What is Silhouette fashion ? सिलहूट फैशन क्या है।

           
                            Shilouette 



What is Silhouette fashion ? सिलहूट फैशन क्या है। 
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आज मैं आपको सिलहूट के बारे में बताऊंगी सिलहूट क्या है तथा फैशन से इसका क्या संबंध है। आइए जानते हैं -
सिलहूट एक वस्तु या रूपरेखा के दल का दृश्य या इंटीरियर का एक दृश्य है जो कि आमतौर पर काले रंग दृष्टिगोचर होता है। इसका प्रारंभ 18वीं शताब्दी में चित्रों या अन्य सचित्रों का काले रंग के कार्ड की कटिंग के द्वारा शुरू किया गया था। 

यह रूपरेखा एक व्यक्ति की वस्तु की या दृश्य की छवि को प्रदर्शित करती है जो हल्की रोशनी के पिछले भाग में या पृष्ठभूमि में काले रंग में दिखाई देता है, क्योंकि सिलवट एक वह रेखा को रेखांकित करता है इसलिए यह शब्द फैशन व फिटनेस के क्षेत्र में प्रयोग किया जाता है। सिलहूट हमको एक व्यक्ति के शरीर की बनावट पर खास शैली के कपड़े पहने हुए उस युग के फैशन को दिखाता है। (silhouette) छवियां किसी भी कलात्मक मीडिया में बनाई जा सकती है लेकिन काले कार्ड से तस्वीरें काटने की परंपरा उस युग से आज 21वीं शताब्दी तक जारी है।

व्युत्पत्ति ( Etymology) : -
 
शब्द सिलहूट की उत्पत्ति फ्रांस के एक वित्त मंत्री के Eltienne De Silhouette से संबंधित है।  मंत्री ने, जिसको कागज काटकर चित्र बनाने का शौक था, फ्रांस में 7 साल से चले आ रहे युद्ध के दौरान आर्थिक तंगी से दुखी होकर इन चित्रों को बनाना शुरू कर दिया और इस प्रकार वह अपने समय का उपयोग करके अपने को व्यस्त रखने लगा और यह शैली इस नाम से प्रचलित हो गई। 

सिलहूट का कला से क्या संबंध था तथा सिलहूट कला में क्या उपयोग है इसकी प्रथा जानेंगे : 

कला में ( In Art) : -
 
यह प्रथा फोटोग्राफी के दौरान से बहुत पहले की है इसलिए सिलहूट प्रोफाइल (Outline of a person ) काले कार्ड से एक व्यक्ति के रूप की रिकॉर्डिंग का सबसे सस्ता तरीका है। सिलहूट एक तरह की कलाकृति है जो परंपरागत रूप मैं एक मानव के portrait को काले रंग में चित्रित करता है। 

                        

तस्वीरें या चित्र ( profile ) :--- 

इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह मुख्य रूप से चेहरे एवं शरीर की अनुपातिक संरचनाओं की आकृति को सरल रूप में प्रस्तुत करता है । यह तस्वीरें रोमन युग के समय के सिक्कों के ऊपर छापी जाती थी । इसके अलावा प्रोफाइल चित्रों का प्रयोग मशहूर लोगों की portrait बनाने में किया जाता था। सिलहुट का प्रयोग धीरे-धीरे portrait , मूक सिनेमा , फोटोग्राफी ग्राफिक डिजाइनिंग आदि में होने लगा था।  आज के समय में इसका  fashion and fitness में बड़ा योगदान हैं। 

                         

 

फैशन व फिटनैस ( fashion and fitness ) :---
 
क्योंकि सिलहूट एक मानवीय आकृति की बाहय् रेखा है, इसलिए यह फैशन और फिटनेस के चित्र में मानव शरीर का वर्णन करता है। 20वीं शताब्दी में सिलहूट  शब्द का प्रयोग जिम व फिटनेस सेंटर में बहुत अधिक रूप में विज्ञापन के उद्देश्य से किया गया । पोशाक के इतिहासकारों ने इस शब्द का प्रयोग अलग-अलग युग के कपड़ों के फैशन के प्रभाव को दिखाने के लिए भी किया ताकि वे अलग-अलग योग के कपड़ों का तुलनात्मक अध्ययन कर सकें। 

                          

 

 पहचान ( Identification) : -- 
 
सिलहूट एक ऐसी स्पष्ट बाहय् रेखा है जिससे एक उद्देश्य (object) को बहुत कम समय में पहचानने का लाभ होता है। सिलहूट  के कई व्यावहारिक प्रयोग है जैसे यातायात संकेत , प्रसिद्ध स्मारकों या नक्शा का चित्रण, शहरों या देशों की पहचान या प्राकृतिक वस्तुओं जैसे पेड़, जानवर, पक्षी, सैन्य प्रयोग, पत्रकारिता आदि। 

           मानवीय आकृति पर फैशन का प्रभाव  
(Fashion influencing the Human figure) 

 

आप जानते हैं कि प्रारंभ में मानव ने कपड़ा बनाना सिखा । कपड़ा बनाकर कंगन भी होने लगा क्योंकि सर्दी गर्मी बरसात के मौसम में शरीर को सुरक्षित रखने का उपाय स्वयं ही मनुष्य मस्तिष्क की खोज थी । धीरे-धीरे सुई के अविष्कार के साथ सिलाई का भी प्रचलन हुआ और वही सुई धागे की करामत आज के समय में फैशन के नाम से प्रसिद्ध है। इसी फैशन का ही मानव शरीर पर अत्यधिक प्रभाव हो गया है हर व्यक्ति स्वयं को सभ्य समाज में अग्रणी दिखाने के उद्देश्य से फैशन के दौर में आगे से आगे बढ़ता जा रहा है। 

आज पहनने की वस्त्र विभिन्न तरीकों से तथा अनेकों प्रकार की मशीनों के प्रयोग द्वारा बनाए जा रहे हैं। प्रारंभ में तो कपड़ा बाजार से खरीद कर भले हाथों से फिर मशीनों से गिरेबान लगातार जिनको स्वयं चलना नहीं आता था वह सिलाई पर बाहर सिलवा लेते थे। अब बाजार में ही सिला सिलाया वस्त्र मिलने से तैयार वस्त्र ही खरीदा जाने लगा। अब अच्छे से अच्छे वस्त्र सिले सिलाए ऋतु के अनुसार रीति-रिवाजों के अनुसार व्यक्तित्व अर्थात कद काठी के अनुसार तथा परंपराओं के मुताबिक सब प्रकार के अर्थात सस्ते, महंगे सभी तरह क मिलने लगे हैं। 

वस्त्र तो सभी पहनते हैं वस्त्र पहनने से मनुष्य तो सुंदर लगते ही हैं और मनुष्य से वस्त्र भी सुंदर लगते हैं अर्थात जब दोनों एक दूसरे के अनुरूप होते हैं सभी मनुष्य आकृति पर वह वस्त्र या परिधान फबता है और तभी उसका व्यक्तित्व अच्छा दिखाई देता है वस्त्र में देखने वाले की दृष्टि सर्वप्रथम रंग पर जाती है। फिर उसके बाद देखने वाले का ध्यान व्यक्ति तथा ड्रेस की बाहय् आकृति पर जाता है। तत्पश्चात उस ड्रेस के नमूने पर अर्थात डिजाइन पर जाता है नमूने के बाद उस वस्त्र के रंग तथा पहने वाले के रंग पर ध्यान जाता है रंग से वस्त्र की बाहय् रेखा यानी silhouette भी फैशन अनुकूल बदलती रहती है। 
फैशन में एक बड़ा योगदान फ्रेमिंग का होता है अर्थात कैसे-कैसे सजावटी सामान का ड्रेस में उपयोग किया जाता है ड्रेस की ड्राफ्टिंग एवं कटिंग का तो फिटिंग में योगदान है ही साथ ही ड्रेस कैसे अलंकृत हो किस समान के द्वारा अर्थात गोटा, पाइपिगं, लेस , झालर आदि किया गया है, इसका भी बहुत प्रभाव पड़ता है। वस्त्र रचना में यह ध्यान रखना जरूरी होता है कि नमूने बनाते समय डिजाइन की आधारभूत रेखाओं को त्यागा नहीं जा सकता है। अतः उन सब का प्रयोग करते समय यह ध्यान रखें कि डिजाइन में ट्रेनिंग या नमूना कुछ भी अधिक ना बनाया जाए जिससे डिजाइन अजीब ( over) लगने लगे।

वस्त्र की self designing मैं लाइनदार  कपड़ों का भी  प्रमुख हाथ है। खड़ी, आड़ी व तिरछी लाइनों से बने वस्त्र अपने आप में ही बहुत सुंदर लगते हैं। खड़ी लाइनें पहनने  वाले की लंबाई को बढ़ाती हुई प्रतीत होती है, जबकि आड़ी  लाइने धारण करने वाले की चौड़ाई को बढ़ाती हुई प्रतीत होती है। तिरछी रेखाएं, आंखों को नीचे ऊपर ले जाने के लिए ही लगती है और तिरछे 'v' shape मैं करके स्कर्ट टॉप आदी में सुंदर दिखाई देती है। नियमावली के अनुसार बनाया गया वस्त्र शारीरिक निरीक्षण किए हुए शरीर पर एकदम सुंदर लगता है तथा अलग-अलग तरीकों से बना हुआ जब उसी रस्सी को पहनाते हैं तो उसका व्यक्तित्व हर 50 में अलग ही दिखाई देता है।

 

                    परिधान डिजाइन के सिद्धांत
 (principles of Designing the Garments) 

 

पोशाक ऐसी डिजाइन में बने जिसे देखकर लोग वाह वाही कर उठें । क्योंकि पोशाक की डिजाइनिंग के त्रुटि पूर्ण तरीके कुछ ही दिनों में आउट ऑफ़ फैशन कहलाने लगते हैं। परिधान डिजाइन करते समय अनुपात ( proportion), संतुलन ( Balance ), लय ( Rhythm), अनुरूपता (Hrmony), दबाव ( Emphasis), संभल तथा आकर्षण केंद्र आदि ऐसे scale हैं, अर्थात ऐसे पैमाने हैं जिन स कोई भी व्यक्ति अपनी पोशाक या पहनावे का उचित मूल्यांकन कर सकता है क्योंकि उपलिखित में से किसी एक की भी उपेक्षा हो जाने से पोशाक की सुंदरता कम अथवा समाप्त हो सकती है।
का तात्पर्य है कि पोशाक में उचित अनुपात हो, संतुलन विश्राम दायक हो, डिजाइन की लाए ऐसी रोचक हो जो कि पहनने वाले के शरीर की विशेषताओं एवं गुणों को उभार कर प्रकट करने वाली हो। पोशाक के आकर्षक बिंदु उसके सभी सजावटी सामान ऐसे प्रतीत होते हो जिससे पहनने वाले का व्यक्तित्व उभर कर सामने आए। इसके साथ ही यह परिधान मौसम के अनुकूल रीति-रिवाजों के अनुकूल तथा परंपराओं के अनुसार यदि हो तो और भी सोने पे सुहागा होगा अर्थात उसमें और भी सौंदर्य दिखाई देगा। और यदि परंपरागत पोशाकों में थोड़ा सा फेरबदल करके बना दिया जाए तो नवीन में पुरातन का योगदान समाज में और भी सराहनीय होगा। जैसे का पास क्लीनर का स्थान धीरे-धीरे रासायनिक वस्त्रों के मिश्रण वाले रेशों ने ले लिया है यानी डेकरॉन, जेफरॉन तथा आरलॉन आदि ने विस्तृत रेशों के वस्त्र आ गए हैं, उसी प्रकार डिजाइन बनाने में भी नए पुराने का मिश्रण होने पर डिजाइनिंग मैं भी संजीदगी आ जाएगी। इसी के साथ ही साथ पाश्चात्य देशों की पोशाकों मैं भारतीय पोशाकों का मेल भी होने लगा है और समाज में पसंद भी की जाने लगी है। भारतीय पोशाक यद्यपि साड़ी ब्लाउज है, किंतु साड़ी के साथ जो ब्लाउज बनते थे अब टॉपलेस या पतले महीन स्ट्रैप या कंधों पर डोरी वाले ब्लाउज फैशन में आ गए हैं। इसी प्रकार लो बैक - नैक की लेडीज शर्ट या ब्लाउज भ डिजाइन किए जाने लगे हैं। 

संक्षेप मैं डिजाइन के रूप में यह ज्ञात होता है कि पाश्चात्य सभ्यता में टाइट पोशाकों का तथा अंग प्रत्यंग को उभार कर दिखाने वाला फैशन अधिक है जबकि भारतीय सभ्यता में अंगों को ढकने वाले वस्त्रों का फैशन था जिस पर अब दोनों के मिश्रण डिजाइन से यहां की पोशाकों में भी अंग प्रत्यंगो मैं खुलापन प्रारंभ हो गया है यह फिल्मों तथा टीवी सीरियल में जनता में , समाज में रिवाज आया हैं। यही जनता की पसंद है जिसे समय की मांग करते हैं।

                वस्त्रों का चुनाव एवं खरीदारी 
 ( Selection and Purchase of Garments )

वस्त्र डिजाइन के आधार पर सैद्धांतिक प्रयोग करके बनाए गए परिधान के स्टाइल में यह विशेष आकर्षक होता है इसी कारण वस्त्रों को अधिक आकर्षक बनाने का प्रयत्न किया जाता है आजकल विज्ञापनों में भी बहुत से आकर्षक डिजाइन दिखाए जाते हैं उनके अनुसार फैशनेबल लोग वस्त्र बनवाने के शौकीन हो गए हैं ताकि यदि वे मॉडलिंग की दुनिया में जाना चाहे तो आसानी से चुने जा सके।

संक्षेप में "अनुकूल क्षणों मैं अनुरूप कपड़े" तथा " मोहक क्षणों मैं मोहक परिधान" का अनुकरण करने वालों के मन में आत्मविश्वास चमकता है। इसी कारण उनमें ऐसा आकर्षण उत्पन्न हो जाता है जो सभी के ध्यान को बरबस ही खींच लेता है। और ऐसा सुरुचिपूर्ण वस्त्र का चुनाव करने वाला अपने पद में या व्यवसाय में सफलता की सीढ़ियां चढ़ता जाता है।  

आज हमने जाना सिलहूट के बारे में सिलहूट का फैशन में क्या महत्व है । 


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