Textile
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Textile क्या है इसके बारे में जानने से पहले यह जानना जरूरी होता है कि किसी चीज को बारीकी से समझने के लिए हमें उन गहराइयों में जाना होता है। क्योंकि जड़ से शिखर तक जब तक उसका गहराई से अध्ययन नहीं किया जाएगा तब तक उसके विषय में पूर्णता ज्ञान नहीं हो सकेगा वस्त्र विज्ञान की जड़ है - "तंतु"। अब हम जानेंगे टेक्सटाइल के बारे में।
What is Textile? टेक्सटाइल क्या है?
जैसे पहले हम यह जानेंगे तंतु कैसे बनते हैं ? उसकी क्या-क्या अवस्थाएं हैं? उसने किस प्रकार बदलाव किया जाता है या उसमें क्या-क्या मिश्रण किया जाता है? उसमें किस प्रकार के बदलाव किए जाते हैं? उस तंतु से धागे का निर्माण कैसे होता है?
अर्थात मार्केट में कपड़ा आने से पूर्व की सभी प्रक्रियाओं के विषय में जानना बहुत जरूरी है उन सभी बातों को जानने के लिए टेक्सटाइल को समझना अत्यंत आवश्यक है। वस्त्र विज्ञान में ही प्रचलित वस्त्र उपयोगी रेशों तथा वस्त्रों की अंतर्निहित विशेषताओं को जाना जा सकता है इनकी विशेषताओं को जानकर ही वस्त्रों के प्रयोजन के अनुरूप उचित उपयोग तथा टिकाऊ परिधान घर के लिए लेने में सुविधा रहती है उनका रखरखाव प्रयोग करना तथा धुलाई व प्रेस आदि करने के लिए उचित तरीके भी बस विज्ञान से ही पता लगते हैं।
वस्त्रों का प्रयोग हर समय में, हर व्यक्ति द्वारा, हर अवसर पर ही किया जाता है। शरीर को सजाने के लिए शरीर को सर्दी गर्मी बरसात से बचाने के लिए तथा अपने समाज या सोसाइटी में अपनी एक अलग पहचान बनाने के लिए हर व्यक्ति द्वारा वस्त्र प्रयोग किए जाते हैं जैसे मिलिट्री या पुलिस में वर्दी। अर्थात जन्म से लेकर मृत्युपर्यंत व्यक्ति बिना कपड़ों के नहीं रह सकता। घर में भी अनेक प्रकार के, हर कार्य के लिए अलग-अलग बैठने, उठने, सोने, बिछाने तथा औढ़ने के लिए अलग-अलग किस्म के, अलग-अलग क्वालिटी के कपड़े ही प्रयोग किए जाते हैं। कपड़ों से ही घर की सजावट रसोई घर के काम, स्नानागार के कपड़े, नहाने के बाद तरह-तरह के कपड़ों कि जो आज मानव समाज को देन हैं, वह वस्त्र विज्ञान की बदौलत ही होते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि कितने प्रकार के वस्त्र आज वस्त्र विज्ञान की बदौलत मार्केट में आ गए हैं कि घर के बिस्तर, सोफा, खाने की मेज, कुर्सियां सब पर तरह-तरह के कपड़े दिखाई देते हैं। यहां तक कि ऐसा कपड़ा भी जो आग ना पकड़ सके यानी fire-proof तथा पानी आर पार ना जा सके यानी कि water-proof तक जैसे कपड़ों का निर्माण वस्त्र विज्ञान के अनेकों परीक्षणों के फलस्वरुप हो चुका है। वस्त्रों का नाता सबसे है। यही कारण है कि आज वस्त्र उत्पादन संसार के सभी देशों में एक महत्वपूर्ण उद्योग है। विश्वभर के देशों में जहां जैसा कच्चा माल (raw material) प्राप्त हो जाता है वैसा ही उसका उपयोग हो जाता है।
किसी-किसी कंपनी ने ऐसे वस्त्र निर्माण भी किए हैं जिनमें विभिन्न मौसम में ताप के परिवर्तन के वाक्य प्रभावों के अनुसार वस्त्र में परिवर्तन हो जाता है अर्थात गर्मी में वह कपड़े पतले व ठंडक प्रदान करने वाले तथा सर्दी में सर्दी बढ़ने के साथ-साथ वस्त्र मोटे व गर्म होते जाते हैं। सृष्टि की उत्पत्ति से आज तक मनुष्य की बुद्धि ने वस्तुओं की उत्पत्ति के साधन एवं वस्त्रों को बुनकर तैयार करने के अनेकों तरीके खोजने हैं प्रारंभिक काल से आज तक वस्त्र निर्माण कला में उत्तरोत्तर विकास होता जा रहा है। तथा इस दिशा में मनुष्य ने आश्चर्यजनक प्रगति की है। अवारचीन काल में मनुष्य ने जैसे जैसे पेड़ पौधे से देशों की खोज की उसे धीरे-धीरे तंतु के रूप में बनाया और बुनने के प्रयास भी किए। भूलने के उपरांत कपड़ा लपेटने से लेकर सुई के अविष्कार के साथ सिलने का भी प्रयास किया गया। किंतु जो रूप आज है वैसा तो नहीं था। फिर भी उस समय के हिसाब से ठीक ही था। हर देशवासी अपनी अपनी सभ्यता के विकास के अनुसार अपनी अन्य वस्तुओं के विकास के साथ-साथ वस्त्र विज्ञान में भी आगे बढ़ते रहें।
विकास के साथ-साथ कपड़ा निर्माण के लिए विभिन्न उपकरण भी तैयार किए गए और उनकी सहायता से कम समय में अधिक अच्छे कपड़ों का निर्माण भी शुरू हुआ इसके कुछ समय के अनंतर कपड़ा उद्योग में और भी क्रांतिकारी परिवर्तन भी जब वैज्ञानिकों द्वारा विद्युत एवं शक्ति चालित कुछ यंत्रों का निर्माण किया गया। बिजली की मशीनों की सहायता से न केवल श्रम की बचत हुई अपितु कम समय में अधिक वह अच्छी क्वालिटी का कपड़ा भी बनने लगा। प्रारंभ में यह कार्य केवल प्राकृतिक तंतु से ही होता था। कुछ वर्षों के बाद प्राकृतिक तत्वों के साथ कृतिम तंतुओं का भी अविष्कार हुआ। फलहतः दोनों प्रकार के तंतुओं से अलग-अलग तथा कुछ समयोपरांत मिक्स बंधुओं से भी कपड़ा निर्माण होने लगा। यह औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप मशीनों के बनने से तथा रसायन क्षेत्र में भी नित्य नए परीक्षण के फलस्वरुप असीमित क्वालिटी तथा असीमित मात्रा में तंतुओं का कपड़़ा उद्योग में आना लोगों के लिए हितकर हुआ। क्योंकि तंतुओं की मृत्यु न विनीता से वस्त्र उद्योग मैं कपड़े की मजबूती व टिकाऊपन के कारण मांग बढ़ी। अब कपड़ा उद्योयोग ने बहुमुखी उन्नति एवं प्रगति कर ली थी। धीरेेेे-धीरे वस्त्र उद्योग ने विविध प्रकाार के कपड़े तैयार करके बाजार में भेजने शुरू कर दिए। इन सब कार्यों का श्रेय भी वस्त्र विज्ञान द्वारा नई-नई तकनीकों को अपनाने का जाता है ।
वस्त्र विज्ञान के विकास की श्रेणिया।
Categories of development of textile science
प्रारंभ में मनुष्य ने पौधों के सफेद फूल रुई कोए देख कर उससे अपनी आवश्यकता के अनुसार बैठकर धागा बनाना और धीरे-धीरे एक तकली से उसको काटना उससे धागा बनाना व बुनकर कपड़े का एक रुप तैयार किया इन सब में बहुत समय लगता था तथा कार्य कम होता था। समय के परिवर्तन के साथ तथा विकसित होते होते एक फ्लाइंग शटल नाम की मशीन, जिसमें 1 पहिया से ही अनेक पहिए घुमा कर (यानी कई तक लिया एक साथ घूमती थीं) सूत काता जाने लगा था धीरे-धीरे स्पिनिंग जेनी और फिर वाटर फ्रेम मशीन तथा मूल नाम की मशीन का आविष्कार हुआ। इन मशीनों से सूत की मात्रा अधिक तथा अच्छी क्वालिटी का महीन सूट बनाया जाने लगा था। जब सूत अधिक बनाना शुरू हो गया तो उसकी बुनाई के लिए 1818 मैं पहली सूती कपड़ा मिल स्थापित की गई ताकि कपड़े की बुनाई शीघ्र हो सके। दिन प्रतिदिन कपड़ा बुनाई रंगाई व प्रिंटिंग के क्षेत्र में प्रगति होने लगी। इसके अतिरिक्त लगभग 400 करोड़ मीटर सूती कपड़ा करघों से भी तैयार होता था। अब सूती वस्त्र उद्योग की विशालता ने जन जीवन के हर क्षेत्र को प्रभावित किया है। मुख्यतः यह कार्य गृहणी के हिस्से में ही आता है। आज की छात्राएं कल की गृहणी बनेंगी। अतः आज हर छात्रा को कपड़ों का प्रयोग व प्रयोजन, उसकी मजबूती, कार्य क्षमता, उपयोगिता आदि के विषय में संपूर्ण जानकारी होनी चाहिए। इन सब की देख-रेख, धुलाई, संभाल आदि वस्त्रों को ठीक प्रकार से परखने की क्षमता, वस्त्र विज्ञान को जानने से ही आती है।
(वस्त्र विज्ञान को जानने की आवश्यकता)
(need to know textile science)
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तंतु, रेशे के कपड़ा तानों के बारे में जानने का यह लाभ है कि कपड़ा खरीदने में समझदारी है, ताकि वह समय से पहले रंग में, प्रिंट में धुंधला ना लगे। कई बार एक ही धुलाई में वस्त्र खराब सा प्रतीत होने लगता है। जिससे समय, धन व श्रम तीनों का ही नुकसान होता है।
- बुनाई की विधियों का ज्ञान:
- वस्त्रों का सुरक्षा संबंधी ज्ञान:
- अवसर एवं मौसम के अनुकूल:
- रंगो का महत्व:
- वस्त्रों की उचित देखने की विधियां:
- वस्त्रों की परिष्कृति तथा परिसज्जा:
- पसंद के अनुसार चयन :
- वस्त्रों की धुलाई कला:
बुनाई की विधियों का ज्ञान
🌳वस्त्र की मजबूती उसके तंत्र पर निर्भर करती है। तब तो कई प्रकार से बनाए जाते हैं फिर उनको बुनाई अर्थात वीविंग के द्वारा तैयार करते हैं। बुनाई भी कई तरह की होती है- (felting),(knitting),(braids and laces) तथा सिंगल बुनाई, (Twill) बुनाई तथा साटिन बुनाई। इन सब की जानकारी वस्त्र निर्माण से ही मिलती है।🌳
वस्त्रों का सुरक्षा संबंधी ज्ञान।
🌳जिस उद्देश्य के लिए कपड़ा खरीदना है वह उद्देश्य सामने रखकर कपड़ा लेना-- यथा, सोफा के लिए, खाने की मेज व कुर्सियों के लिए पर्दों के लिए अथवा बेडरूम के लिए-- यह ध्यान रखते हुए उसकी बुनाई, धागा (yarn), प्रिंट, रंग वह कपड़े की मोटाई को देख कर लेना, क्योंकि चलते फिरते पर्दों में हाथ रखते हैं, प्रयोग करने में गंदे होते हैं तो स्थान देखकर कि पर्दे कहां लगने हैं, उनका कड़ापन, धुलाई व चमक आदि को भलीभांति जांचने के लिए इन सभी सुरक्षा संबंधी नियमों की जानकारी करना आवश्यक है। यानी खरीदे जाने वाले वस्त्र की क्षमता के विषय में जानना भी अत्यंत जरूरी है। 🌳
अवसर एवं मौसम के अनुकूल
🌳सभी जानते हैं कि शरीर की रक्षा के लिए वस्त्र पहने जाते हैं अतः सर्दी गर्मी या अवसर के अनुकूल ही बस चलिए जाए। जिस गृहणी को वस्त्र विज्ञान के विषय में ज्ञात होगा, वह तो इन बातों को ध्यान में रखकर वस्त्र खरीदेंगे अन्यथा ज्ञान ना होने पर पछतावा करना पड़ सकता है। कौन सी ऐसी प्राकृतिक है अथवा कौन से रासायनिक है उनका भी ज्ञान होना चाहिए। अन्यथा गर्मी में सिर्फ या ऊनी वस्त्र पहने हुए देखकर कैसा लगेगा । पूरी बाजू के ढके हुए कपड़े कितने अजीब लगेंगे या सर्दियों में बिना बाजू वाले वस्त्र तथा आरकण्डी, वायल की साड़ियां दिखने में कितनी अजीब लगेगी। इसके अतिरिक्त प्राकृतिक या निशानी या पशुओं से इनकी भी पूरी पहचान होना हमारे लिए जरूरी है। मौसम के अनुकूल वस्त्र ना पहना हुआ हो तो बहुत भद्दा प्रतीत होता है। रेशे के वास्तविक संवाहक गुणो की जानकारी होना भी जरूरी है।🌳
रंगो का महत्व
🌳तंतुओं की जानकारी के साथ-साथ अनुकूल रंगों के बारे में भी पूरी तैयार होना जरूरी है। सर्दी के लिए गहरे रंग तथा गर्मी के लिए हल्के रंग का चयन ही देखने में अच्छा तथा पहनने में आरामदायक लगता है। वस्त्र चाहे प्रिंटेड , हो या एक रंग के या कोई दृश्य आदि से संबंधित हो, चाहे जो भी हो, होने पक्के रंगों में ही चाहिए जिन पर धूप, बरसात व प्रकाश आदि का असर न हो सके। जो रंग उन वस्तुओं पर प्रयोग किए गए हो, वे अच्छी क्वालिटी के तथा अच्छी विधि से प्रयोग किए गए हों।🌳
वस्त्रों की उचित देखरेख की विधियां
🌳जब वस्त्र संबंधी गुण व दोष देखकर, विचार करके वस्त्र घर में लाया जाए तो मौसम के अनुसार ढंग से उनको सहेजना भी एक कला है, गर्म वस्त्रों को रखते समय और नील डाल कर रखना या Nepthelene balls आदि डालकर रखने से उनमें किराया फफूंदी नहीं लगती है। सलमा तिल्ला आदि काम वाले कपड़ों को सफेद सूती वस्त्र में लपेट कर रखना चाहिए, नहीं तो उनमें किया हुआ काम काला हो जाएगा। जिस स्थान में रखे वहां पर अच्छी तरह से धूप लगा ले ताकि कीड़ा भी ना लगे। डेलिकेट कपड़े को अधिक दबाकर रखना उचित नहीं हैं अन्यथा इनमें कृष अर्थात सलवटे पड़ जाती हैं। इसी तरह के कपड़े को जितना संभाल कर रखेंगे, उनकी रौनक उतनी ही अच्छी लगेगी और वस्त्र भी बहुत समय तक अच्छे रहेंगे।🌳
वस्त्रों की परिष्कृति तथा परिसज्जा:
Textile की जानकारी से ही वस्त्रों की परिष्कृति अर्थात
कपड़े की शुद्धता तथा परिसज्जा यानी उसको सजाना अर्थात वस्त्र का सौंदर्य बनाए रखने के लिए ढंग का भी ज्ञान होता है। नहीं तो महंगा वस्त्र खरीदी तो लिए मगर उस को सावधानीपूर्वक ध्यान से नहीं रखा तो समझो पैसा बर्बाद कर दीया। हम जो वस्तु बाजार से लाते हैं वह मूल रूप से वैसा नहीं होता है। वह पहले तंतु रूप, फिर धागा ,फिर बुनाई ,वह भी कई कई तरीकों का होता है। उसमें शुरू से वस्त्र बहुत रफ क्वालिटी का होता है। इसके बाद उसे रोलर आदि पर से कई रसायनों के साथ मिलो में ट्रीटमेंट दिया जाता है, तब उसका रूप परिवर्तित होता है। इस तरह से वस्त्र सजाने की क्रियाओं के नाम हैं--- बीटिंग, ब्रशिंग, कैलेंडरिंग, ग्लेजिंग, सिरेइंग, शिरीनराइजिंग, सनफ्लाइजिंग, टैण्टरिंग, करेपिंग, कथा मर्सराइजिंग आदि। बताई हुई क्रियाओं में किसी कपड़े पर कोई भी किसी कपड़े पर कोई क्रिया करके तंतुओं को फाइल बनाकर मार्केट में भेजा जाता है जिसको सब करते हैं--- अपने अपने हिसाब से तथा अपने अपने ज्ञान के अनुसार। 🌳
पसंद के अनुसार चयन
🌳घर की आवश्यकता तथा स्वयं की सूझबूझ के अनुसार ही बाजार में से अपने योग्य वस्त्र ही एक ग्रहणी खरीदती है, क्योंकि गृहणी ही परीसज्जा की विभिन्न विधियों को जानती है अलग-अलग क्वालिटी के वस्त्रों को ठीक तरीके से पहचान कर तथा सस्ते या महगें वस्त्रों को श्रेणी के अनुसार उपयोग में लाने की कला वस्त्र विज्ञान से ही मिलती है। जैसे किसी घर में दीवारें कम हो उसके स्थान पर से अधिक हो तो उन पर डबल पर्दे डालने की व्यवस्था, लेकिन रोशनी भी कम नहीं होनी चाहिए। अतः शीशों पर day light लाने के लिए नेट के पर्दे यानी सियर्स का प्रयोग करें और अंधेरा करने के लिए दूसरी रोड पर मोटे पर्दे उसी नेट के मेल से खाते हुए लगाए तो कमरे की खूबसूरती व रोशनी वैसे ही आती रहेगी इसी को परिसज्जा अर्थात refinement कहते हैं।🌳
🌳इसी के साथ ही यह सोचना पड़ता है कि किस वस्त्र का आजकल रिवाज चल रहा है--- यह भी वस्त्र विज्ञान से ही पता चलता है। इसी से गिरिडीह फैशन के मुताबिक किफायती वस्त्र अपने परिवार के लिए लेने में सक्षम रहती है। इसी के साथ परिवार के हर सदस्य का कार्यक्षेत्र, व्यक्तित्व तथा पसंद को ध्यान में रखकर ही वस्त्र खरीदने चाहिए ताकि वस्त्र पहनने से व्यक्तित्व में निखार आए।
बीते हुए फैशन यानी आउट ऑफ फैशन का वस्त्र घर में तो चल सकता है। किंतु कार्यक्षेत्र में नहीं चल सकेगा। किसी भी व्यक्ति को अपने पद व स्टाइल के अनुसार ही वस्त्र का चुनाव करना चाहिए।🌳
🌳इसके अतिरिक्त कुछ विभागों में वर्दी का प्रचलन भी होता है जैसे सेना, पुलिस व डॉक्टरों के सफेद कोट, स्कूली बच्चों की यूनिफार्म। ऐसे संस्थानों में कोई पसंद का ध्यान नहीं दिया जा सकता है। Uniformity लाने के लिए तथा विशेष पहचान बनाने के लिए यह वस्त्र जिस डिजाइन की दिए जाते हैं वैसे ही पहनने होते हैं। यहां पसंद का प्रश्न ही नहीं उठता इसी प्रकार शोक के अवसर पर किसी को लाल-पीले कपड़े पहने देखिए तो अजीब लगेगा और खुशी के अवसर पर किसी को मैंले-गंदे या सादा कपड़े पहने देखोगे तो अच्छा प्रतीत नहीं होता है। ऐसे ही तीज-त्यौहार, उत्सव पर भी सुंदर आकर्षक वस्त्र सभी पहनते हैं। अतः वस्त्र विज्ञान की जानकारी की बदौलत ही फैशन, स्टाइल, पसंद को हम परिवर्तित (modify) कर-करके पहना सकते हैं। इसी को शालीनता का नाम देते हैं।🌳
वस्त्रों की धुलाई कला
🌳जिस वस्तु का प्रयोग नित्य-प्रति होता है उस की साफ-सफाई, धूल उचित तरीकों से करनी पड़ती है। आधुनिक समय में इतने भिन्न भिन्न प्रकार के तंतुओं से कपड़ा निर्माण होता है, सभी को सफाई करने की प्रक्रिया अलग-अलग होती है, क्योंकि कोई सूती है तो कोई रेशमी या कोई ऊनी अथवा रासायनिक है। सभी को धोने की, सुखाने की पद्धति भी अलग-अलग प्रयोग की जाती है। कोई सादा साबुन पानी से तो कोई हल्के गर्म पानी से, कोई इजी (Eezee) से तो कोई रीठो से धोए जाते हैं। किसी को ब्रश से धोना है तो किसी को केबल साबुन के घोल में डुबोकर रखना है तो किसी को नहीं निचोड़ना है तो किसी को लटकाकर सुखाना है। कोई लंबाई नहीं बढ़ जाता है तो कोई चौड़ाई बढ़ता है। परिणाम स्वरूप इन सब बातों की जानकारी हमें वस्त्र विज्ञान से ही मिलती है अन्यथा कपड़े खराब होने का डर होता है । किसी कपड़े को धूप में सुखाना है तो किस वस्त्र को छाया में, किसी को माड़ लगाना है तो किसी को नील मैं डूबाना है। किस वस्तु पर क्षारीय तत्व की, किस पर साबुन की प्रक्रिया होती है और किस पर नहीं। बताया सब कुछ ज्ञान देने वाला वस्त्र विज्ञान ही होता है यानी टेक्सटाइल (Textile) 🌳
🌳अतः हमने वस्त्रों से संबंधित सभी जानकारियां पूर्ण रूप से आप तक शेयर किए। अतः घरेलू स्तर पर, मार्केट के स्तर पर, कथा वैज्ञानिक विधियों को आसानी से समझने के लिए वस्त्र विज्ञान (Textile) का ज्ञान होना अति आवश्यक होता है। अतः फैशन के बारे में जाने से पहले वस्त्र विज्ञान की जानकारी होना अति आवश्यक होता है अर्थात असंख्य किस्मों के वस्त्र आजकल मार्केट में देखने को मिल रहे हैं उनके धोने के लिए भिन्न-भिन्न तरीकों को समझने के लिए यह जानना आवश्यक है कि उनकी उत्पत्ति, बनावट व विशेषताएं क्या हैं ताकि उन्हें ठीक प्रकार से धोया या देखा और समझा जा सके। 🌳
इस आर्टिकल में हमने टेक्सटाइल के बारे में जाना टेक्सटाइल क्या है तथा टेक्सटाइल फैशन से किस प्रकार संबंध रखता है।
टेक्सटाइल के साथ साथ हमें यह भी जाना आवश्यक होता है कि व्यक्तियों के अनुसार कपड़ों का चयन किस प्रकार किया जाए किया जाता है इसके बारे में जाने के लिए नीचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करें 👇

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