Importance of water In laundry
What is the importance of water in launry? कपड़े धोने में पानी का क्या महत्व है।
:--
दुनिया मैं बहुत सी चीज होती है जो हमारे जीवन में बहुत महत्व होता है जैसे: जल हमारे लिए काफी महत्व है, धुलाई (laundry) हमारे लिए महत्व होता है , धुलाई और जल के बिना हमारा जीवन अधूरा होता है, जल और धुलाई हमारे जीवन जीने का आधार है जल से ही धुलाई के जरिए अपने जीवन को साफ, सुथरा व चमकदार बना सकते हैं । जिस प्रकार धुलाई और जल हमारे लिए काफी महत्व रखता है उसी प्रकार फैशन हमारे जीवन को नई रोशनी,जिज्ञासा और रंगों से भर देता है तथा जल से ही फैशन को सुधारा व संवारा जा सकता है ।
आज हम जानेंगे जल के बारे में कि किस तरह जल हमारे लिए बहुत महत्व है तथा जल धुलाई को किस प्रकार प्रभावित कर फैशन को सवारता है। तथा जल का हमारे जीवन में क्या महत्व है।
कहा गया है जल ही जीवन है प्राणियों का जीवन जल है। प्राचीन समय में नगर शहर या गांव प्रायः नदियों झीलों या तालाबों के किनारे इसलिए वसा करते थे ताकि जनसाधारण के सभी कार्य आसानी से होते रहे जैसे :-- खाना बनाना, कपड़ा धोना ,नहाना आदि और इसके साथ ही लोगों की व्यापार आदि भी जो जल मार्ग से हुआ करते थे उसमें भी सरलता रहती थी। वस्त्र विज्ञान की जानकारी में हमको वस्त्रों की धुलाई की जानकारी के लिए जल की स्वच्छता उसके प्रकार तथा धुलाई कला में वस्तुओं की सफाई के लिए उसके विषय में सभी कुछ जानकारी होनी आवश्यक होती है।
जल में नमी व आद्रता का जो विशेष गुण है उसके कारण वस्त्रों के तंतु नम हो कर फूल जाते हैं और फूले हुए तंतुओं की गंदगी को साफ करने के लिए उन्हें रगड़ना एवं दवाना भी पड़ता है नर्म तंतु रगड़ के प्रभाव से ना तो शीघ्र ही नष्ट होते हैं और ना ही घिसता है।
धुलाई कला एंव जल प्रयोग :--
धुलाई कला में जल के साथ-साथ वस्त्रों की गंदगी को हटाने के लिए साबुन या शोधक पदार्थों का भी प्रयोग होता है। शोधक पदार्थ पानी में आसानी से घुल जाते हैं और झाग बनाकर वस्त्रों की गंदगी को पानी में वस्त्रों से अलग कर देते हैं। इस प्रकार गंदगी अलग होने पर वस्त्र को दो-तीन बार पानी में से खंगाल कर साफ कर लिया जाता है। इस खंगाले की प्रक्रिया में यदि पानी शुद्ध ना हुआ तो वस्त्र भी एकदम शुद्ध ना होकर चिपचिपा हो जाएगा। धुलने के बाद वस्त्रों में नील, कलफ का भी प्रयोग होता है और यदि उस कार्य में भी पानी शुद्ध नहीं लेंगे तो वस्त्र पर जो चमक और नयापन आना चाहिए वह नहीं आ पाएगा अतः वस्त्र की प्रत्येक प्रक्रिया में पानी की जरूरत पड़ती है और पानी के अभाव में धुलाई की कोई भी प्रक्रिया नहीं हो सकती है।
जल पंचतत्व में ही माना जाता है प्राचीन काल से, किंतु अब वैज्ञानिक ऐसा मानने लगे हैं कि जल हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन के सयोंग से बनता है। अब चाहे सयोंग से बने या पंचतत्व हो उसे शुद्ध तो होना ही चाहिए चाहे यह रासायनिक मिश्रण ही क्यों ना हो जल तो जल ही है और जो भी जल हमें मिलता है वह एकदम शुद्ध रूप में नहीं मिलता है पृथ्वी पर जल के कई भंडार हैं किंतु 3 रूपों में जल हमें पृथ्वी पर मिलता है -- (ठोस)(द्रव)और(गैस)। जल का ठोस रूप वर्ष है द्रव रूप में तो इसका प्रयोग किया जाता है और जल वास्तु उसका गैस ही रूप है।
अब हम जल चक्र के बारे में जानेंगे,
जलचक्र :--- सूर्य के ताप से समुद्री जल वाष्पित होकर वायुमंडल में जाता है तथा वहां होकर पर्वतों से बादलों के रूप में टकरा कर फिर पृथ्वी पर आ जाता है। और धरती में समा जाता है। पुनः पृथ्वी पर ही पहाड़ों में से कहीं कहीं झरने के रूप में फूलों के रूप में या नदी- नालों के रूप में बहना शुरू हो जाता है। और यह सब जल कहीं कहीं से जाकर नदियों में मिल जाता है। नदिया समुंद्र में मिल जाती है और वहीं पर एक जल चक्र बनकर हमारे पास प्रयोग हेतु आता जाता है।
इस प्रकार हम पाते हैं कि हमारे पास 4 तरह के जल स्त्रोत होते हैं-
वर्षा का जल :-
यह जल सबसे शुद्ध होता है किंतु वातावरण शुद्ध ना होने के कारण धरती पर आते-आते इसमें वातावरणीय अशुद्धियां मिल जाती है जिनमें ऑक्सीजन, नाइट्रोजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड आदि गैसे तथा धूल के कण मिल जाते हैं तो उसकी शुद्धता कम हो जाती है।
नदी का जल :-
नदी में वर्षा का जल तथा बर्फ के पिघलने से जल आता है वहां तो फिर भी जल साफ रहता है किंतु फिर मैदान में आते आते बहुत ही घुलनशील अशुद्धियां मिल जाती है जिनसे नदी का जल मटमैला हो जाता है नदियों के जल को ही नगर निगम का जल प्राप्त करके हमारे कार्य हेतु घरों में भेजते हैं।
झरने व कुंए का जल :-
जो जल धरती में वर्षा के समय समा जाता है वही जल झरनों के रूप में तथा कुआं खोदकर पानी के रूप में हमारे कार्यों के लिए निकल आता है यद्यपि धरती के अंदर से जल आता है फिर भी शुद्ध होता है किंतु धरती के लवण बगेरा इस जल में घुल जाते हैं तो यह अशुद्ध हो जाता है।
समुंद्र का जल :-
यह तो खारा भी होता है और अशुद्ध भी होता है ।जगह-जगह से चल कर यह समुद्र में मिलता है और स्थान- स्थान के लवण,ठोस पदार्थ इस जल में घुल कर इसे अशुद्ध बनाते हैं अतः यह मनुष्य के घर के कार्यों में प्रयुक्त नहीं होता है किंतु अब मनुष्य के प्रयोग के लिए जल को लेकर कुछ वैज्ञानिकों का लक्ष्य जल शुद्ध करके प्रयोग में लाने का प्रयत्न चल रहा है
अतः मानव समाज के जल प्राप्ति के स्रोत है।

शुद्ध तथा अशुद्ध जल
उपयोगिता के आधार पर जल का वर्गीकरण दो भागों में किया गया है तथा -- मृदु जल तथा कठोर जल
मृदु जल ( Soft water) :-
जिस जल में आसानी से झाग या फेन बनते हैं, वह मृदु जल कहलाता है पीने के लिए तथा गृह कार्यों में प्रयोग में यह अच्छा रहता है इसमें साबुन से वस्त्र बहुत आसानी से धुल जाते हैं।
कठोर जल ( Hard water) :-
जल
में सब कुछ आसानी से घुल जाता है। जहां-जहां से जल होकर आता है वहां की अशुद्धियां लवण धूल कण आदि पृथ्वी में इसमें मिलते जाते हैं कहीं-कहीं किसी स्थानों के कारण घुलनशील खनिज भी अधिक मात्रा में इसमें घुल जाते हैं तब यह जल खाद्य पदार्थों या वस्त्रों को धोने के मतलब का नहीं रहता है, क्योंकि यह कठोर जल बन जाता है और कठोर जल में साबुन झाग नहीं बनता है । यह वस्त्र पर घिसना ज्यादा पड़ता है। इसके अतिरिक्त यह लवण साबुन पर प्रतिक्रिया करते हैं फलस्वरुप दही के कणों के समान चिपचिपा पदार्थ साबुन से अलग होकर वस्त्र पर चिपक जाता है वस्त्र साफ होने के स्थान पर गंदा हो जाता है अतः कठोर जल साबुन के लिए भी व कपड़ों के लिए भी नुकसानदायक हैं ऐसे जल से सामना करने के लिए कैल्शियम कार्बोनेट की मात्रा के हिसाब से उसमें 10 गुना अधिक साबुन लगाने से इस प्रकार की कठिनाईयों का सामना किया जा सकता है।
जल की कठोरता दूर करने के उपाय:
ऊपर लिखी स्थाई कठोरता को दूर करने के लिए जैसे सोडा विधि का प्रयोग किया गया ठीक उसी प्रकार अन्य विधियां भी है -
स्त्रवन विधि :-
जल की स्थाई कठोरता को स्त्रवन से भी दूर किया जा सकता है स्त्रवन जल मृदु हो जाता है और जल की घुलनशील अशुद्धियां स्त्रवन पात्र में ही रह जाती है।
परम्युटिट विधि :-
सोडियम व अल्मुनियम धातु के मिश्रित सिलिकेट को पर परम्युटिट कहते हैं। इसको सोडियम जियोलाइट भी कहा जाता है यह जिओलाइट यानी परम्युटिट जल में घुलनशील होता है। अब इस जल को छानने से जल की कठोरता समाप्त हो जाती है ।
कैलगन विधि:- कैलगन
वस्तुतः सोडियम हेक्सामेटाफॉस्फेट का औद्योगिक नाम है यही मेटाफास्फेट लवणों से प्रतिक्रिया करके उनके फास्फेट बनाता है और फिर आसानी से छानकर अलग किया जा सकता है कि कैलगन की क्रिया भी जिओलाइट के समान होती है।
आयन विनिमायक रेजिन के प्रयोग द्वारा :-
जल को शुद्ध करने का पूर्णतः रसायनिक तरीका कठिन है जो लेबोरेटरी में ही संभव है किंतु जानकारी हेतु यह ज्ञात हो कि आयन विनिमायक रेजिन द्वारा कार्य किया जाता है धनायन विनिमायक रेजिन का प्रयोग करके सभी धन आयनों को H+ आयन में बदलकर ऋणायन विनीमायक रेजिन से OH मैं बदलना जाता है यदि कठोर जल पहले धनायन विनिमायक रेजिन से प्रभावित किया जाए और फिर ऋणायन विनिमायक रोजिन से प्रभावित किया जाए तो जल धन आयनों तथा ऋण आयनों से मुक्त हो जाएगा और जल कोमल व शुद्ध हो जाएगा।
किंतु गृहणी घर में यह प्रक्रियाएं नहीं कर सकती हैं अतः पानी उबालने जैसी सरल या स्त्रवन विधि जैसी विधि अथवा सोडा डालकर शुद्ध करने जैसी विधियों को अपनाना अच्छा रहेगा। इसके अतिरिक्त इन विधियों का भी प्रयोग घर में संभव होता है किंतु अनुपातिक मिश्रण का ज्ञान होना बहुत जरूरी होता है।
बोरेक्स:-
बोरेक्स द्वारा जल की 2 डिग्री कठोरता दूर की जा सकती है और इससे वस्त्रों को भी नुकसान नहीं होता है
कास्टिक सोडा:-
अस्थाई कठोरता को तो पूर्णत: शुद्ध कर देता है किंतु स्थाई में यदि कम कठोरता हो तभी दूर होता है
अमोनिया का घोल:-
यह महंगा पड़ता है तथा इससे शुद्ध किए हुए जल का परिणाम निश्चित नहीं होता है इससे वैसे भी छतिग्रस्त हो जाते हैं तथा रंग भी हल्की हो जाते हैं।
चार घड़ो की विधि द्वारा जल शुद्ध करना:-
इस विधि में स्टैंड पर चार घड़े फिट कर देते हैं । सबसे ऊपर वाले घड़े में अशुद्ध जल दूसरे में कोयला तथा मोटी बालू तथा तीसरे खड़े में महीन बालू तथा कंकड़ भरे रहते हैं ऊपर के तीनों घड़े के तले में छेद होता है जिससे पानी एक के बाद दूसरे व तीसरे घड़े में आता रहता है इस प्रकार शुद्ध जल चौथे घड़े में आ जाता है वह पूर्णरूपेण छना हुआ तथा एकदम शुद्ध होता है।
लाल दवाई तथा तूतिया:-
यह दोनों रसायन कीटनाशक दवाएं हैं। इन दवाओं की थोड़ी सी मात्रा पानी में डाल देने से सारे कीटाणु मर जाते हैं और पानी शुद्ध हो जाता है लाल दवा यानी पोटेशियम परमैग्नेट से तो पीने के लिए पानी शुद्ध हो जाता है तथा तूतिया द्वारा ( अल्प मात्रा में लेकर ) बड़े पैमाने पर पानी शुद्ध किया जाता है। अतः कठोर जल मृदु जल के हानि व लाभ स्पष्ट होते हैं कठोर जल में साबुन का अधिक घिसना, झागों का ना बनना तथा कपड़ों में साबुन का कुछ चिपचिपा पदार्थ भी कपड़ों में लग जाता है इसके कारण कपड़े साफ होने के स्थान पर गंदे हो जाते है।
इस प्रकार हमने जल के बारे में जाना। जल और धुलाई का हमारे जीवन में तथा फैशन से बहुत गहरा संबंध है तथा जल के बिना और धुलाई के बिना हम और हमारा फैशन अधूरा होता है। तथा जल और धुलाई ही एकमात्र ऐसा है जो हमें सवारता और निखारता है। तथा जल और धुलाई फैशन से इस तरह से संबंध रखता है। जैसे कि हम कोई भी कॉस्टयूम पहनते हो या फुटवियर पहनते हो या फैशन संबंधित कपड़े से लेकर फैशन से जुड़ी कुछ चीजों में जल और धुलाई काफी महत्व रखता है।
कॉस्टयूम में बहुत से वस्त्र ऐसे होते हैं जिन्हें धुलाई धुलाई की आवश्यकता कई तरीको से होती है
जैसे: सुखी धुलाई, स्प्रे धुलाई, गीली धुलाई आदि बहुत सी ऐसी धुलाई होती है जिसमें हमें जल की आवश्यकता होती है।
दोस्तों आज हमने जाना कपड़े धोने में पानी का क्या महत्व होता है जानी हमारे जीवन में जल और धुलाई का क्या महत्व है। तथा जल और धुलाई हमारे जीवन, और उनसे जुड़ी फैशन को किस प्रकार प्रभावित करता है और उन्हें सवांरता हं।
वस्त्रों के शोधक पदार्थ (cleaning Materials for Fabrics)
के बारे में जानने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर click करें👇
और जानें वस्त्रों के कौन-कौन से शोधक पदार्थ होते हैं।
फैशन डिज़ाइनर वस्त्र बनाने के लिए उपयोग में आने वाली सामग्री के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें|👇
https://fashiongrandtec.blogspot.com/2022/02/fashion-designer-materials-with-their.html
धन्यवाद 🙏


कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Hello friends spam comment na kare , post kaisi lagi jarur bataye or post share jarur kare