प्रिंटिंग के कितने तरीके हैं ? रंगों की पक्की पन की जांच किस प्रकार की जाती है?How many printing methods are there? How is the solidity of colors tested?


                   Printing ( छपाई )

प्रिंटिंग के कितने तरीके हैं ? रंगों की पक्की पन की जांच किस प्रकार की जाती है?How many printing methods are there? How is the solidity of colors tested?

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जीवन में रंगों का महत्व है। रंग प्रत्येक के मन व प्राण है। फिर रंग चाहे जीवन में हो चाहे वातावरण में हो चाहे वस्त्रों में। चारों और रंग ही रंग नजर आते हैं। मनुष्य तो क्या पशु पक्षी तथा जीव जंतु भी रंगों से प्रभावित होते हैं। वस्त्रो को रंगने की पद्धति प्राचीन काल से ही है। तब वनस्पतियों से फूल पत्तों से रंग लेकर बनाकर वस्त्रो को रंगा जाता था। आज भी उस तरीके को और परिष्कृत बनाकर वनस्पतियों से रंग लेकर तथा रासायनिक मिश्रण बनाकर रंग तैयार करते वक्त सभी रंगों के फूल का स्पर्श कराकर वस्त्रों को एक नया look देने की प्रथा चल रही है। 

विभिन्न प्रकार के रंगों का प्रयोग हर प्रकार के वस्त्रों में नहीं किया जा सकता है रंगों की गुणवत्ता और किस रंग का प्रयोग किन वस्त्रों पर किया जाना चाहिए इनकी जानकारी दोनों के गुण दोष जानकारी प्रयोग किया जाए चाहिए। रंग चाहे किसी भी प्रकार से बनाए गए हैं वे सभी घुलनशील होते हैं। 

प्रिंटिंग के कितने तरीके हैं ? रंगों की पक्की पन की जांच किस प्रकार की जाती है?How many printing methods are there? How is the solidity of colors tested?

छपाई (printing) :--  

जब कपड़े भली-भांति रंग जाते हैं तो उनकी दूसरी परीसज्जा छपाई के रूप में होती है। घरेलू तरीकों में बहुत तरीके छपाई के होते थे जिनमें से कुछ आज भी प्रचलित है।

( a) (ब्लॉक प्रिंटिंग) block printing  :- 

ब्लॉक प्रिंटिंग इसको ठप्पों की छपाई कहते हैं । प्राचीन काल से कुछ भी छापने के लिए हाथ से डिजाइन बनाए जाते थे। किंतु जब काम अधिक करने की योजना बनी तो लकड़ी के टुकड़ों पर अपना नमूना छाप कर उसकी कटाई करके एक परमानेंट ब्लॉक बना लिया जाता है। रंग जहां छापना होता है छाप लेते हैं। यह काम हाथ से बनाने से शीघ्र हो जाता है। बहुरंगी ब्लॉक प्रिंटिंग करने के लिए जितने रंगों का प्रयोग करना होता है उतनी ब्लॉक बनाकर अलग-अलग रंगों में रखकर छापा मारना होता है। 

(b)  (रोलर प्रिंटिंग)Roller printing  :- 

इस विधि में रोलरों पर अपना इच्छित नमूना बनाया जाता है। और उससे पूरे थान के थान शीघ्रता से छप जाते हैं। इसमें एक रंग के तथा बहुरंगी दोनों तरह के वस्त्र प्रति घंटा हजारों मीटर छप जाते हैं। नंबर 1 तथा नंबर दो मैं केवल इतना अंतर है कि नंबर 1 यानी कि ब्लॉक प्रिंटिंग हाथ से तथा रोलर प्रिंटिंग मशीन से होती है। 

(c) डुप्लेक्स प्रिंटिंग (Duplex printing) :-- 

इस विधि में छपाई बहुत सुंदर होती है। इसकी छपाई ऐसी होती है मानो बुनाई में ही हो। किंतु इस छपाई को करने वालों को बड़ा सावधान रहना पड़ता है, नहीं तो छपाई बिगड़ सकती है। 

(d) ब्लॉच प्रिंटिंग (Blotch printing ):- 
 
इस printing में नमूने तो छपते ही हैं साथ में खाली स्थान भी छपते हैं। 

(e) निस्सरण प्रिंटिंग (Extract printing ):- 

यह श्वेत नमूने की छपाई होती है ऐसे रोलर जिस पर नमूने बने होते हैं। और उनका ब्लीच से संपर्क रहता है, कपड़ा इन रोलर में देकर कपड़े डिजाइन के अनुसार रंग खींच लेते हैं। ऐसे डिजाइन का स्थान शवेत होकर उभरता है। अधिकतर यह कार्य गहरे रंग के कपड़ों पर किया जाता है इस प्रिंटिंग का दोष यह होता है कि ब्लीच वाला स्थान गल कर हल्का हो जाता है। 

(f) स्क्रीन प्रिंटिंग ( Screen printing) :

स्क्रीन प्रिंटिंग एक बहुत समय लगने वाला महंगा सौदा है। इसको केवल हाथों के द्वारा ही किया जाता है। एक फ्रेम का प्रयोग इस प्रिंटिंग में किया जाता है। जिस कपड़े पर स्क्रीन प्रिंटिंग करनी हो उसे मेज पर बिछा कर दो लोगों की सहायता से फ्रेम बिछाकर रंग लगाते हैं। नमूने में जहां रंग नहीं लाना होता है वहां पर अवरोधक लगा देते हैं। एक से अधिक रंगों का भी प्रयोग इस प्रिंटिंग में करते हैं किंतु अलग रंग के लिए अलग फ्रेम का प्रयोग करना पड़ता है। अत: छपाई महंगी भी है और समय भी अधिक लगता है। 

(g) स्टैंसिल प्रिंटिंग (Stencil printing) :- 

इस विधि को शुरू करने तथा कपड़ों पर छपाई की शुरुआत करने का श्रेय जापानी वैज्ञानिकों को है इसकी कार्यप्रणाली स्क्रीन प्रिंटिंग से मिलती जुलती है। इसमें  डिजाइन को धातु की सीट पर या उनके द्वारा चिकने कागज पर बना लिया जाता है फिर उस सीट का स्टैंसिल काट लेते हैं स्क्रीन प्रिंटिंग के समान एक रंग के लिए एक स्टैंसिल तथा जितने भी रंग प्रयोग करने हो उतने स्टैंसिल कट करने पड़ते हैं। 

स्टैंसिल काट लेने के उपरांत वस्त्र पर बिछाकर दो लोगों की मदद से नमूने को सीधा रखते हुए स्टैंसिल द्वारा कलर कपड़े पर दे आते हैं और यह कलर हाथ की ब्रश द्वारा स्प्रेगन से उस स्टैंसिल के ऊपर लगाया जाता है जो वहां से वस्त्र पर डिजाइन के रूप में जाता है इस प्रकार सुंदर से सुंदर डिजाइन वस्त्रों पर बनते हैं। 

(h) अवरोधक प्रिंटिंग (Resist printing) :-  

यह भी छपाई का अनोखा तरीका है क्योंकि रोलर पर जो डिजाइन चाहिए होता है बना दिया जाता है और डिजाइन के अलावा जहां रंग नहीं चाहिए उस स्थान पर रेजिन युक्त पेस्ट को रंग अवरोधक के रूप में लगा देते हैं और उसके उपरांत वह वस्त्र रोलर पर से गुजारे जाते हैं। अब डिजाइन के रूप में अवरोधक पदार्थ का पेस्ट वस्त्र पर आ जाता है और वस्त्र को रंग लिया जाता है अवरोधक पदार्थ की वजह से सिर्फ डिजाइन वाला भाग रंगा जाता है और बाकी रह जाता है उसके उपरांत वस्त्र को धोकर वह अवरोधक पेस्ट को उतार देते हैं और सुंदर छपा हुआ वस्त्र सामने होता है। 

(I)  ताने की छपाई (warp printing) :--

इस छपाई में तने हुए तानों पर ही डिजाइन अंकित कर दिये जाते हैं। और छपाई के बाद उसमें बाना पुरा किया जाता है। बुनाई करते समयका काम श्वेत रंग के धागों से किया जाता है बाने का धागा एक ही रंग का रखा जाता है ताकि तानों पर की गई पेंटिंग स्पष्ट रहे इस की बुनाई अर्थात weaving में भी कारीगरों को बहुत सावधान रहना पड़ता है इस प्रकार ताने के डिजाइन कलात्मक दृष्टि से बहुत सुंदर प्रतीत होते हैं जिससे कि वस्त्रों का मूल्य भी बढ़ जाता है। इस बुनाई की कठिनाइयों को देखते हुए ही यह अधिक चलन में नहीं है। 

वस्त्रों के रंगों की पक्केपन की जांच
(Testy colour Fastness of fabric 

जो वस्त्र मिलों में तैयार होते हैं चाहे वे सस्ती हो या महंगे हो केवल रंगीन हो या पेंटिंग हो सभी रंगों के पक्के पन का जाच सबसे पहला होता है, क्योंकि वस्त्र प्रयोग उपरांत धुलते हैं, धूप में सुखाए जाते हैं, प्रेैस (आयरन) भी किए जाते हैं, पहनने पर पसीना में भी भिगते हैं। तों जैसे-जैसे वस्त्र प्रयोग किए जाते हैं, वह हल्के रंग के या प्रिंट के होते जाते हैं । 

अतः वस्त्रों के रंगों के जांचने के लिए जो उपयोग होते हैं अब उनके विषय में जानकारी प्राप्त करेंगे। 

1. धुलाई के द्वारा रंग परिवर्तन :-

जो भी वस्त्र लेना हो उसका छोटा सा टुकड़ा धोकर व सुखाकर परीक्षण कर लिया जाता है कि रंग कितना पक्का है अथवा नहीं । साबुन लगाने से पूर्व पानी में ही यदि रंग निकलने लगे तो बिल्कुल कच्चा रंग मानना चाहिए और यदि साबुन लगाने पर निकले तो धोकर सफेद कपड़ो पर फैला कर देखे कि सफेद कपड़े में रंग आया या नहीं और साथ ही उसे प्रेस भी कर दे तो स्पष्ट पता लग जाएगा कि कपड़ों का रंग किस श्रेणी का है धोने के अलावा कपड़े के टुकड़ों को जेवेल वाटर में डालकर भी जांचा जा सकता है। 

2. आयरन करने के द्वारा ( Testing by ironing) :--

धोनें के उपरांत उस गीले कपड़े के ऊपर बार-बार आयरन को रख कर देखा जाता है कि प्रेस के ताप द्वारा कपड़े के रंग में अंतर आया या नहीं। 

3. भाप द्वारा वस्त्र को जांचना (Testing by steam) :-  

जांचने वाले कपड़े के टुकड़ों को लेकर दोनों और एक एक सफेद कपड़ा लगाकर खोलते हुए पानी के ऊपर जाली रखकर उस पर रख देते हैं थोड़ी ही देर के उपरांत स्टीम लगने से मूल कपड़े का रंग सफेद कपड़ो पर लग जाएगा यदि वह रंग कच्चा होगा तो रंग सफेद कपड़े मे छप जाएगा और यदि पक्का होगा तो सफेद कपड़े के टुकड़े सफेद ही रहेंगे। 

4. कपड़े को सूर्य प्रकाश में जांचना (Testing in sunlight):--

सूर्य का प्रकाश भी वस्त्रों के रंग पर असर डालता है अतः वस्त्र का एक टुकड़ा किसी अपारदर्शी मोटे कागज से ढककर कुछ दिनों के लिए धूप में रख दें और कुछ दिनों के उपरांत उस टुकड़े को अपारदर्शी कागज से निकालकर बाकी कपड़े से मिलाने पर पता लग जाएगा कि उस पर धूप एवं सूर्य प्रकाश का प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है या नहीं। 

5. पसीने से वस्त्र की जांच (Testing by perspiration) :--

यद्यपि यह जांच हम पसीने के द्वारा भी कर सकते हैं किंतु कपड़े के टुकड़े को किसी अम्ल के घोल में 10 मिनट तक डुबोकर रख देते हैं फिर उसमें से निकाल कर किसी सफेद कपड़े में लपेट कर रख देते हैं इस प्रकार एक तो वह कपड़ा सूख जाता है। दूसरे रंग का भी पता लग जाता है जो परिणाम आते हैं वही पसीने से भी समझने चाहिए। 

इस प्रकार के वस्त्रों को रंग या वर्गों के द्वारा रंग ना उसके लाभ व हानियां तथा वे रंग युक्त कपड़े बहुत समय तक अच्छी दशा में उपभोक्ता के पास रह सके उसके लिए रंगों की जांच भी जरूरी है उसका तरीका भी हर गृहणी को अथवा घर का संचालन करने वाले को ज्ञात होना चाहिए। 

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