Fashion
What is fashion ? फैशन क्या है ?
:--- Introducation
फैशन का संसार बहुत बड़े पैमाने पर प्रतियोगी है वह भी विशेष रूप से उच्च कोटि का फैशन जो प्रायः सिने स्टार या मॉडल से फैलता है इसके अतिरिक्त अभिजात्य वर्ग द्वारा अपनाया जाने वाला फैशन है।
फैशन डिजाइनर इन परिधानों में ऐसी कला का प्रदर्शन करते हैं जो देखने वालों को मोहित कर लेती है। इन परिधानों को धारण करने वाले इनको पहन कर उनकी कला का अर्थात फैशन का भरपूर प्रदर्शन करते हैं जिसे देखकर लोग उसी फैशन के दीवाने हो जाते हैं फैशन का काम है आदमी औरत व बच्चों के कपड़े उनके शरीर के अनुरूप बनाना तथा डिजाइन करना।
डिजाइनर अपने क्लाइंट की आवश्यकता को जानकर ही कपड़े डिजाइन करता है एक डिजाइनर latest trends, market conditions, weather, fitting, style, texture, size , material को अच्छी प्रकार जानता है ड्रेस बनाने के तरीके sketching, shaping the patterns आदि जो सब क्रियाएं वस्त्र बनाने में प्रयोग होती है फैब्रिक का ज्ञान बिव ( weave) , drapping qualities, material, colour और design आदि सब का महत्व समझता है।
Personaltiy of Designer :---
इन डिजाइनरों को अपनी artistic और creative ability, sketch के द्वारा प्रकट करने आना चाहिए चाहे कोई डिजाइनर ब्रिलियंट हो या ना उसे कलर, shades व stones के द्वारा draping अच्छी तरह आनी चाहिए। उसे टेक्सटाइल को use करना आना भी जरूरी है। परिधान को परखने का ज्ञान होना भी जरूरी है।
Fashion designer को fashion conscious भी होना जरूरी है। मार्केट का पूरा ज्ञान भी जरूरी है। एक designer को फैशन में अंतरराष्ट्रीय स्तर के फैशन का ज्ञान भी तथा फैशन बुक्स को पढ़ना भी आना चाहिए। उसको ऐड गैलरी भी समय-समय पर विजिट ( visit ) करनी चाहिए ताकि उसके कामों में नवनीता रहे।
Basic tailoring skills जैसे कटिंग टेलरिंग, draping , embroidery आदि का पूरा ज्ञान होना चाहिए। डिजाइनर को यह भी ज्ञान होना चाहिए कि किस फैब्रिक से कौन सा परिधान बनता है।
Design Department :-
Manufacturing unit का काम बड़े पैमाने पर होता है अतः उसकी जानकारी होना जरूरी है।
उसके नीचे डिजाइनर ,कटर, sketch बनाने वाले, कटिंग के असिस्टेंट आदि होते हैं :--
Sketching assistant हमेशा टेक्निकल स्केच बनाते हैं।
Junior designer पहला पैटर्न काटते हैं मुख्य डिजाइनर को इनको हैंडल करना आना जरूरी है।
Marketing and Merchandising :----
फैशन trends अचानक ही बदलते हैं जब भी नया प्रोडक्ट तैयार होता है उसे मार्केट में ले जाने के लिए उसे advertise कराना, sale promotion कराना, उसकी कीमत निर्धारण करना-- यह सब काम marketing branch क्यों करना होता है।
Manufacturing product :---
इस यूनिट का head, production manager होता है। वह उत्पाद की क्वालिटी निश्चित समय में काम पूरा करना कार्य करने वाले का काम खत्म करना आदि सभी जिम्मेदारियों को पूरा करता है। प्रोडक्शन मैनेजर के दायित्व हैं, सभी कार्यों में पैटर्न कटिंग from pattern grading, थानो की layers लगवाना, उन पर मार्केटिंग कराना तथा उन्हें ठीक तरीके से कटिंग कराना, फिर उनको जोड़ना अर्थात सिलाई लगाना। कहने का तात्पर्य है कि इस यूनिट का पूरा कार्य बहुत संजीदगी से देखना पड़ता है ।
Fashion co - ordinators :-
Fashion co-ordinators ही buyers तथा prouction manager के मध्य संबंध बनाते हैं। फैब्रिक का डिजाइन वस्त्र का डिजाइन और कटिंग तथा कटिंग के बाद सारे पार्ट्स ( components ) को जोड़ना फिर dummy पर पहनाकर फिटिंग देखना, की वस्त्र ठीक सिला है या नहीं Co-ordinators यह भी ध्यान रखते हैं की कटिंग में wastage भी कम से कम हो । इसके बाद ही गारमेंट बिक्री के लिए जाता है।
Career prospects :--
भारत में इस व्यवसाय का प्रसार बहुत अधिक हो गया है यहां पर फैशन डिजाइनर का एक बेहतर भविष्य है यदि वह प्रयत्न करता रहे तो 4 या 5 साल में अच्छा डिजाइनर व भी अंतरराष्ट्रीय स्तर का बन सकता है ।
यह है संक्षिप्त फैशन की दुनिया जिसके काम एक दूसरे के Coordinations के सहारे चलते हैं। अब हम फैशन की उत्पत्ति कैसे हुई इसकी जानकारी प्राप्त करते हैं:--
Origin of Fashion.
फैशन की उत्पत्ति
फैशन की उत्पत्ति के विषय में जानने के लिए यूरोप के फैशन की जानकारी सर्वप्रथम ली जाती है यद्यपि यह फैशन सब स्थानों पर ही होता है प्रचलित रहता है किंतु यूरोपीय देशों का नाम फैशन में अधिक आता है भारतीय पोशाकों को प्राचीन पारंपरिक पोशाकों के रूप में जाना जाता है जबकि यूरोप के देश की पोशाक के आज भी कई रूप में बदली जाती है और आज तक उसी प्रकार के प्रचलन में है अतः फैशन की उत्पत्ति का इतिहास जानने के लिए इतिहास के पृष्ठ पर गौर करने की जरूरत पड़ती है।
European Fashion :--
यूरोप में सरकार की नई फैशन व इंटीरियर डेकोरेशन दौड़ शुरू माना जाता है। उस काल में फैशन की नई स्टाइलो का प्रयोग गुड़ियों पर किया जाता था। और प्रचार स्वरूप बाजार में अनेक तरीके से वस्त्र पहनी हुई गुड़िया बिका करती थी। या उपहार आदि देने में यह प्रयोग की जाती थी । धीरे-धीरे इस तरीके में परिवर्तन हुआ । दुनिया की पहली फैशन पत्रिका 1586 में जर्मनी के फ्रैंकफर्ट नामक शहर से प्रकाशित हुई थी। इस पत्रिका के प्रकाशन की फलस्वरुप गुड़ियों पर किए जाने वाला फैशन अब पत्रिका के पृष्ठों में समा गया और फैशन को अब पत्रिका के रूप में जनता में प्रचारित कर दिया गया।
Godey's Lady's Book नाम की एक पत्रिका 1830 में अमेरिका में शुरू की गई थी यह पत्रिका कई वर्षों तक प्रसिद्ध रही । 19वी शताब्दी के मध्य मे पैरिस शहर फैशन की दुनिया में उभरकर सबके सामने आया वहां पर महिलाओं की पोशाके इतनी सुंदर व आकर्षक बनती थी कि सबको बहुत पसंद आई बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में दुनिया में कई नामी डिजाइन अलग-अलग देशों में बहुत मशहूर हुए 1960 में लंदन में फैशन के क्षेत्र में बहुत से परिवर्तन होने से एक फैशन क्रांति सी हुई।
1970 से 1980 में फैशन की दुनिया पारंपरिक फैशन की दुनिया में पारंपरिक फैशन से हटकर एक नया बहाव (trend) आया जिसने फैशन के क्षेत्र में ready to wear अर्थात तैयार पहनाने लायक वस्त्र कपड़ों की मांग इतनी अधिक बढ़ा दी कि मध्य वर्ग का व्यक्ति की फैशन के brands को देखकर खरीदने का अभ्यस्त हो गया। नया बदलाव (trand) आने के बावजूद भी कुछ लोग अपनी प्राचीन पारंपरिक पोशाकों को धरोहर के रूप में अपनाते थे पसंद करते थे। यह प्राचीन तथा नवीन दोनों का सम्मिश्रण करके पहनते थे। 1990 के दशक के बाद से फैशन में वस्त्र उद्योग का बहुतायत उत्पादन अर्थात mass production होने लगा, जिसको सभी बड़े बड़े देशों ने बड़े प्रेम से उपभोक्ता की पसंद के आधार पर अपनाया और तब से आज तक फैशन की जो लहर चल रही है। उसमें प्राचीनता नवीनता के साथ साथ देश की पोशाको के स्टाइलो का सम्मिश्रण ही तो है इसी प्रकार के फैशन के द्वारा संस्कृतियों का भी आदान-प्रदान शुरू हो चुका है।
Fashion cycle
फैशन चक्र
संसार में फैशन का साम्राज्य काफी महत्वपूर्ण माना जाता है जिसको देखिए वही अपने को पूर्णत: सुंदर फैशनेबल से नीचे मानने को तैयार नहीं है । हर फैशन एक चक्र में ही यात्रा करता है। fashion wheel उपभोक्ता द्वारा किस फैशन को पसंद करना अपनाना व छोड़ देने की स्थिति को दर्शाता है। fashion wheel की विभिन्न अवस्थाएं निम्न मानी जाती है।
Introducation ( परिचय ) :--
किसी भी उत्पादक द्वारा कोई नया फैशन जो कि नया स्टाइल रंग अथवा कपड़े का डिजाइन हो सकता है वह प्रस्तुत किया जाता है। और उसका उत्पादन कम मात्रा मैं करते हैं। इस समय उपभोक्ता की प्रतिक्रिया ही इस बात पर निर्भर करती है कि फैशन सफल होगा कि नहीं अर्थात डिजाइनों को परिचय रूप में जनता में लाना।
Rise ( उत्थान ) :---
जब नए स्टाइल को उपभोक्ता पूरी तरह से अपना लेता है तब वह उत्पाद rise stage पहुंच जाता है। इस अवस्था में कई दुकानदार नकली माल को उसी उत्पाद के रूप में पेश करते हैं। और उसके दाम कम होते हैं क्योंकि फैशन पूर्ण उत्थान तक पहुंचता है।
Culmaination ( शिखर पर ):---
इस अवस्था में फैशन अपनी चरम सीमा पर होता है इस अवस्था में शासन की मात्रा इतनी अधिक होती है कि उत्पादन बहुत अधिक होती है । इस अवस्था में फैशन थोड़ा या अधिक होना फैशन की प्रसिद्धि पर निर्भर करता है । यही प्रसिद्धि फैशन को चरम उत्कर्षता पर ले जाती है।
Decline ( पतन ) :--
जब लोग उस फैशन को देख देखकर पहन पहन कर थक जाते हैं तो उसकी मांग भी कम हो जाती है तब उस अवस्था को decline कहते है। इस अवस्था में उपभोक्ता फैशन तो करते हैं किंतु उस डिजाइन या फैशन को पुराने दाम पर या कम दाम पर भी ले लेने को तैयार नहीं होते है । उस समय यह बिल्कुल बंद हो जाता है तब दुकानदार उसे sale लगाकर बेचना शुरू कर देते हैं । उत्थान पर पहुंचा हुआ धीरे-धीरे नीचे की और आना शुरू होता है। यानी कि पतन की शुरुआत होती है।
Obsolescence :--
यह वह अवस्था है जब उसी फैशन के कपड़ों को अस्वीकार कर दिया जाता है और उपभोक्ता उसे किसी भी कीमत पर लेने को तैयार नहीं होते हैं यही अवस्था बताती है कि जो डिजाइन बहुत प्रसिद्ध हुआ था उसका चलन अब एकदम खत्म हो गया है ।
इस प्रकार उपलिखित पांच कारणों के द्वारा फैशन का life cycle प्रभावित होता है।
Fashion
फैशन डिजाइनर इन परिधानों में ऐसी कला का प्रदर्शन
करते हैं जो देखने वालों को मोहित कर लेती है। इन परिधानों को धारण करने वाले इनको पहन कर उनकी कला का अर्थात फैशन का भरपूर प्रदर्शन करते हैं जिसे देखकर लोग उसी फैशन के दीवाने हो जाते हैं फैशनका काम है आदमी औरत व बच्चों के कपड़े उनके
शरीर के अनुरूप बनाना तथा डिजाइन करना।
आज हमने फैशन से संबंधित सभी चीजों की जानकारी प्राप्त की ।
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