुमान से काम नहीं लिया जाता था इंची टेप चल पड़ा था और गिरह का रिवाज कम हो गया था। इसलिए अब हम यह कह सकते हैं कि साइंस की उन्नति के साथ-साथ उद्योग में भी बहुत उन्नति हुई और सिलाई में बहुत उन्नति हुई । अब हम कह सकते हैं कि कटाई सिलाई फिटिंग और फैशन की जो तरक्की अंग्रेजों के काल में हुई वह किसी काल में भी नहीं हुई। आज भी कपड़े के डिजाइन और कटिंग के वास्तविक फार्मूले दिखने के लिए इंग्लैंड से किताबें मंगवाते हैं और उन पर ही अमल करके अंग्रेज कल आने की पूरी पूरी उम्मीद रखते हैं।
5. आधुनिक काल (Modern period) :-
आधुनिक काल वह काल है जो अब के समय में लोग फैशन को अपनाते हैं। देश को पूर्ण आजादी 15 अगस्त 1947 को मिली। आजादी के साथ-साथ प्रत्येक समुदाय को अपने dress डालने की आजादी मिली है। ये Fundamental rights है कि कोई भी कपड़ा डाली जाए किसी प्रकार की भी जिंदगी जिए, परंतु आजादी के साथ साथ अंग्रेजों की ड्रेस में भारत के dress का भी हिस्सा पाया गया अर्थात शुद्ध अंग्रेजी ड्रेस नहीं डालते। यह देखने में आया है कि आजादी के बाद प्रत्येक को आजादी मिली तो नयेपन की जगह पुरानेपन ने ज्यादा पैर रखा। प्रत्येक ने अपने पूर्वजों के पद चिन्हों पर ध्यान दिया औरतें साड़ी ब्लाउज और मर्द धोती कुर्ता पहनते थे। ऐसे ही करके यह ड्रेस हिंदुस्तानी ड्रेस बन गई। परंतु हमारे नेशनल ड्रेस खादी की है, जो हमारे देश में हाथ की खड्डी से बनाई जाती है। विशेषकर नेताओं की ड्रेस खद्दर अथवा खादी की है, चाहे खद्दर डिपो का खद्दर नहीं होता और कम से कम ₹200 मीटर का खद्दर है। फिर भी वे सादगी नजर आते हैं। देश आजाद होने के बाद खद्दर गांधीजी ने चलाया था, वह हाथ का बना खद्दर होता था और उन्होंने आम जनता जैसा ही खद्दर डाला। परंतु आज खद्दर बहुत superior quality का बनने लग पड़ा है और वह खद्दर तो नाम का खद्दर ही है। इस खद्दर की गांधी टोपी, जवाहर जैकेट यह सभी नेशनल ड्रेस में आते हैं। खद्दर वास्तव में ही एक ऐसी ड्रेस है जिससे प्रत्येक इंसान अच्छा लगता है। आज हर प्रकार की शीघ्र से शीघ्र बनने वाले ड्रेस की प्रबंध हो चुके हैं। परंतु यह ध्यान देने योग्य बातें हैं कि Golden period मैं ड्रेस असली बनने लगी और वह असली ही आज नकली रूप लेकर सुंदरता का उभार बन चुकी है। आज चाहे देश प्रगति पर है परंतु कोई भी असली चीज नहीं है। बाल की खाल उतारी जाती है और नई से नई नकली चीज बनाई जाती है। देखा जाए तो प्रत्येक मनुष्य के कपड़ों को देखकर ही अंदाजा लगा लिया जाता है कि यह कितने पानी में है। ड्रेस से ही इंसान की स्मार्टनेस का पता चलता है। आज वही भारत है जिसकी चप्पे-चप्पे पर ऑटोमेटिक मशीन का प्रयोग किया जाता है परंतु आज प्रत्येक मनुष्य पुराने ख्यालों को छोड़कर नवीनता प्राप्त करने की कोशिश करता है। यह सब जो नया निकाला जाता है किसी न किसी जमाने की देन होती है। वर्तमान युग में यदि छोटे बच्चे के कपड़ों की ओर ध्यान दें तो यह विभिन्न प्रकार के तैयार रेडीमेड ऋतु के अनुसार मिलते हैं सर्दियों के गर्म सूट, जीन सूट, सफारी सूट, खिलाड़ी सूट और ऊनी कई प्रकार के सूट। जो लड़कियां अथवा बच्चियां है उनके लिए कई प्रकार की स्कर्ट , मैक्सी और फ्रॉके आदि । स्त्रियों और नौजवान लड़कियों में जहां फैशन की दौड़ है , वहां हमारे नौजवान लड़के और आदमी भी इस दौड़ में पीछे नहीं है। वह भी नए डिजाइन के extraordinary कपड़े डालने में अपनी शान समझते हैं। नई डिजाइन की कपड़ों में फैंसी मैचिंग कपड़े फूल एवं बेल बूटे, वाले कपड़े और अन्य 'A' cut फैंसी कपड़े, हैं। इन पर कई प्रकार के बेल बूटे कढ़ाईया अलग-अलग प्रकार के डिजाइन बनाए जाते हैं ताकि इनको डालकर वे अपनी बनावट को और आकर्षक बना सके। इस समय भारतीय कपड़े और डिजाइन इतनी तरक्की कर चुकी है कि उनकी मांग इंटरनेशनल स्तर तक पहुंच चुकी है भारतीय ड्रेस और सिलाई की हर एक स्तर पर शान और कीमत है।
देखा जाए तो आज के फैशन में औरतों की टांगों का खुला प्रदर्शन फैशन में आ गया है इस समय मैचिंग का बहुत प्रचलन हो गया है। जूते व कपड़ों के रंग एक जैसे लिए जाने लगे है। 21वीं सदी जो कि आज चल रही है इस समय मिनी स्कर्ट घुटने तक की स्कर्ट के साथ स्टॉकिंग का रिवाज है। आप भी फ्रिली बनने लगी। उन पर लैस का भी प्रयोग किया जाता है। पुरुषों में पैंटस, जींस, हाफ पैंट का चलन है साथ में टीशर्ट या स्लीवलेस टी-शर्ट का फैशन है। ट्राउजर के साथ कलर वाले शर्ट ऑफिसों में पुरुषों में खास पहनावा है। सर्दियों में सूट का भी फैशन हैं। इस प्रकार सदियों पर सदीयां बीतती रही हैं । समय तथा युग की मांग तथा अपनी सहूलियत के अनुसार व्यक्ति वस्तु का चलन बदलता है यह सदियों से ऐसे ही चली आ रही परंपरा है। आज के फैशन में हमें देखने को मिलता है पुराने पहनावे को नए रूप में प्रस्तुत करते हैं लोगों के सम्मुख।
दोस्तों आज हमने जाना शुरू से लेकर आज तक के फैशन के बीच अंतर अगर आपको हमारी यह आर्टिकल अच्छी लगी हो तो पोस्ट को शेयर जरूर करें।
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