What is laundry and its Equlpments ? धुलाई के उपकरण क्या हैं?


        laundry and its Equlpments


What is laundry and its Equlpments ? धुलाई के उपकरण क्या हैं?

इससे पहले हमने जाना धुलाई क्या है। तथा का फैशन से क्या समबन्ध  है । आज हम जानेंगे धुलाई उपकरण के बारे में जो इस प्रकार हैं :--

गंदे वस्त्रों की धुलाई करना laundry work कहलाता है।  पहने हुए वस्त्रों को धुलाई करके, उनको नए रूप में लाकर दोबारा से पहने के योग्य बनाना ही लाउंड्री कला का कार्य है।
यह तो सभी जानते हैं कि सभी वस्त्रों को एक तरीके से नहीं धोया जा सकता है। कोई गर्म पानी में तो कोई ठंडे पानी में, कोई साबुन से तो कोई डिटर्जेंट,सोप में, तो कोई हल्के सोप में धोए हो जाते हैं। कोई तार पर या अलमारी पर तो कोई चारपाई या जमीन पर बिछाकर सुखाए जाते हैं। अब हम जानेंगे धुलाई के भिन्न-भिन्न उपकरणों के बारे में....

                 
                        सिंक तथा ड्रेसिंग बोर्ड

   वस्त्रों को भिगोने व धोने सम्बन्धित उपकरण       

टब, बाल्टिया व बेसिन :-

सर्वप्रथम वस्त्रों को धोने के लिए साबुन के घोल में या साधारण गर्म पानी में भिगोना पड़ता है। ताकि वस्त्रों का मैल फूल जाए और कपड़ों में से आसानी से निकल जाए। धुलाई के पात्र प्लास्टिक लिया गेल्वाइज्ड आयरन के अच्छे होते हैं। धुलाई कार्यों में एलुमिनियम अच्छा नहीं रहता है। लोहे आदि के पात्रों में जंग लगने का भय होता है। यदि टब के आकार वाले बर्तन में कपड़ों को साबुन के घोल या बर्तन पानी में डुबोकर रखा जाए तो दो लाभ होते हैं। एक तो फेन (फोम) अच्छा बनता है। और दूसरा कपड़ों को उलट ना पलटना आसानी से हो जाता है इसके अतिरिक्त कपड़ा धोने के लिए जो सक्शन वाशर होती है उसके द्वारा भी टब में कपड़े मसलने में आसानी होती है। वस्त्रों की संख्या के अनुसार साइज की तब भी आसानी से उपलब्ध होते हैं उनमें भिगोना व मसलकर दो ना आसान होता है। 

सिंक:-

यदि खड़े होकर कार्य करने की इच्छुक हो तो सिंक की जाली का ढक्कन लगाकर उसी में साबुन का घोल बनाकर कपड़े भिगोना व धोना दोनों ही काम शीघ्रता से हो जाती है। साबुन के घोल में भीगे हुए कपड़ों को रगड़ कर उस गंदे साबुन को उसकी जाली से निकाल देते हैं और फिर बार-बार साबुन निकालने के लिए उसे शुद्ध पानी से निकालकर निथार लेते हैं। और अच्छे प्रकार निथरे कपड़ों को ड्रेनिंग बोर्ड पर रखकर सिंक का पानी ड्रेन द्वारा निकाल दिया जाता है। उसी सिंक के नीचे के स्थान को छोटी अलमारी के रूप में प्रयोग करने के लिए बंद रैक जैसा प्रबंध किया जा सकता है। जहां पर साबुन, साबुन पाउडर, नील स्टारच तथा दाग धब्बों के लिए प्रति क्रमांक आदि वस्तुएं सुरक्षित रखी जाती है सिंक का सबसे अच्छा साइज 36 इंच 40 इंच चौड़ा तथा 12 इंच गहरा माना जाता है जिसमें कपड़े धोने में कोई कठिनाइयां नहीं होती है। 

मग :-

बड़े साइज की मग पानी निकालने में तथा लाने में मदद करते हैं। अतः प्लास्टिक के तीन या चार माह धुलाई के समय अवश्य होनी चाहिए। 

कटोरे :-

 बनाने या स्टारच पेस्ट बनाकर जानने के लिए पर दाग धब्बे उतारने के लिए प्रतिक्रमण आदि डालने के लिए प्लास्टिक या एनामिल के कटोरे अच्छे रहते हैं। 

साबुनदानी :-

बार-बार कपड़ो में जहां जरूरत पड़े साबुन का प्रयोग करना ही पड़ता है साबुन की बट्टी को रखने का उचित माध्यम प्लास्टिक की साबुनदानी ही होती है उसके तले में जाली कटी होने से पानी निकलता रहता है और साबुन शीघ्र ड्राई हो जाता है। 

स्क्रबिंग बोर्ड :-

यह बोर्ड सिंक के साथ ही लगा होने से कपड़े रंगने में सुविधा रहती है वैसे तो यह बोर्डस लकड़ी, जिंक,स्टील, शीशे के बने होते हैं किंतु सुविधा की दृष्टि से लकड़ी का ही अच्छा होता है। 

ब्रूश:-

हाथ से रगड़ने के स्थान पर ब्रूश से रगड़ना भी सुविधाजनक है। ये ब्रुश प्लास्टिक, लकड़ी, स्पंज या फोम तथा नॉयलान के बने होते हैं। विशेषतौर पर कॉलर, कॉलर पट्टी बैंड, कफ बगलो का भाग लगाना पड़ता है।  पेंट की बॉटम या बच्चों के कपड़े भी रगड़ने की जरूरत पड़ती है। कपड़ों की सख्ती या मुलायमियत के हिसाब से ब्रूश का  प्रयोग जरूरी होता है नहीं तो वस्त्र के रेशे खराब होने का भय रहेगा। 

देगची व डंडा :

गंदी सूती वस्त्रो कई बार आग पर भी चढ़ाना पड़ता है। अतः एक पीतल या एलमुनियम की देगची होनी चाहिए जिसे आग के ऊपर रखकर चिमटे से उसमें उलट-पुलट किया जा सके यह कार्य डंडे से या चिमटे,संडासी से भी किया जाता है। 

सक्शन वाशर :-

हाथ से रगड़ने के स्थान पर वांछित टब में भीगे कपड़ों पर सक्शन वाशर का प्रयोग किया जाता है।  इसमें श्रम की भी बचत होती है। इस सक्शन वाशर को हैंडल से पकड़कर कपड़ों के ऊपर रख देते हैं। इसमें नीचे की और एक कटोरा सा बना होता है जिसमें छिद्र होते हैं।  उस काटोरे से वस्त्र को दबाते जाते हैं और उलट-पुलट रहते हैं। उस कटोरेनुमा सक्शन वाशर के दबाने से कपड़े दबकर पानी कटोरी में आ जाता है और जैसे ही डंडे से ऊपर उठाते हैं वह फिर निकल जाता है इस प्रकार रगड़ने का काम दबाने से हो जाता है। 


                       

कपड़े धोने वाली मशीन : 

बिजली से चलने वाली मशीनें घर घर में आ पहुंची हैं। कपड़ा धोने की मशीन और शरीर में हाथ से चलाई जाती थी किंतु अब तो बिजली से ही चलाई जाती है । इन मशीनों में Fully automatic तथा semi- automatic दोनों तरफ की मशीनें हैं। Fully automatic मैं एक top loading यानी कि ऊपर से ढक्कन हटाकर उसी में से कपड़े डालने की व्यवस्था होती है। दूसरी तरह की front door से कपड़े डालने वाली मशीन होती है। दोनों में एक अंतर होता है कि top loading मैं कम कपड़े भी डाल कर धोए जा सकते हैं किंतु front loading मैं जितना कपड़ों की जरूरत होती है पूरे ही डालने होते हैं। 

                           

Semi- automatic मैं दो टब होते हैं, एक में कपड़े को साबुन के घोल में डालकर मशीन चलाते हैं। इसमे कपड़े clockwise तथा anti- clockwise घूम घूम कर साफ होते हैं। इससे निकालकर साथ वाले गोल-गोल छिद्रों वाले छोटे तब में और खोल-खोल कर भर देते हैं और पानी भी खोल देते हैं। ताकि कपड़े अच्छी तरह से धुल भी जाएं और निचुड़ भी जाएं। मशीन में धुलने  से कपड़े की चमक  तथा नवीनता ऐसी बन रहती है। और समय की भी बचत होती है। 
            
                         

धुलाई मशीनों में सभी में रिंगर लगा होता है जिससे कपड़े अपने आप निचुड़ जाते हैं, उनको केवल मशीन से निकालकर सुखाने का काम रह जाता है। मशीन कोई भी हो प्रयोग के उपरांत अच्छी तरह से धोकर साफ करके पोंछ कर रखनी चाहिए ताकि मशीन के life अच्छी रहे। 

 वस्त्रों को सुखाने वह फाइनल फिनिश संबंधी उपकरण:

अभी तक धुलाई की सभी उपकरणों के विषय के बारे में हमने जाना अब कपड़ों के सुखाने संबंधी तथा फाइनल फिनिश संबंधित क्रियाकलापों के  बारे में जानेंगे

ड्राइंग कैबिनेट  ( Drying cabinet) : वस्त्रों को सिखाने के लिए यहां बिजली के गर्म होने वाले ड्राइंग कैबिनेट होते हैं। इसका महत्व बरसात के मौसम में बहुत  होता है। प्राय: पाश्चात्य देशाों में सूर्य के दर्शन कब होते हैं और वहां सर्दीयां में भी अधिक होती है। इसलिए वहां पर drying cabinet का प्रयोग अधिक किया जाता है। 

इसके अतिरिक्त वस्त्रों को सुखाने का जो साधारण तरीका है और जो प्रयोग किया जाता है वह अलगनी होती है। आजकल यह रस्सियो प्लास्टिक की,सूती डोरी की बटी हुई तथा बिना बटी हुई रस्सियो द्वारा बनती हैं। कपड़ों को रस्सी के छोरो में दबाकर या उस पर फैलाकर चिमटी से पकड़कर सूखने डाल देते हैं ताकि साफ कपड़े जमीन पर गिरकर गंदे ना होने पाए।

आयरन करना :-  

  सूखे हुए वस्त्रों को प्रेस करके उनको फाइनल टच (final touch)  दिया जाता हैं। घरों में प्रायः बिजली की प्रेस का प्रयोग किया जाता हैं।

आमतौर पर प्रेस तीन प्रकार की होती है

साधारण प्रेस           ऑटोमेटिक प्रेस           स्टीम प्रेस
      
                   

                        

अब बात करेंगे साधारण प्रेस : साधारण प्रेस में रेगुलेटर नहीं होता है अपने अंदाज से ही प्रेस करनी होती है इससे नुकसान यह है कि अंदाज अगर गड़बड़ हुआ तो कपड़ा भी गड़बड़ होने का भय रहता है। 
 
ऑटोमेटिक प्रेस :

की बात की जाए तो ऑटोमेटिक प्रेस सुविधा हेतु और कपड़ों को खराब न करने के लिए यह प्रेस रेगुलेटर वाली बनी होती हैं। इस प्रेस का प्रयोग करते समय जिस रेशे के वस्त्रों को प्रेस करना हो उस पर रेगुलेटर का नॉब(Knob)  घुमा देते हैं। इससे यह लाभ होता है कि कपड़े को जितनी गरमाई की आवश्यकता है उतनी ही प्रेस गर्म होती है और कपड़ा पूर्णत: सुरक्षित रहता है। इसी प्रेस को स्वचालित प्रेस भी कहा जाता है। 

स्टीम प्रेस :

के बारे में जानेंगे स्टीम प्रेस,ऑटोमेटिक प्रेस से भी अच्छी किस्म की होती है क्योंकि इसमें पानी स्प्रे करने का एक बटन हैंडल पर होता है तथा इसके तल में छिद्र होते हैंं जहां से स्टीम (भाप) निकलती है और कपड़ों पर बहुत अच्छी प्रेस होती है। खास तौर पर गर्म कपड़ों के लिए यह प्रेस होती है। 

यह तीनों प्रेस तो आधुनिक जमाने की कही जाती है कुछ प्रेस में कोयले जलाकर उससे गर्म करके भी कपड़े प्रेस किए जाते हैं। धोबी लोग प्रायः इस प्रेस का प्रयोग करते हैं। इससे जहां कपड़ो पर राख आदी गिरने का डर रहता है अथवा कभी कभार कोई चिंगारी साइड से निकलकर कपड़े पर यदि गिर जाती है तो कपड़े का नुकसान हो जाता है। इसी कोयले वाली प्रेस में ही एक बंबू भी लगा होता है बंबू से धुआंं आदि निकलता रहता था और प्रायः इससे कपड़े जलने का डर भी कम होता है था। किंतु इस प्रेस के द्वारा अनुभवी या अभ्यस्त हाथों वाले व्यक्ति ही कार्य करते हैं। क्योंकि एक तो यह भारी होती है और दूसरे गरमाई का अंदाजा भी लगाना पड़ता है। 

हमने आमतौर पर तीन प्रेशो के बारे में जानकारी प्राप्त की अब हम प्रेसिंग टेबल या प्रेसिंग बोर्ड क्या है इसका क्या इस्तेमाल है इसके बारे में जानेंगे: -- 

💐                प्रेसिंग टेबल या प्रेसिंग बोर्ड:  
                
                       

 एक सपाट मेज पर दरी कंबल वह चादर डालकर प्रेसिंग की जा सकती है इसके सीधे हाथ की तरफ प्रेस को रखने की व्यवस्था की जाती है और बाकी हिस्से पर कपड़ो को प्रेस किया जाता है प्रेसिंग बोर्ड बना ही इसी कार्य के लिए है ।यह फोल्डिंग होते हैं। लकड़ी के बने होते हैं इस पर thick कपड़ों की पैडिंग होती है और बाएं हाथ की और स्लिव किसे पकड़ने के लिए नोक होती है। उस पर बाजू को प्रेस किया जाता है। दाहिने हाथ पर एस्बेस्टस शीट का एक टुकड़ा गर्म प्रेस को रखने के लिए लगा होता है। यह स्लीव बोर्ड अलग भी मिलता है। एक आयरनिंग कैबिनेट भी मिलता है जो तखत नुमा दीवार में फिट होता है उसे उतारकर स्टैंड पर रखकर बड़े-बड़े कपड़े या साड़ी प्रेस की जाती है। 
इस प्रकार देश के इतने साधन अपनी सुविधानुसार उनको लेकर प्रयोग किया जा सकता है ।

आज हमने जाना धुलाई के उपकरण क्या क्या है तथा धुलाई क्या है। अब बात आती है :

कपड़ों को उठाने तथा रखने संबंधी कुछ उपकरण:-

धुले कपड़ों को सुखाने के लिए ले जाने वाली टब:
धुलाई कमरे में छोटी अलमारी का होना जरूरी है:
सभी रसायनों पर लेबल लगाना:

         इन सभी के बारे में विस्तार पूर्वक जानेंगे : 

जब हम कोई भी कपड़े बोलते हैं तो उस धुले हुए कपड़े को अच्छी तरह से निचोड़ ना तथा निचोड़े हुए वस्त्रों को सुखाने वाले स्थान तक ले जाने के लिए प्लास्टिक का टॉप या टोकरी या प्लास्टिक की बाल्टी होनी जरूरी होती है। ताकि एक बार में 10 -15 कपड़े तक ले जा कर सुखा लिया जाए। 

धुलाई में प्रयुक्त होने वाले साधनों को store करने के लिए अलमारी होना जरूरी है उसमें सोप,डिटर्जेंट,नील,स्टारच, रखनी पड़ती है। तथा उनको निकालने के लिए चम्मच भी होना चाहिए। नाप करने के लिए नपैना भी होना चाहिए। यह सब उस छोटी सी अलमारी में रखा हुआ सुरक्षित रहता है ।

धुलाई के साथ साथ हमें धुलाई से संबंधित रसायनों का भी ध्यान रखना होता है। जैसे प्रतिक्रमण या अन्य समान है उन सब पर लेबल होनी चाहिए ताकि गलती से कुछ दूसरा पदार्थ प्रयोग ना कर ले। इसमें एसिड, साबुन घोल, कास्टिक, सोडा ,पेट्रोल, तारपीन, जेबेल वाटर, सोडियम हाइड्रोक्साइड, बोरेक्स,आँक्सालिक एसिड आदि तमाम सामान तरीके से रखनी चाहिए। नाम के लेबल सही हो तथा बच्चों की पहुंच से दूर हो क्योंकि इसमें कुछ वस्तुएं विष के समान काम करती है अतः बच्चों के हाथों से दूर रखने चाहिए। धुलाई का सामान इसमें से निकालने के लिए लकड़ी या प्लास्टिक के चम्मच होने जरूरी होते हैं। मांड, नील, रंग आदि रखने के लिए प्लास्टिक के डिब्बे या खुले मुंह की शीशियां उचित रहती है। 

इस प्रकार प्रयोग किए गंदे कपड़ों को साफ करने के तरीकों के विषय में जानकारी प्राप्त होना जरूरी होता हैं। 
भिन्न-भिन्न रेशों के वस्त्रों को भिन्न-भिन्न तरीकों से तथा अलग-अलग सोप या डिटर्जेंट का प्रयोग करके धोखा शुद्ध करने के तरीकों के विषय में जाना हमने। यहां तक कि वस्त्रों को किस तापमान पर कितने मिनट के लिए रखा जाता है यह निम्नांकित इस प्रकार है: 
      
              

इस प्रकार उचित निर्देशित तरीकों द्वारा जब कोई भी कार्य किया जाता है तो भली-भांति ही होता है। 

तो दोस्तों आज हमने जाना धुलाई क्या है और धुलाई के क्या उपयोग है तथा धुलाई के कौन-कौन से उपकरण है। 

(part-2) 
धुलाई क्या है यह जानने के लिए:


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