सूती रेशम और ऊनी कपड़ों में से कौन सा कपड़ा कम समय में सूख जाता है और क्यों? Among the cotton silk and woollen which type of fabric dry in a short time and why


           🍈cotton silk and woollen🍈

सूती रेशम और ऊनी कपड़ों में से कौन सा कपड़ा कम समय में सूख जाता है और क्यों?  Among the cotton silk and woollen which type of fabric dry in a short time and why?

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🌲हेलो दोस्तों आज मैं आपको बताऊंगी कि सूती,रेशम और ऊनी वस्त्रों में से सबसे पहले से कौन से कपड़े जल्दी सुखते हैं। 
जैसा कि कपड़े हम सब पहनते हैं पर कपड़े के बारे में उतना नहीं जानते कि कपड़े कि क्या क्वालिटी है, तथा लोगों के मन में बहुत से सवाल उठते होंगे कि यह क्या है, कैसा है, क्यों है, कैसे होता है, तथा ऐसे प्रश्न मन में सवाल उठते है,और बहुत कम लोग ही सभी चीजों के बारे में जान पाते हैं पर अभी के समय आधे से अधिक लोग शिक्षित हैं तथा उन्हें सभी चीजों का ज्ञान हो रहा है। 
अभी के समय में एकमात्र fabric ही ऐसी चीज है जो ज्यादा विक्री पर है। तथा fiber, fabric बनावट, रंग-रूप कपड़ा धोना, सुखाना, प्रेस करना आदि जैसी क्रिया को करना उनके बारे में जानना सभी चाहते हैं। और ज्यादा से ज्यादा सभी चीजों के बारे में जाने के लिए होड़ में लगे रहते हैं। 🌲

🌲हम जानेंगे कि रेशम,सूती,ऊनी कपड़ों में सबसे पहले कौन सा कपड़ा जल्दी सूखता है। इस बारे में पता करने के लिए हमें रेशम छोटी बाहुली कपड़ों के बारे में जानना होगा उसी आधार पर हमें पता चलेगा कि कौन से कपड़े कितने समय तक सूखता है। 

आइए जानते हैं रेशम, सूती व ऊन के बारे में जानने के बाद ही हमें पता चलेगा कि कौन सा कपड़ा जल्दी सूखता है। 🌲

Cotton ( कपास) :-- 

🌲कपास से निर्मित वस्त्र हर घर की शोभा है। शुद्ध कपास के तंतुओं से निर्मित वस्त्र सभी पसंद करते हैं क्योंकि यह बहुत आरामदायक होते हैं। भारत में बनी प्रसिद्ध वस्त्र ढाका की मलमल, शबनम, मखमल तथा अब्रबान आदि कपड़े आज भी विश्व प्रसिद्ध है यह वस्त्र इतने सूक्ष्म व महीन होते हैं । 🌲

भारतवर्ष में उगने वाले कपास की बहुत सारी किस्मे है-- 

कोमाठा कपास 
हिंगनघाट कपास
अमरावती कपास
ब्रोच व सूरत कपास
धारवाड़ कपास 
फ्रीनी घाटी कपास
बंगाल कपास
धैलराज कपास
सिंध पंजाब कपास

🌲इन सब कपासो के गुण व लंबाई में अंतर है। भारत में मध्य प्रदेश, हैदराबाद, मुंबई, चेन्नई तथा पंजाब में कपास की खेती होती है। 
अर्थात, रेशे छोटे-छोटे होने के कारण ही इनसे मजबूत वस्त्र बनता है। 
कपास की dimensional stability के कारण ही इसमें सिकुड़ने व फैलने की शक्ति नहीं आती है। इसकी बुनाई करते समय जब धागे पर तनाव आता है तो उसी में कुछ लंबाई चौड़ाई में खिंचाव आ जाता है। इसकी वजह से पहली बार धोने में कपड़े की लंबाई व चौड़ाई में अंतर आ जाता है किंतु बाद में कोई परिवर्तन नहीं होता। 🌲

🌲सूती वस्त्र यह गुण कपास के रेशों में सबसे अधिक मात्रा में पाया जाता है। यही कारण है कि गर्मियों में उपभोक्ता इस वस्त्र को लेना चाहते हैं। तौलिए,रसोई के लिए डस्टर पौंछे आदि इस प्रकार के वस्त्र कपास निर्मित रेशे से बनते हैं। इनमें नमी की मात्रा भी देर तक रहती है। क्योंकि भीतरी नमी को रेशों में वाष्पित होना पड़ता है । 🌲

🌲कपास जैसा कि आप जानते हैं कि या वस्त्र छोटे-छोटे रेशों से बनता है अतः इसकी सतह खुरदरी होने के कारण जल्दी गंदे हो जाते हैं किंतु इन वस्त्रों की सफाई कोई कठिन नहीं है क्योंकि यह आसानी से रगड़ना, कूटना आदि पद्धतियों के द्वारा साफ कर लिया जाता है अधिक गंदे कपड़े उबाले जा सकते हैं सस्ता,महंगा दोनों तरह के साबुन का प्रयोग इन कपड़े पर किया जा सकता है। 🌲


🌲सूती की बुनाई में स्पेस ज्यादा होता है इसलिए जब हम cotton के वस्त्र धुलने पर पानी उस space में ठहर जाता है और जल्दी पानी निकल नहीं पाता जिस वजह से cotton के वस्त्र धुलने पर जल्दी नहीं सूखते ।🌲

  Silk ( रेशम ) :-- 🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿
   

🍃रेशम एक अभिजात्य वर्ग के पहनने वाला उत्तम क्वालिटी का  वस्त्र है तथा रेशमी वस्त्रों में अपनी ही मजबूती, चिकनापन, कोमलता, आकर्षक, चमक तथा विलक्षण मजबूती सभी रेशों में सबसे अधिक होने के कारण इसे वस्त्रों की रानी भी कहा जाता है। 🍃

🍃भारत के ही समान वर्षों पूर्व चीन, जापान, कस्तूंतुनिया, वेनिस, फ्लोरेंस मिलान आदि स्थानों पर भी सिल्क का प्रचलन था और आज भी अनेकों ऐसे स्थान देश व शहरों में सिल्क का उद्योग खूब चल रहा है दिन प्रतिदिन सिल्क को पसंद करने वालों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। 🍃

🍃आधुनिक युग में सिल्क के उत्पादन का काम सर्वप्रथम वैज्ञानिक विधि से करने का श्रेय जापान को है इसी के साथ ही चीन,कोरिया, इटली, स्पेन, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, टर्की, ग्रीस सीरियल, बुलगारिया  तथा ब्राजील में भी बड़े पैमाने पर रेशम के उत्पादन का कार्य होता है। भारत में सिल्क उत्पादन के लिए मैसूर, जम्मू-कश्मीर, बंगाल, बिहार तथा बैंगलोर आदि शहर प्रसिद्ध है। उड़ीसा, मद्रास, कर्नाटक व हैदराबाद में भी सिल्क निर्माण होता है। 🍃


🍃सिल्क नमी सोख ने में सक्षम है, किंतु शीघ्रता से इसकी नमी खत्म नहीं होती है इसी कारण यह पहनने में आरामदायक है। सिल्क चिकनी, चमकदार सतह होने के कारण जल्दी से गंदा नहीं होता है किंतु जब धोएं तो हल्के साबुन के घोल में और रगड़-रगड़ कर ना धोएं। या तो गुनगुना पानी प्रयोग करें अथवा ताजे पानी से धो लें। कस कर ना निचोड़े। 🍃

रेशम हमें कीड़ों से प्राप्त होता है इसकी बुनाई बहुत ही बारीकी से होता है रेशम की बुनाई में स्पेस नहीं होता है जिस वजह से सिल्क से बने वस्त्र धुलने पर पानी सरक जाता है। वस्त्र में ठहरता नहीं है और वस्त्र बहुत जल्दी सूख जाता है। 

Wool ( ऊन):-


🍂ऊन एक प्राकृतिक किंतु प्राणी जन्य रेशा है। इससे बने वस्त्रों का प्रयोग सर्दी के मौसम में किया जाता है। क्योंकि यह एक गर्म रेशा है । 
यह तो आप सभी जानते हैं कि विभिन्न पशुओं से प्राप्त जंतुओं से ऊन का निर्माण होता है। ऊन बनने तक इसकी विभिन्न प्रक्रियाएं होती हैं। यदि बारीकी से देखा जाए तो प्रत्येक भेड़ के शरीर से 15 से 20 श्रेणियों का ऊन प्राप्त होता है। 🌷

उनमें पानी सोखने की क्षमता बहुत अधिक रहती है गीला होने पर भी यह गिला नहीं दिखता है वातावरण की नमी को भी सूखने की सामर्थ रखते हैं इसी कारण इनके सूखने में अधिक समय लगता है। 
 
ऊनी वस्त्रों को हल्के साबुन के घोल में धोना चाहिए अधिक रगड़ना नहीं चाहिए यह वस्त्र रगड़ नहीं सहन कर सकते हैं गीले होने पर कमजोर हो जाते हैं प्रयत्न करना चाहिए की शुष्क धुलाई का प्रयोग हो। 


🍂ऊन के रेशे मोटे होते हैं क्योंकि ऊन हमें भेड़, जंगली बकरी आदि जानवरों से प्राप्त होते हैं और उनके बाल मोटे होते हैं जिस वजह से हमें रेशें भी मोटे प्राप्त होते हैं ऊन के वस्त्र रेशे से बनी बुनाई में भी स्पेस ज्यादा होने के कारण वस्त्र भूलने पर पानी वस्त्र में ठहर जाता है और सूखने में समय लगता है कॉटन की अपेक्षा ऊन से बने वस्त्र सूखने में ज्यादा समय लगाते हैं। 🌷


इससे हमें ज्ञात हुआ cotton, silk, woolen मैं सबसे जल्दी सूखने वाला वस्त्र Silk होता है। 

फैशन और टेक्सटाइल के क्षेत्र में अधिक महिला उन्मुख क्यों हैं इसके बारे में जाने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें। 👇


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फैशन और टेक्सटाइल क्षेत्र अधिक महिला उन्मुख क्यों है? Why fashion and textile field is more women oriented?



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Why fashion and textile field is more women oriented?फैशन और टेक्सटाइल क्षेत्र अधिक महिला उन्मुख क्यों है?

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🐭फैशन ऐसा वर्ग हैं जिसमें हर व्यक्ति फैशन के क्षेत्र में जाना चाहता। और अपनाना चाहता है। फैशन के द्वारा ही दुनिया देखने में रंग-बिरंगे और स्टाइलिश लगते हैं। Textile "वस्त्र विज्ञान" एक ऐसा वर्ग है जिसके द्वारा हम फैशनेबल दिखते हैं। 🐭


🐭फैशनटेक्सटाइल के क्षेत्र में आदमी और औरत दोनों में ही उन्मुखक्ता देखने को मिलती है । पर ज्यादा से ज्यादा फैशनटेक्सटाइल के क्षेत्र में महिलाएं फैशनेबल व स्टाइलिश दिखना चाहती हैं। आज के समय में टेक्सटाइलफैशन इतना आगे की और उन्नति कर रहा है साथ ही नए- नए डिजाइनटेक्सचर वस्त्र बनने लगे हैं कि व्यक्ति इसकी और तेजी से बढ़ रहा है। 🐭


🐭अब हम जानेंगे आखिर अधिक से अधिक महिलाएं फैशनऔर टेक्सटाइल के क्षेत्र में इतनी उन्मुख क्यों दिखाती हैं ?
यह जानने से पहले हम फैशनटेक्सटाइल के बारे में जानेंगे।
फैशन और टेक्सटाइल के बारे में जानने के बाद हमें पता चलेगा कि अधिक से अधिक महिलाएं फैशनटेक्सटाइल  के प्रति उनमें इतनी उन्मुखता क्यों रहती है। 🐭

आइए जानते हैं- 👇

फैशन ( fashion) :-🌈🌈
फैशन के क्षेत्र में नए-नए वस्त्रों के डिजाइन, स्टाइल का समय के अनुसार धीरे-धीरे विकास हुआ । और आज के समय फैशन क्षेत्र बहुत ऊंचे लेवल पर है।


🐭फैशन के अनुसार वस्त्रों को आकर्षकसुंदर बनाने के लिए डिजाइन का ही महत्वपूर्ण स्थान होता है जिसको देखकर फैशन और भी समृद्धि की ओर बढ़ता है। तथा परिधान के विशेष सुंदर बनाने के लिए उस पर खूबसूरत डिजाइन बनाना पड़ता है और खूबसूरत डिजाइन से पूर्ण वस्त्र जब शरीर पर सुंदर फिटिंग से सजता है तो पहनने वाला वह बनाने वाला दोनों ही खिल उठते हैं। 🐭

अतः परिधान विकास में श्रेष्ठ कार्य वस्त्र को आकर्षक बनाना है, और भिन्न-भिन्न आकृतियों पर उसको फिट करना है तभी हम अपने कार्य में सफल हो सकते हैं। फैशन का संसार बहुत बड़े पैमाने पर प्रतियोगी है वह भी विशेष रूप से उच्च कोटि का फैशन जो सिने स्टार या मॉडल्स से फैलता है। 

फैशन डिजाइनर इन परिधानों में ऐसी कला का प्रदर्शन करते हैं जो देखने वालों को मोहित कर लेती हैं और व्यक्ति उसकी और आगे की ओर बढ़ता रहता है । इन परिधानों को धारण करने वाले व्यक्ति इनको पहनकर उनकी कलाकार अर्थात फैशन का भरपूर प्रदर्शन करते हैं। जिसे देखकर लोग उसी फैशन के दीवाने हो जाते हैं और अपना लेते हैं । 

फैशन सिर्फ वस्त्र से संबंधित नहीं होते बल्कि फैशन वह होता है जो हाव-भाव, वस्त्र, केस, विन्यास, आभूषण पहनना आदि सबकुछ फैशन में ही शामिल होता है । 

Textile वस्त्र विज्ञान :-- 



Textile यानी वस्त्र विज्ञान जिसमें वस्त्र आते हैं। उसी को वस्त्र विज्ञान कहते हैं। वस्त्र कैसे बनते हैं तथा कपड़ा कैसे तैयार होता है किन किन कार्यों द्वारा फैब्रिक तैयार होता है और पहनने योग्य वस्त्र तैयार होता है यह सब वस्त्र विज्ञान में आते हैं। 


🍈Textile "वस्त्र विज्ञान" वह विज्ञान है जिसमें वस्त्र तैयार होने के साथ-साथ किन किन परिस्थितियों का सामना कर परिधान के लिए कपड़ा तैयार होता है। तथा उस कपड़े का उपयोग फैशन क्षेत्र में फैशनेबल रुप से प्रदर्शित किया जाता है। फैशन क्षेत्र में किसी भी परिधान को  डिजाइन करके लोगों के सम्मुख इस तरह प्रस्तुत करते हैं उसे देख लोग लेने को आतुर हो जाते हैं। 

पहले समय की अपेक्षा अब के समय Textile"वस्त्र विज्ञान" काफी उन्नति पर है। तथा तरह-तरह की रेशों का उपयोग से वस्त्र तैयार किया जा रहा है। व प्रकृति रेशो की अपेक्षा बनावटी रेशों से तैयार कपड़ा ज्यादा से ज्यादा बनाया जा रहा है। जिसके लोग दीवाने हो रहे हैं। 🍈

🌱और फैशन क्षेत्र में उसी कपड़े को डिजाइन देकर स्टाइलिशआकर्षक वस्त्र तैयार किए जा रहे हैं। तथा अभी के समय बनावटी रेशे से बने परिधान को ही लोग ज्यादा पसंद कर रहे। अभी के समय सबसे ज्यादा बिक्री बनावटी रेशों से बने designer dresses और foot wear आदी चीजों की बिक्री हो रही है। 🌱

🍁अर्थात आखिर क्यों अधिक से अधिक महिलाएं फैशन और टेक्सटाइल के क्षेत्र में इतनी उन्मुक्त व उत्सुकता दिखाती हैं
आइए जानते हैं----- 

🌿अधिकतर महिलाएं फैशन करने में व स्टाइलिश दिखने के लिए किसी भी हद तक जाती हैं। चाहे वह किसी भी तरह का फैशन हो आज के समय में टेक्सटाइल इतनी वृद्धि पर है कि कई तरह के रेशों का उपयोग कर कपड़ा तैयार करके डिजाइनर परिधान बनाया जा रहा है तथा बुनकर तरह-तरह की फैब्रिक बुनाई व प्रिंटेड बुनाई बुन रहे और मार्केट में हर एक डिजाइन के कपड़े मिल रहे हैं और लोग उस और आकर्षित हो रहे हैं। 🌿

🌾अभी तक के समय में सबसे ज्यादा popularity printed fabric  की है। 
और व्यक्ति अब के समय में साधारण डिजाइन के वस्त्र को ही अधिकतर चुनते हैं। तथा वस्त्र के डिजाइन को मायने ना देते हुए वे व्यक्ति कपड़े को देखता है कि किस तरह का कपड़ा है उसी अनुसार वह पोशाक तैयार करता है। 🌾

🌈अधिकतर से अधिकतर महिलाएं fashion or textile की और ज्यादा आकर्षित होती हैं। क्योंकि मार्केट में नए नए तरह के वस्त्र बनने लगे हैं। women, little girl,  tinez girl आदि सभी के लिए मार्केट में ज्यादा से ज्यादा बिक्री देखने को मिल रही है। 

उसी अनुसार महिला उसे खरीदनेपहनने के लिए आतुर रहती हैं और ज्यादा रुचि दिखाती हैं। उनमें उत्सुकता रहती है कि सबसे अलग वह सबसे सुंदर हम लगे तथा लोगों से हटकर दिखे यह बदलाव स्त्रियों में ज्यादा देखने को मिलता है।  🌈

🍁पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों मैं यह बदलाव  फैशनटेक्सटाइल के प्रति देखने को ज्यादा मिलता है। फैशनटेक्सटाइल के प्रति यह भावना उनमें इसलिए देखने को मिलता है। इसका मुख्य कारण है तरह-तरह के बनावटी रेशों से प्राप्त फैब्रिक और अंगराग ( Cosmetics)  जो लोगों के दिल में उतर सा गया है लोग उसी के पीछे भाग रहे हैं। 🍁

🍁अर्थात कहने का तात्पर्य है कि फैशन व टेक्सटाइल इतने नए नए तरह के देखने को मार्केट में मिल रहे हैं। कि अधिक से अधिक महिलाएं उसे अपनाने व खरीदने की होड़ में लगी रहती हैं। 

हमने जाना फैशनटेक्सटाइल के बारे में तथा पुरुष की अपेक्षा महिलाओं में ज्यादा फैशनटेक्सटाइल की और भाग रही हैं। उनमें उत्सुकता रहती है कि हम लोगों से अलग दिखें महिलाएं वस्त्र के साथ-साथ में Makap, jwellary, Hair Style,  आदि सभी चीजों में ज्यादा रुचि लेती हैं।  और इन सभी का उपयोग कर सबसे अलग दिखना चाहती हैं यही कारण है कि अधिक से अधिक महिलाएं फैशनटेक्सटाइल के क्षेत्र में खुद को अलग दिखने की होड़ में लगी रहती है। 🍁

🌿हमने जाना फैशन व टेक्सटाइल के बारे में कि अधिक से अधिक महिलाएं Fashion व Textile वर्ग के पीछे क्यों भागती हैं। उम्मीद है आप लोगों की उलझन ( confusion) दूर हो गई होगी समस्या का हाल मिल गया होगा। 

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Textile 

Fashion 



















भारत के पारंपरिक वस्त्र

 

                   Traditional Textile 

Introduction :-

Traditional Textile of India ( भारत के पारंपरिक वस्त्र ) 


1.हम जानेंगे भारत के पारंपरिक वस्त्र के बारे में भारत में पहने जाने वाले पारंपरिक वस्त्र क्या है?

2.तथा कौन-कौन तरह के वस्त्र धारण किए जाते हैं।

3.भारत की बुनकर कला के विषय के बारे में जाने

4. बुनकर कला किन किन कारणों से प्रभावित होती रही है।

5.ढाका की बुनकर कला के विषय में विस्तृत विवरण

6.पैठोणी कला तथा पटोला मे अंतर क्या है किसे कहते हैं?

7.बांधनी कला क्या है? यह किन राज्यों में तैयार की जाती है?

8.जरी की कढ़ाई किस प्रकार होती है। 

9.फुलकारी वह लखनऊ की कढ़ाई में अंतर 

10.भारतीय प्राचीनता को लिए हुए कितनी प्रकार की कढ़ाई भारत में प्रचलित है। 


इन सभी के बारे में details में जाने :-🍒🍒

🍈जिस देश की प्राचीन सभ्यता को देखना हो उस देश के प्राचीन साहित्य व इतिहास को पढ़ने से उस देश की प्रगति व प्राचीनता का ज्ञान हो जाता है। यह भी इतिहास से ही ज्ञात होता है कि भारत की कला एवं संस्कृति की धाक दूर-दूर तक फैली हुई थी। 

🍒चाहे वस्त्र निर्माण हमारा एक कुटीर उद्योग के रूप में ही था किंतु उसकी कार्य श्रेष्ठता के कारण उत्कृष्ट माना जाता था। और वैसी ही मांग भी अधिक थी। बनाने वालों के व्यक्तित्व की उनके कार्यों में उत्कृष्ट छाप होती थी। भारत में बनी वस्त्र को विदेशों में पहुंचाने का कार्य अरबी व्यापारी  करते थे। धीरे-धीरे राज महलों के राजाओं का सहयोग भी बुनकरों को मिलने से उनके काम में भी सुधार हुआ। उनकी आर्थिक स्थिति भी बदली और कार्य में दिन दूनी सफाई आने से मांग भी बढ़ी। 

🍒अन्य कलाओं की प्रगति के साथ-साथ वस्त्र निर्माण अपने चरमोत्कर्ष पर था। और समय-समय पर सिल्क ब्रोकेड मलमल आदि वस्त्रों का निर्माण राजघरानों की मांग पर नित्य रूप में होता था। धर्म प्रचारकों के देश विदेशों में आने जाने से उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर भारतीय वस्त्रों का प्रचलन दूर-दूर तक हो गया लोगों को तथा राजाओं को प्रसन्न करने हेतु बुनकर इन वस्त्रों में अपने व्यक्तित्व तथा अपनी अभिरुचियों को पिरो कर बनाते थे, जो बहुत सजीव से दिखाई देते थे धीरे-धीरे राजाओं व बादशाहों के सहारा देने से इन कला में दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति हुई वर्ल्डवुड के अनुसार,🍒

 🌲भारत में बनाई गई कला चरमोत्कर्ष पर थी और यहां पर जरी के ब्रोकेड वस्त्र तथा सूक्ष्म मलमल के वस्त्र आदित्य होते थे। 

वस्त्रों के नामकरण, प्रायः निर्माण के स्थान के आधार पर ही रखे जाते थे। जैसे बनारस तथा सूरत की ब्रोकेड, ढाका की मलमल, कश्मीर की पशमीना, गुजरात की पटोला एवं बांधनी वस्त्र, अपने रंगों सूक्ष्मता के उत्कृष्ट उदाहरण थे और आज भी वैसे ही विख्यात हैं। 🌲

🌲भारत के हर प्रांत में अपना एक विशिष्ट पहनावा है। उत्तर में कश्मीरी पहनावा तथा फिरन का, तो दक्षिण में साड़ी का, पूर्व में कोलकाता या कालीकट की विशेष साड़ियां तो पश्चिम में भी साड़ी। कहने को साड़ी एक है किंतु अलग-अलग स्थानों में अलग-अलग तरह से साड़ी को बांधने की परंपरा है। पंजाब में सूट चमकीले-भड़कीले हैं, तो हरियाणा में साफा व 60 हाथ वाले घेर के लहंगे, चाहे अब वे सब सलवार कमीज वाले ही हो गए हैं। पहाड़ों में रहने वाले की पोशाकों की अपने ही अलग स्टाइल होते हैं। यह अलग-अलग प्रांतों में की पोशाके कैसे प्रभावित होती हैं।🌲

आइए जानते हैं:- 

1. धार्मिक कृत्यों से प्रभावित:- 🍥🍥

हमारे बुनकर अपने-अपने धर्म से बहुत प्रभावित थें। मंदिरों की कृतियों को देखकर वहां पर पत्थर में चित्रकला को वे बुनकर अपने वस्त्रों की बुनाई में उतार कर तैयार करते थे तो देखने वाले आश्चर्य से परिपूर्ण हो जाते थे। जैसे जगन्नाथ मंदिर में श्री कृष्ण सुभद्रा व बलराम को देखकर उसी को अपनी बुनाई में बनाते थे। इस प्रकार दूर-दूर तक हमारी सभ्यता की छाप जाती थी। 

2. जलवायु से प्रभावित स्थान:- 🍀🍀

शीतल स्थानों के जनजीवन को गरमाई की आवश्यकता होती थी, तो वहां पर गरमाई देने वाले गर्म व मोटे वस्त्र तथा गर्म स्थानों के जनजीवन को प्रभावित करने वाली गर्मी से बचने के लिए महीन व सूक्ष्म वस्त्र मलमल व अन्य भारी वस्त्रों को धारण करने के लिए लोग लालायित होते हैं और वही हमारी परंपराओं में शामिल हो गया। इस प्रकार लोग मौसम के अनुसार वस्त्र पहनना पसंद करते हैं और पसंद के साथ ही अपनी हैसियत के मुताबिक भी वस्त्रो को अपनाते हैं। 

3. प्रकृति से प्रेरणा:-🌾🌾

Textile design  के संबंध में प्रकृति एवं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। Textile design  मैं अनेक प्रकार के वनस्पति को डिजाइन ओं को लोगों की रूचि के अनुसार सजाने के लिए प्रेरणा प्रकृति से ही मिलती है। जितने भी हम डिजाइन देखते हैं बनाते हैं वह सब प्रकृति से ही प्रेरणा मिलती है। 

4. सामाजिक परिवेश तथा जीवन:-🐬🐬

 Textile design  मैं बहुत से वस्त्रों की बुनाई में लाने के लिए बुनकरों को अथाह श्रम करना होता है। जिससे उनको विशेष महत्व दिया जाता था। 

5. राजकीय व अभिजात्य वर्ग द्वारा संरक्षण व पोषण:-

🌿🌿राजकीय अभिजात्य वर्ग द्वारा बुनकरों को प्रोत्साहन देने का कार्य राजमहलों में बहुत होता था जुलाह अच्छे-अच्छे वस्त्र बुनकर राजा महाराजाओं व रनिवास में दिखाने जाते थे। वहां उनसे उनको अच्छी आय वह इनाम ही मिलते थे और अधिक अच्छा काम करने की प्रेरणा भी मिलती थी। इसी प्रकार के बूते पर अनेकों कामगारों के परिवारों का पालन पोषण राजमहल ओ द्वारा हुआ करता था इस प्रकार बहुत से कारीगरों को तथा बुनकरों को पारितोषिक व प्रशासन भी मिलता था। 

इस प्रकार आपने देखा कि वस्त्र उद्योग का धीरे धीरे प्रांतो, शहरों मैं कैसे-कैसे विकास होता गया। वस्त्रों का नाम उनके शहरों या कामगारों के नाम पर ही पड़ गया जैसे सिंध में बने संदालिन या कालीकट में बने कैलिको । 🌿🌿

अब हम जानेंगे भारत के परंपरागत वस्त्रों में से अधिक प्रसिद्ध वस्त्रों का विवरण उनके बारे में---

1. ढाका का मलमल :- 🐤🐤

ढाका की मलमल आज भी प्रसिद्ध है उस काल में लोगों ने तो उस मलमल को देखा वह प्रयोग किया था। किंतु आज के समय के लोग उस मलमल की कल्पना करते हैं कि मलमल का एक थान माचिस की डिब्बी में समाता था। जरा सोचिए उस काल के कारीगरो की कारीगरी। कैसे वह मलमल को  बुनते होंगे। मलमल अनुकूल तापमान में ही बनाए जाती थी क्योंकि उसके धागे इतने बारिक होते थे कि गर्मी सर्दी में भी उष्मा से चटक जाते थे और केवल वर्षाकाल में ही इन्हें बुना जाता था। जबकि नमी का वातावरण होता था। तथा अंग्रेजों का यह मानना था कि कोई भी मशीन इतना महीन कपड़ा नहीं बुन सकती जितना कि वह बुनकर बुना करते थे।

2. ढाका की साड़ियां:- 🐬🐬

 ढाका की साड़ियां बहुत कलात्मक होती थी। उनकी सुंदरता की नकल कोई नहीं कर पाता था। ढाका की साड़ियों को जामदानी के नाम से जानते थे। इन साड़ियों की तिरछी कढ़ाई वाली साड़ी को "तेरछा"तथा फूलों के गुच्छों वाले नमूने की साड़ियों को "पन्ना हजारे",फुलवारी साड़ी को फुलवार और बड़े-बड़े फूलों वाले को "तोरदार" कहते थे। इन साड़ियों की विशेषता पल्लू तथा बॉर्डर में ही होती थी। इनमें अनुपम प्रकृति के नमूने बेल बूटे व पंछी भी बने होते थे। 

3. चंदेरी साड़ियां:--🐬🐬

ग्वालियर के चंदेर प्रांत में निर्मित यह सूक्ष्म, सुंदर व अद्भुत साड़ियां बनती थी तथा चंदेरी के नाम से आज तक प्रसिद्ध है। इन साड़ियों की विशेषताएं थी कि सोने चांदी का काम इन में सूती और रेशमी धागों के साथ होता था। कोई कोई डिजाइन ऐसे भी होते थे कि दोनों तरफ दो रंगों के होते थे आज कल गर्मियों के मौसम में अभिजात्य वर्ग द्वारा चंदेरी की साड़ियां ही अपनाई जाती है क्योंकि यह बहुत अधिक महंगी होती है। 

4. बालूचरी साड़ियां:-- 🐝🐝

बालूचरी साड़ियां भी मुर्शिदाबाद के समीप बाल उच्च प्रांत में बनती थी उनका नाम बहुत अधिक सुंदर होता था हर तरह के बेल बूटे फूल सुगंधित बेगम रामायण महाभारत के पात्र आदि बहुत तरह के डिजाइन इन साड़ियों की शोभा को दोगुना करते थे आज के समय में भी बालू पर अपनी कला के लिए प्रसिद्ध है। 

5. ब्रोकेड:-🐩🐩

जिन वस्त्रों में खनिज रेशों का प्रयोग कॉटन या सिल्क के रेशों के साथ किया जाता था वह ब्रोकेड कहलाते थें। इन वस्त्रों में प्राय: सिल्क या कॉटन का रेशा उल्टी और रहता था और सिर्फ सोना या चांदी का रेशा ही दिखता था। उसकी चमक आदित्य होती थी। 

ब्रोकेड के वस्त्र कई प्रकार के होते हैं -

(a)  कामख्वाब (Dream Like  Beauty) :-🍓🍓

कामख्वाब का अर्थ "स्वप्न सदृश्य सौंदर्य" इसके नाम से इस वस्त्र का सुंदरता का अनुमान लगाया जा सकता है। इन वस्त्रों में सोने चांदी के चमकदार तारों के प्रयोग के द्वारा जब बेल बूटे बनाए जाते थे तो देखने वाले उसकी सुंदरता को देखकर दांतो तले उंगली दबा लेते थे अर्थात वस्त्र की उल्टी साइड में कॉटन सिल्क ही होता था और ऊपर की सीधी साइड में सोने चांदी से बना हुआ बेल बूटे या डिजाइन नीचे की ओर सिल्क की बीविंग इसलिए आवश्यक होती थी ताकि शरीर पर सोने-चांदी की खरोच ना लगे वस्त्र पहने पर शरीर में तकलीफ महसूस ना हो ये वस्त्र सोने चांदी के कारण बहुत महंगे ही होते थे उनका प्रयोग या तो राजघरानों में या धनिक वर्ग ही करता था स्वप्न से भी किसी अर्थ में इसका सौंदर्य कम अनुभव न हो सके, इसलिए इसका नाम कामख्वाब रखा गया इसका बहु प्रचलित नाम खीमख्वाब भी है। 

(b)  वफ्त अथवा पा़टथान :-  🌳🌳

इस वस्त्र से भी लहंगे, अचकन, अंगरखे आदि बनाए जाते थे। इनमें भी सिल्क धागों के साथ सोने चांदी के नमूने उकेरे जाते थे। रंगीन सिल्क धागों में सोने चांदी की चमक आदित्य होती थी। 

(d)  हिमरस तथा अमरस :-🐪🐪

हिमरस गर्मियों में पहना जाने वाला वस्त्र था क्योंकि यह कॉटन के साथ मिलाकर बनाया जाता था गर्मियों में ठंडक देने के उद्देश्य से ही इसको कॉटन के साथ मिलाकर बनाते थे जबकि अमरस को सिल्क के साथ बनाया जाता था इसकी बीविंग फ्लैटिगं स्टाइल में जहां सिल्क के धागे उल्टी और को रह जाते थे जिसमें वस्त्र खुला खुला सा लगता था और सोने चांदी के तारों की खरोच स्क्रीन पर नहीं लगती थी आज कल भी हैदराबाद में ऐसे वस्त्र बनते हैं किंतु अब सोने चांदी के स्थान पर सब नकली काम होते हैं इसलिए इसकी झलक पहले की तरह नहीं होती है प्लास्टिक स्टील के रेशें से बनाकर उसी से काम किए जाते हैं। 

सब हमारे ब्रोकेड मैं आते हैं

अब हम जानेंगे भारत के पारंपरिक वस्त्र पितांबर के बारे में

6. पितांबर:-- 🐭🐭

पैठणी वस्त्र को ही पितांबर के नाम से जाना जाता है। पैठण जो कि हैदराबाद में स्थित है वहां बनाने के कारण ही इसको पैठणी नाम दिया गया था। यह भी सिल्क से निर्मित जालीदार वस्त्र होता था जिस पर सोने के तारों से लाइन बने होते थे आंचल वह बॉर्डर अलग तैयार करके साड़ी के साथ जोड़े जाते थे यह वस्त्र प्रायः चटक रंगों में बनाए जाते थे इन पर गमले फूल फूलदान लताएं हंस व अन्य पक्षी भी सोने के तारों से बनाए जाते थे की कलाकारी खिलती हुई दूर से ही नजर आती थी विशेष पूजा के अवसरों पर यह नारायण जी या लाल पैठणी वस्तुओं का प्रयोग राजघरानों में होता था। 

7. पटोला:-- 🐣🐣

कटियावाड़ तथा गुजरात में बनाए जाने वाले वस्त्र महिलाओं में  सौभाग्य सूचक माने जाते हैं। तरह-तरह के डिजाइनों तथा रंगों से युक्त यह साड़ियां आदित्य होती हैं ।

इनके बॉर्डर खूबसूरत जरी के काम के होते हैं। यह सस्ती साड़ी भी ₹2000 से शुरू होकर बहुत ऊंचे दामों तक बिकती है । यह प्रायः सिल्क की भिन्न-भिन्न क्वालिटी की बनती है।

इनके डिजाइन प्रायः बुनाई में ही बनते हैं । डिजाइन बुनाई के सिल्क धागे पहले ही रंग लिए जाते हैं। कपड़े में बनाए जाने वाले डिजाईनों को अलग से बना कर रखा जाता है और फिर उसी के अनुसार वीविंग में वह डिजाइनर आते हैं।

सिल्क के धागे पहले हल्के रंग में, फिर उससे गहरे रंग में और फिर से गाड़े रंग में कई कई बार बांधकर रंगते हैं और उसके उपरांत पूर्व योजना के अनुसार उन धागो का प्रयोग किया जाता है। 

इस प्रकार प्लेन व रंगे धागों को परस्पर बुनने के लिए बहुत सावधानी का प्रयोग करना होता है। इससे टेंपल (Tample design), चिड़िया, मोर, हाथी, टोकरी आदि डिजाइन का प्रायः प्रयोग करते हैं।

ये वस्त्र काठियावाड़ गुजरात के अलावा मुंबई, सूरत तथा अहमदाबाद में  भी बनने लगी है। प्रायः इन वस्त्रों में तथा डिजाइनों में लाल, पीले, हरे रंगों का प्रयोग तथा उनका मिश्रित रूप में प्रयोग होता है। 

8. बांधनी ( Tie and Die) :-- 🐣🐣

बांधनी यह स्टाइल राजस्थान, गुजरात, काठियावाड़ आदि राज्यों का प्रसिद्ध व चहेता स्टाइल है। वस्त्रों में जैसा भी डिजाइन बनाना हो, वैसा ही उस पर बना कर उसमें डालें, चावल तथा अन्य दानो को बांधकर फिर उनको रंगा जाता है। 

ये वस्त्र 3-3 या कई बार चार रंगों के भी होते हैं। सुहागिनों के लिए मंगलमयी तथा सौभाग्य सूचक माने जाते हैं। यह रंग बिरंगे रंगों से वस्त्र उल्लास व तरुणाई के प्रतीक समझी जाते हैं। 

गुजरात व राजस्थान की बांधने वाली स्त्रियां बिना डिजाइन छापे की डिजाइन को बांधकर बना लेती हैं। यह भी कई-कई रंगों में रंगा जाता है पटोला और बांधनी में अंतर यह है कि इसमें कपड़े को बांधकर फिर रंगा जाता है।

पटोला के अनुसार इसमें भी पहले हल्के रंग में रंगते हैं, फिर उससे गहरे में तथा फिर और गहरे रंग में रंगते हैं। बांधने का काम धागों से करते हैं कई बार उन बंधे हुए धागे पर मोम लगा देते हैं ।

ताकि उस हिस्से पर गहरा रंग ना चढ़ाने पाए। इस बंधनी क्रिया में परंपरागत नमूने जैसे  नतर्कि, पशु-पक्षी, फूल आदि तथा बेल-बूटे कई-कई रंगों में रंग कर बनाए जाते हैं। कुछ रंगने वालों की कार्यकुशलता ऐसे भी हैं कि एक ही वस्त्र के दोनों तरफ, दो प्रकार के नमूने को रंग कर तैयार करते थे, जिसे देखकर कलाकार की कला की प्रशंसा किए बिना नहीं रहा जा सकता है। 

9. कलम दार या वाटिका कला:-🐋🐋

वस्त्रों पर रंगाई का काम हाथ से या ब्रश की सहायता से पेंट के द्वारा डिजायन तैयार करते थे। इनमें डिजाइन के जो हिस्से रंग से नहीं रंगना चाहते थे उन पर पिघला मोम लगा देते थे। और जहां मोम नहीं होता था वही हिस्सा रंग में रंगा जाता था।

और जिस पर मोम होता था वह वहां रंग नहीं चढ़ता था। इसी कला को आजकल वाटिक कला के नाम से पुकारते हैं। इस तरह की रंगाई में दृश्यों को, पौराणिक कथाओं को माध्यम बनाया जाता था अथवा बेल, बूटे, पौधे, गमले भी बनाकर उन्हें मूल ( Original) रंगों के समान सजाया जाता है ।

भारत के पारंपरिक वस्त्रों के पश्चात अब भारत की पारंपरिक कशीदाकारी (Embroiderery) के विषय में भी जानना आवश्यक है। 

धन्यवाद 🙏

















Stains and its Removal ( दाग-धब्बे छुड़ाना)

 
        🌈Stains and its Removal 🌈

Stains and its Removal  ( दाग-धब्बे छुड़ाना) :--🐩🐩🐩🐩🐩🐩🐩🐩🐩🐩🐩🐩🐩🐩🐩


🐭 दोस्तों वस्त्र धुलाई के साथ साथ हमें वस्त्र का भी ध्यान रखना अति आवश्यक होता है रोज का पहनने वाले वस्त्र हो या किसी त्योहार आदि। इन सभी वस्त्रों का ख्याल हमें रखना चाहिए जैसे हम जो वस्त्र पहनते हैं, कोई भी कार्य करते समय या बाहर भी आने जाने से या कार्यस्थल पर कार्य करते समय अनेकों प्रकार के दाग धब्बें वस्त्रों पर लग जाते चाहे वह कहीं भी पहनने वाले वस्त्र हो उस पर दाग धब्बे लगे अच्छे प्रतीत नहीं होते हैं। उन्हें कपड़े से छुड़ाने का प्रयत्न करना जरूरी होता है। दाग-धब्बे वस्त्र से न छुड़ाने से वस्त्र देखने व पहनने में भद्दा प्रतीत होता है। और वस्त्र का शोभा भी बिगड़ जाता है। इसलिए हमें वस्त्र पहने के साथ-साथ उनका ध्यान भी रखना अति आवश्यक होता है। जिससे हमारे वस्त्र लंबे समय तक चमकदार व सुंदर बने रहे। 🐦

आज हम दाग-धब्बों से जुड़ी जानकारियों को लेकर साझा करेंग। सबसे पहले कपड़े पर लगे दाग धब्बा को पहचानना अति आवश्यक होता है धब्बों का वर्गीकरण करके पहचान करें तो अनेकों वस्त्र पर से दाग धब्बे छुड़ाना आसान हो जाता है।  

आइए जानते हैं दाग धब्बों के बारे में 👇👇

1. चिकनाई से युक्त धब्बे :--

घी, मक्खन तेल आदि की चिकनाई रसोई में काम करते समय लग जाती है। इसमें यह ध्यान रखना होता है कि चिकनाई को ब्लाटिंग पेपर की सहायता से सोख कर उसके बाद रसायन का प्रयोग करें।

2. पशु संबंधित धब्बे:-- 

अंडा,दूध,मांस रक्त आदि के धब्बे इस वर्ग में आते हैं। इनमें प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है अतः इनको छुड़ाने के लिए सादा ठंडे जल का ही प्रयोग करना चाहिए।

3. वनस्पति धब्बे:--

इस वर्ग में चाय, कॉफी, कोको, फल, सहद, चॉकलेट आदि वस्तुओं के धब्बे आते हैं इनमें acidic रूप होता है। तथा इन को छुड़ाने के लिए  छारीय तत्वों का अर्थात खार युक्त तत्वों का प्रयोग करते हैं। 

4. घास के धब्बे:--

 घास में एक खार पदार्थ होता है उसी के कारण यह वनस्पतिक वर्ग में शामिल नहीं है। इन को हटाने के लिए हाइड्रोजन पेरोक्साइड का प्रयोग करते हैं।

5. खनिज वस्तुओं के धब्बे:-- 

जंग (rust)  दवाइयां, स्याही आदि खनिज, धब्बा वर्ग में ही आते हैं। इनमें धातु, रंग एवं रसायन तीनों का या दों का मिश्रण तो अवश्य होता है अतः इन धब्बों की पहचान के बाद धातु का प्रभाव हटाने की क्रिया तथा फिर उसके रंग को सोखना या उड़ाने की प्रतिक्रिया करनी पड़ती है। 

6. रंग, रोगन व पेंट आदि के धब्बे:--

इस वर्ग के धब्बों में छारीय एवं आम्लिक कुछ भी हो सकता है अर्थात खार या acidic गुण भी हो सकते हैं। अतः धब्बे को प्रकृति के अनुरूप ही धब्बा छुड़ाने के लिए रसायन चुनाव किया जाता है। 

7. जलने या झुलसने के धब्बे:-- 

ऐसे धब्बे प्रायः गर्म तवे के द्वारा गर्म प्रेस के द्वारा कपड़ों पर आ जाते हैं। आग की लपटों से भी कपड़ों पर कई बार भूरे भूरे ब्राउन रंग के दाग लग जाते हैं इन दागों के लिए हाइड्रोजन पराक्साइड एवं अमोनिया का प्रयोग किया जाता है। 

8. पसीने के धब्बे:--

यह धब्बे साधारण होते हैं और साबुन के घोल व पानी से छूट जाते हैं गहरे होने की स्थिति में अमोनिया के मिश्रण को भी प्रयुक्त किया जाता है। 

       दागों को छुड़ाने संबंधी कुछ जानकारियां

🐦हमेशा ताजा दाग ही छुड़ाने का यत्न करें। पुराना दाग जटिल हो जाता है और मुश्किल से छूटता है।

किसी भी दाग लगे स्थान को पहले धूल रहित करें। फिर दाग को पहचाने और साफ करें।

पहले सादा ही हल्के व घरेलू उपाय अपनाएं। छुड़ाने वाले रसायन अर्थात प्रतिक्रमक  का प्रयोग बाद में करें। 

ऊनी व रेशमी कपड़ों पर कभी भी तेज प्रतिक्रमक का प्रयोग ना करें इनके जैसे कोमल होने से जल जाएंगे।

कोई भी प्रतिकर्मक बिना पानी की सहायता से कपड़े पर ना लगाएं अन्यथा कपड़े के रेशे से बहुत हल्के हो जाते हैं। आपको ज्ञात होना चाहिए कि सभी प्रति कर्मक रासायनिक मिश्रणों से बनते हैं। 

किसी भी कपड़े पर जब कोई रासायनिक द्रव्यों का प्रयोग करें तो धब्बा छूटते ही ठंडे पानी से तुरंत वह स्थान धों ले ताकि वहां से उसका प्रभाव हट जाए और रेशे पहले की भांति मजबूत रहे। 

कपड़े में कभी भी प्रतिकर्मक सूखने ना दे क्योंकि प्रतिकर्मक के सूख जाने से कपड़े की रेशों को हानि पहुंचती है।

हमेशा धब्बा छुड़ाने के लिए हल्का प्रतिकर्मक पहले प्रयोग करें। यदि ना छूटे तो पुनः तेज द्रव्य का प्रयोग करें। 

शीघ्र ही अग्नि पकड़ने वाले पदार्थों जैसे पेट्रोल, मिट्टी का तेल आदि को अग्नि की पहुंच से दूर ही रखें। 

रसायनिक प्रतिकर्मकों मैं एक प्रकार की गैस होती है, अतः उनको प्रयोग करते समय अपना चेहरा दूर ही रखें ताकि उस गैस से तबियत खराब ना होने पाए चेहरे पर गैस से किसी प्रकार का रिएक्शन ना होने पाए। 

धब्बे छुड़ाने का कार्य बहुत ध्यानपूर्वक करें। विवेक व सहनशीलता का प्रयोग करें और कभी भी जल्दी ना करें। 

कपड़ों को रगड़े नहीं जो भी प्रतिकर्मक प्रयोग करना हो , उसकी जांच वस्त्र के टुकड़े पर  या ऐसे स्थान पर करें जहां पर कि खराब होने पर भी सामने के हिस्से में दिखाई ना दे। 

धब्बे छुड़ाने के उपरांत ब्लीच का प्रयोग करें। इसका भी हल्के घोल का प्रयोग करना चाहिए।

यदि सूती तथा लिनन कपड़ों पर से धब्बे छुड़ाने हो तो इनको फैलाकर प्रतिकर्मक का प्रयोग करें और ऊपर से गर्म पानी धार बनाकर डालें। 

यदि धब्बों को स्पंज विधि से छुड़ाना हो तो धब्बे के ऊपर घोल को कपड़े या ब्रूश मैं लेकर गोलाकार दिशा में स्पंज करना चाहिए। यह कार्य हुआ है रेखा से आरंभ करके, भीतर की और लाकर समाप्त करना चाहिए। दोबारा फिर बाहर से शुरू कर के मध्य तक लाना चाहिए। 

                    धब्बे छुड़ाने की प्रक्रियाएं

दाग धब्बे छुड़ाने की तीन विधयां हैं----- 

1. घोलक विधि:--  प्रतिकर्मक को पानी में घोल के रूप में तैयार करके उसे दाग छुड़ाना को घोलक विधि कहते हैं। 

2. रासायनिक विधि:-- 

कड़े दाग धब्बों को साफ करने के लिए भिन्न भिन्न प्रकार के रसायनों का प्रयोग करते हैं। किंतु पहले तनु घोल, फिर उससे जटिल और फिर उस से जटिल। यदि एक बार में ना छूटे तो दोबारा और दोबारा भी ना छूटे तो तिवारा लगाते हैं और दाग छूटते ही उनको शुद्ध ठंडे पानी में धो डालना चाहिए।

3. अवशोषण विधि:-- 

जीन वस्त्रों को शुष्क धुलाई ( dry cleaning)  से ही साफ करना होता है, उनके दाग धब्बों को अवशोषित करने हेतु कुछ पाउडर की तरह के तत्व आते हैं। उन धब्बों के ऊपर हुए कुछ समय के लिए डाल दिए जाते हैं। और वे उस चिकनाई को सोख लेते हैं। यह प्रायः चिकने दाग धब्बों को छुड़ाने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। 

सभी बातों की जानकारियों के उपरांत ही दाग छुड़ाने की क्रिया आरंभ करे । 

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दाग धब्बे छुड़ाने की विधियाें के बारे में जानने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें 👇

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