What is Silhouette fashion ? सिलहूट फैशन क्या है।

           
                            Shilouette 



What is Silhouette fashion ? सिलहूट फैशन क्या है। 
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आज मैं आपको सिलहूट के बारे में बताऊंगी सिलहूट क्या है तथा फैशन से इसका क्या संबंध है। आइए जानते हैं -
सिलहूट एक वस्तु या रूपरेखा के दल का दृश्य या इंटीरियर का एक दृश्य है जो कि आमतौर पर काले रंग दृष्टिगोचर होता है। इसका प्रारंभ 18वीं शताब्दी में चित्रों या अन्य सचित्रों का काले रंग के कार्ड की कटिंग के द्वारा शुरू किया गया था। 

यह रूपरेखा एक व्यक्ति की वस्तु की या दृश्य की छवि को प्रदर्शित करती है जो हल्की रोशनी के पिछले भाग में या पृष्ठभूमि में काले रंग में दिखाई देता है, क्योंकि सिलवट एक वह रेखा को रेखांकित करता है इसलिए यह शब्द फैशन व फिटनेस के क्षेत्र में प्रयोग किया जाता है। सिलहूट हमको एक व्यक्ति के शरीर की बनावट पर खास शैली के कपड़े पहने हुए उस युग के फैशन को दिखाता है। (silhouette) छवियां किसी भी कलात्मक मीडिया में बनाई जा सकती है लेकिन काले कार्ड से तस्वीरें काटने की परंपरा उस युग से आज 21वीं शताब्दी तक जारी है।

व्युत्पत्ति ( Etymology) : -
 
शब्द सिलहूट की उत्पत्ति फ्रांस के एक वित्त मंत्री के Eltienne De Silhouette से संबंधित है।  मंत्री ने, जिसको कागज काटकर चित्र बनाने का शौक था, फ्रांस में 7 साल से चले आ रहे युद्ध के दौरान आर्थिक तंगी से दुखी होकर इन चित्रों को बनाना शुरू कर दिया और इस प्रकार वह अपने समय का उपयोग करके अपने को व्यस्त रखने लगा और यह शैली इस नाम से प्रचलित हो गई। 

सिलहूट का कला से क्या संबंध था तथा सिलहूट कला में क्या उपयोग है इसकी प्रथा जानेंगे : 

कला में ( In Art) : -
 
यह प्रथा फोटोग्राफी के दौरान से बहुत पहले की है इसलिए सिलहूट प्रोफाइल (Outline of a person ) काले कार्ड से एक व्यक्ति के रूप की रिकॉर्डिंग का सबसे सस्ता तरीका है। सिलहूट एक तरह की कलाकृति है जो परंपरागत रूप मैं एक मानव के portrait को काले रंग में चित्रित करता है। 

                        

तस्वीरें या चित्र ( profile ) :--- 

इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह मुख्य रूप से चेहरे एवं शरीर की अनुपातिक संरचनाओं की आकृति को सरल रूप में प्रस्तुत करता है । यह तस्वीरें रोमन युग के समय के सिक्कों के ऊपर छापी जाती थी । इसके अलावा प्रोफाइल चित्रों का प्रयोग मशहूर लोगों की portrait बनाने में किया जाता था। सिलहुट का प्रयोग धीरे-धीरे portrait , मूक सिनेमा , फोटोग्राफी ग्राफिक डिजाइनिंग आदि में होने लगा था।  आज के समय में इसका  fashion and fitness में बड़ा योगदान हैं। 

                         

 

फैशन व फिटनैस ( fashion and fitness ) :---
 
क्योंकि सिलहूट एक मानवीय आकृति की बाहय् रेखा है, इसलिए यह फैशन और फिटनेस के चित्र में मानव शरीर का वर्णन करता है। 20वीं शताब्दी में सिलहूट  शब्द का प्रयोग जिम व फिटनेस सेंटर में बहुत अधिक रूप में विज्ञापन के उद्देश्य से किया गया । पोशाक के इतिहासकारों ने इस शब्द का प्रयोग अलग-अलग युग के कपड़ों के फैशन के प्रभाव को दिखाने के लिए भी किया ताकि वे अलग-अलग योग के कपड़ों का तुलनात्मक अध्ययन कर सकें। 

                          

 

 पहचान ( Identification) : -- 
 
सिलहूट एक ऐसी स्पष्ट बाहय् रेखा है जिससे एक उद्देश्य (object) को बहुत कम समय में पहचानने का लाभ होता है। सिलहूट  के कई व्यावहारिक प्रयोग है जैसे यातायात संकेत , प्रसिद्ध स्मारकों या नक्शा का चित्रण, शहरों या देशों की पहचान या प्राकृतिक वस्तुओं जैसे पेड़, जानवर, पक्षी, सैन्य प्रयोग, पत्रकारिता आदि। 

           मानवीय आकृति पर फैशन का प्रभाव  
(Fashion influencing the Human figure) 

 

आप जानते हैं कि प्रारंभ में मानव ने कपड़ा बनाना सिखा । कपड़ा बनाकर कंगन भी होने लगा क्योंकि सर्दी गर्मी बरसात के मौसम में शरीर को सुरक्षित रखने का उपाय स्वयं ही मनुष्य मस्तिष्क की खोज थी । धीरे-धीरे सुई के अविष्कार के साथ सिलाई का भी प्रचलन हुआ और वही सुई धागे की करामत आज के समय में फैशन के नाम से प्रसिद्ध है। इसी फैशन का ही मानव शरीर पर अत्यधिक प्रभाव हो गया है हर व्यक्ति स्वयं को सभ्य समाज में अग्रणी दिखाने के उद्देश्य से फैशन के दौर में आगे से आगे बढ़ता जा रहा है। 

आज पहनने की वस्त्र विभिन्न तरीकों से तथा अनेकों प्रकार की मशीनों के प्रयोग द्वारा बनाए जा रहे हैं। प्रारंभ में तो कपड़ा बाजार से खरीद कर भले हाथों से फिर मशीनों से गिरेबान लगातार जिनको स्वयं चलना नहीं आता था वह सिलाई पर बाहर सिलवा लेते थे। अब बाजार में ही सिला सिलाया वस्त्र मिलने से तैयार वस्त्र ही खरीदा जाने लगा। अब अच्छे से अच्छे वस्त्र सिले सिलाए ऋतु के अनुसार रीति-रिवाजों के अनुसार व्यक्तित्व अर्थात कद काठी के अनुसार तथा परंपराओं के मुताबिक सब प्रकार के अर्थात सस्ते, महंगे सभी तरह क मिलने लगे हैं। 

वस्त्र तो सभी पहनते हैं वस्त्र पहनने से मनुष्य तो सुंदर लगते ही हैं और मनुष्य से वस्त्र भी सुंदर लगते हैं अर्थात जब दोनों एक दूसरे के अनुरूप होते हैं सभी मनुष्य आकृति पर वह वस्त्र या परिधान फबता है और तभी उसका व्यक्तित्व अच्छा दिखाई देता है वस्त्र में देखने वाले की दृष्टि सर्वप्रथम रंग पर जाती है। फिर उसके बाद देखने वाले का ध्यान व्यक्ति तथा ड्रेस की बाहय् आकृति पर जाता है। तत्पश्चात उस ड्रेस के नमूने पर अर्थात डिजाइन पर जाता है नमूने के बाद उस वस्त्र के रंग तथा पहने वाले के रंग पर ध्यान जाता है रंग से वस्त्र की बाहय् रेखा यानी silhouette भी फैशन अनुकूल बदलती रहती है। 
फैशन में एक बड़ा योगदान फ्रेमिंग का होता है अर्थात कैसे-कैसे सजावटी सामान का ड्रेस में उपयोग किया जाता है ड्रेस की ड्राफ्टिंग एवं कटिंग का तो फिटिंग में योगदान है ही साथ ही ड्रेस कैसे अलंकृत हो किस समान के द्वारा अर्थात गोटा, पाइपिगं, लेस , झालर आदि किया गया है, इसका भी बहुत प्रभाव पड़ता है। वस्त्र रचना में यह ध्यान रखना जरूरी होता है कि नमूने बनाते समय डिजाइन की आधारभूत रेखाओं को त्यागा नहीं जा सकता है। अतः उन सब का प्रयोग करते समय यह ध्यान रखें कि डिजाइन में ट्रेनिंग या नमूना कुछ भी अधिक ना बनाया जाए जिससे डिजाइन अजीब ( over) लगने लगे।

वस्त्र की self designing मैं लाइनदार  कपड़ों का भी  प्रमुख हाथ है। खड़ी, आड़ी व तिरछी लाइनों से बने वस्त्र अपने आप में ही बहुत सुंदर लगते हैं। खड़ी लाइनें पहनने  वाले की लंबाई को बढ़ाती हुई प्रतीत होती है, जबकि आड़ी  लाइने धारण करने वाले की चौड़ाई को बढ़ाती हुई प्रतीत होती है। तिरछी रेखाएं, आंखों को नीचे ऊपर ले जाने के लिए ही लगती है और तिरछे 'v' shape मैं करके स्कर्ट टॉप आदी में सुंदर दिखाई देती है। नियमावली के अनुसार बनाया गया वस्त्र शारीरिक निरीक्षण किए हुए शरीर पर एकदम सुंदर लगता है तथा अलग-अलग तरीकों से बना हुआ जब उसी रस्सी को पहनाते हैं तो उसका व्यक्तित्व हर 50 में अलग ही दिखाई देता है।

 

                    परिधान डिजाइन के सिद्धांत
 (principles of Designing the Garments) 

 

पोशाक ऐसी डिजाइन में बने जिसे देखकर लोग वाह वाही कर उठें । क्योंकि पोशाक की डिजाइनिंग के त्रुटि पूर्ण तरीके कुछ ही दिनों में आउट ऑफ़ फैशन कहलाने लगते हैं। परिधान डिजाइन करते समय अनुपात ( proportion), संतुलन ( Balance ), लय ( Rhythm), अनुरूपता (Hrmony), दबाव ( Emphasis), संभल तथा आकर्षण केंद्र आदि ऐसे scale हैं, अर्थात ऐसे पैमाने हैं जिन स कोई भी व्यक्ति अपनी पोशाक या पहनावे का उचित मूल्यांकन कर सकता है क्योंकि उपलिखित में से किसी एक की भी उपेक्षा हो जाने से पोशाक की सुंदरता कम अथवा समाप्त हो सकती है।
का तात्पर्य है कि पोशाक में उचित अनुपात हो, संतुलन विश्राम दायक हो, डिजाइन की लाए ऐसी रोचक हो जो कि पहनने वाले के शरीर की विशेषताओं एवं गुणों को उभार कर प्रकट करने वाली हो। पोशाक के आकर्षक बिंदु उसके सभी सजावटी सामान ऐसे प्रतीत होते हो जिससे पहनने वाले का व्यक्तित्व उभर कर सामने आए। इसके साथ ही यह परिधान मौसम के अनुकूल रीति-रिवाजों के अनुकूल तथा परंपराओं के अनुसार यदि हो तो और भी सोने पे सुहागा होगा अर्थात उसमें और भी सौंदर्य दिखाई देगा। और यदि परंपरागत पोशाकों में थोड़ा सा फेरबदल करके बना दिया जाए तो नवीन में पुरातन का योगदान समाज में और भी सराहनीय होगा। जैसे का पास क्लीनर का स्थान धीरे-धीरे रासायनिक वस्त्रों के मिश्रण वाले रेशों ने ले लिया है यानी डेकरॉन, जेफरॉन तथा आरलॉन आदि ने विस्तृत रेशों के वस्त्र आ गए हैं, उसी प्रकार डिजाइन बनाने में भी नए पुराने का मिश्रण होने पर डिजाइनिंग मैं भी संजीदगी आ जाएगी। इसी के साथ ही साथ पाश्चात्य देशों की पोशाकों मैं भारतीय पोशाकों का मेल भी होने लगा है और समाज में पसंद भी की जाने लगी है। भारतीय पोशाक यद्यपि साड़ी ब्लाउज है, किंतु साड़ी के साथ जो ब्लाउज बनते थे अब टॉपलेस या पतले महीन स्ट्रैप या कंधों पर डोरी वाले ब्लाउज फैशन में आ गए हैं। इसी प्रकार लो बैक - नैक की लेडीज शर्ट या ब्लाउज भ डिजाइन किए जाने लगे हैं। 

संक्षेप मैं डिजाइन के रूप में यह ज्ञात होता है कि पाश्चात्य सभ्यता में टाइट पोशाकों का तथा अंग प्रत्यंग को उभार कर दिखाने वाला फैशन अधिक है जबकि भारतीय सभ्यता में अंगों को ढकने वाले वस्त्रों का फैशन था जिस पर अब दोनों के मिश्रण डिजाइन से यहां की पोशाकों में भी अंग प्रत्यंगो मैं खुलापन प्रारंभ हो गया है यह फिल्मों तथा टीवी सीरियल में जनता में , समाज में रिवाज आया हैं। यही जनता की पसंद है जिसे समय की मांग करते हैं।

                वस्त्रों का चुनाव एवं खरीदारी 
 ( Selection and Purchase of Garments )

वस्त्र डिजाइन के आधार पर सैद्धांतिक प्रयोग करके बनाए गए परिधान के स्टाइल में यह विशेष आकर्षक होता है इसी कारण वस्त्रों को अधिक आकर्षक बनाने का प्रयत्न किया जाता है आजकल विज्ञापनों में भी बहुत से आकर्षक डिजाइन दिखाए जाते हैं उनके अनुसार फैशनेबल लोग वस्त्र बनवाने के शौकीन हो गए हैं ताकि यदि वे मॉडलिंग की दुनिया में जाना चाहे तो आसानी से चुने जा सके।

संक्षेप में "अनुकूल क्षणों मैं अनुरूप कपड़े" तथा " मोहक क्षणों मैं मोहक परिधान" का अनुकरण करने वालों के मन में आत्मविश्वास चमकता है। इसी कारण उनमें ऐसा आकर्षण उत्पन्न हो जाता है जो सभी के ध्यान को बरबस ही खींच लेता है। और ऐसा सुरुचिपूर्ण वस्त्र का चुनाव करने वाला अपने पद में या व्यवसाय में सफलता की सीढ़ियां चढ़ता जाता है।  

आज हमने जाना सिलहूट के बारे में सिलहूट का फैशन में क्या महत्व है । 


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What is Textile? टेक्सटाइल क्या है?

            
                               Textile 


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Textile क्या है इसके बारे में जानने से पहले यह जानना जरूरी होता है कि किसी चीज को बारीकी से समझने के लिए हमें उन गहराइयों में जाना होता है। क्योंकि जड़ से शिखर तक जब तक उसका गहराई से अध्ययन नहीं किया जाएगा तब तक उसके विषय में पूर्णता ज्ञान नहीं हो सकेगा वस्त्र विज्ञान की जड़ है - "तंतु"। अब हम जानेंगे टेक्सटाइल के बारे में।

What is Textile? टेक्सटाइल क्या है?

जैसे पहले हम यह जानेंगे तंतु कैसे बनते हैं ? उसकी क्या-क्या अवस्थाएं हैं? उसने किस प्रकार बदलाव किया जाता है या उसमें क्या-क्या मिश्रण किया जाता है? उसमें किस प्रकार के बदलाव किए जाते हैं? उस तंतु से धागे का निर्माण कैसे होता है? 

अर्थात मार्केट में कपड़ा आने से पूर्व की सभी प्रक्रियाओं के विषय में जानना बहुत जरूरी है उन सभी बातों को जानने के लिए टेक्सटाइल को समझना अत्यंत आवश्यक है। वस्त्र विज्ञान में ही प्रचलित वस्त्र उपयोगी रेशों तथा वस्त्रों की अंतर्निहित विशेषताओं को जाना जा सकता है इनकी विशेषताओं को जानकर ही वस्त्रों के प्रयोजन के अनुरूप उचित उपयोग तथा टिकाऊ परिधान घर के लिए लेने में सुविधा रहती है उनका रखरखाव प्रयोग करना तथा धुलाई व प्रेस आदि करने के लिए उचित तरीके भी बस विज्ञान से ही पता लगते हैं। 

वस्त्रों का प्रयोग हर समय में, हर व्यक्ति द्वारा, हर अवसर पर ही किया जाता है। शरीर को सजाने के लिए शरीर को सर्दी गर्मी बरसात से बचाने के लिए तथा अपने समाज या सोसाइटी में अपनी एक अलग पहचान बनाने के लिए हर व्यक्ति द्वारा वस्त्र प्रयोग किए जाते हैं जैसे मिलिट्री या पुलिस में वर्दी। अर्थात जन्म से लेकर मृत्युपर्यंत व्यक्ति बिना कपड़ों के नहीं रह सकता। घर में भी अनेक प्रकार के, हर कार्य के लिए अलग-अलग बैठने, उठने, सोने, बिछाने तथा औढ़ने के लिए अलग-अलग किस्म के, अलग-अलग क्वालिटी के कपड़े ही प्रयोग किए जाते हैं। कपड़ों से ही घर की सजावट रसोई घर के काम, स्नानागार के कपड़े, नहाने के बाद तरह-तरह के कपड़ों कि जो आज मानव समाज को देन हैं,  वह वस्त्र विज्ञान की बदौलत ही होते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि कितने प्रकार के वस्त्र आज वस्त्र विज्ञान की बदौलत मार्केट में आ गए हैं कि घर के बिस्तर, सोफा, खाने की मेज, कुर्सियां सब पर तरह-तरह के कपड़े दिखाई देते हैं। यहां तक कि ऐसा कपड़ा भी जो आग ना पकड़ सके यानी fire-proof तथा पानी आर पार ना जा सके यानी कि water-proof तक जैसे कपड़ों का निर्माण वस्त्र विज्ञान के अनेकों परीक्षणों के फलस्वरुप हो चुका है। वस्त्रों का नाता सबसे है। यही कारण है कि आज वस्त्र उत्पादन संसार के सभी देशों में एक महत्वपूर्ण उद्योग है। विश्वभर के देशों में जहां जैसा कच्चा माल (raw material) प्राप्त हो जाता है वैसा ही उसका उपयोग हो जाता है। 

किसी-किसी कंपनी ने ऐसे वस्त्र निर्माण भी किए हैं जिनमें विभिन्न मौसम में ताप के परिवर्तन के वाक्य प्रभावों के अनुसार वस्त्र में परिवर्तन हो जाता है अर्थात गर्मी में वह कपड़े पतले व ठंडक प्रदान करने वाले तथा सर्दी में सर्दी बढ़ने के साथ-साथ वस्त्र मोटे व गर्म होते जाते हैं। सृष्टि की उत्पत्ति से आज तक मनुष्य की बुद्धि ने वस्तुओं की उत्पत्ति के साधन एवं वस्त्रों को बुनकर तैयार करने के अनेकों तरीके खोजने हैं प्रारंभिक काल से आज तक वस्त्र निर्माण कला में उत्तरोत्तर विकास होता जा रहा है। तथा इस दिशा में मनुष्य ने आश्चर्यजनक प्रगति की है। अवारचीन काल में मनुष्य ने जैसे जैसे पेड़ पौधे से देशों की खोज की उसे धीरे-धीरे तंतु के रूप में बनाया और बुनने के प्रयास भी किए। भूलने के उपरांत कपड़ा लपेटने से लेकर सुई के अविष्कार के साथ सिलने का भी प्रयास किया गया। किंतु जो रूप आज है वैसा तो नहीं था। फिर भी उस समय के हिसाब से ठीक ही था। हर देशवासी अपनी अपनी सभ्यता के विकास के अनुसार अपनी अन्य वस्तुओं के विकास के साथ-साथ वस्त्र विज्ञान में भी आगे बढ़ते रहें। 

विकास के साथ-साथ कपड़ा निर्माण के लिए विभिन्न उपकरण भी तैयार किए गए और उनकी सहायता से कम समय में अधिक अच्छे कपड़ों का निर्माण भी शुरू हुआ इसके कुछ समय के अनंतर कपड़ा उद्योग में और भी क्रांतिकारी परिवर्तन भी जब वैज्ञानिकों द्वारा विद्युत एवं शक्ति चालित कुछ यंत्रों का निर्माण किया गया। बिजली की मशीनों की सहायता से न केवल श्रम की बचत हुई अपितु कम समय में अधिक वह अच्छी क्वालिटी का कपड़ा भी बनने लगा। प्रारंभ में यह कार्य केवल प्राकृतिक तंतु से ही होता था। कुछ वर्षों के बाद प्राकृतिक तत्वों के साथ कृतिम तंतुओं का भी अविष्कार हुआ। फलहतः दोनों प्रकार के तंतुओं से अलग-अलग तथा कुछ समयोपरांत मिक्स बंधुओं से भी कपड़ा निर्माण होने लगा। यह औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप मशीनों के बनने से तथा रसायन क्षेत्र में भी नित्य नए परीक्षण के फलस्वरुप असीमित क्वालिटी तथा असीमित मात्रा में तंतुओं का कपड़़ा  उद्योग में आना लोगों के लिए हितकर हुआ। क्योंकि तंतुओं की मृत्यु न विनीता से वस्त्र उद्योग मैं कपड़े की मजबूती व टिकाऊपन के कारण मांग बढ़ी। अब कपड़ा उद्योयोग ने बहुमुखी उन्नति एवं प्रगति कर ली थी। धीरेेेे-धीरे वस्त्र उद्योग ने विविध प्रकाार के कपड़े तैयार करके बाजार में भेजने शुरू कर दिए। इन सब कार्यों का श्रेय भी वस्त्र विज्ञान द्वारा नई-नई तकनीकों को अपनाने का जाता है । 

            वस्त्र विज्ञान के विकास की श्रेणिया।   
Categories of development of textile science

प्रारंभ में मनुष्य ने पौधों के सफेद फूल रुई कोए देख कर उससे अपनी आवश्यकता के अनुसार बैठकर धागा बनाना और धीरे-धीरे एक तकली से उसको काटना उससे धागा बनाना व बुनकर कपड़े का एक रुप तैयार किया इन सब में बहुत समय लगता था तथा कार्य कम होता था। समय के परिवर्तन के साथ तथा विकसित होते होते एक फ्लाइंग शटल नाम की मशीन, जिसमें 1 पहिया से ही अनेक पहिए घुमा कर (यानी कई तक लिया एक साथ घूमती थीं) सूत काता जाने लगा था धीरे-धीरे स्पिनिंग जेनी और फिर वाटर फ्रेम मशीन तथा मूल नाम की मशीन का आविष्कार हुआ। इन मशीनों से सूत की मात्रा अधिक तथा अच्छी क्वालिटी का महीन सूट बनाया जाने लगा था। जब सूत अधिक बनाना शुरू हो गया तो उसकी बुनाई के लिए 1818 मैं पहली सूती कपड़ा मिल स्थापित की गई ताकि कपड़े की बुनाई शीघ्र हो सके। दिन प्रतिदिन कपड़ा बुनाई रंगाई व प्रिंटिंग के क्षेत्र में प्रगति होने लगी। इसके अतिरिक्त लगभग 400 करोड़ मीटर सूती कपड़ा करघों से भी तैयार होता था। अब सूती वस्त्र उद्योग की विशालता ने जन जीवन के हर क्षेत्र को प्रभावित किया है। मुख्यतः यह कार्य गृहणी के हिस्से में ही आता है। आज की छात्राएं कल की गृहणी बनेंगी। अतः आज हर छात्रा को कपड़ों का प्रयोग व प्रयोजन, उसकी मजबूती, कार्य क्षमता, उपयोगिता आदि के विषय में संपूर्ण जानकारी होनी चाहिए। इन सब की देख-रेख, धुलाई, संभाल आदि वस्त्रों को ठीक प्रकार से परखने की क्षमता, वस्त्र विज्ञान को जानने से ही आती है।

       (वस्त्र विज्ञान को जानने की आवश्यकता)   
       (need to know textile science)   

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तंतु, रेशे के कपड़ा तानों के बारे में जानने का यह लाभ है कि कपड़ा खरीदने में समझदारी है, ताकि वह समय से पहले रंग में, प्रिंट में धुंधला ना लगे। कई बार एक ही धुलाई में वस्त्र खराब सा प्रतीत होने लगता है। जिससे समय, धन व श्रम तीनों का ही नुकसान होता है।
  1. बुनाई की विधियों का ज्ञान: 
  2. वस्त्रों का सुरक्षा संबंधी ज्ञान:
  3. अवसर एवं मौसम के अनुकूल:
  4. रंगो का महत्व:
  5. वस्त्रों की उचित देखने की विधियां:
  6. वस्त्रों की परिष्कृति तथा परिसज्जा:
  7. पसंद के अनुसार चयन :
  8. वस्त्रों की धुलाई कला:

                  बुनाई की विधियों का ज्ञान 

🌳वस्त्र की मजबूती उसके तंत्र पर निर्भर करती है। तब तो कई प्रकार से बनाए जाते हैं फिर उनको बुनाई अर्थात वीविंग के द्वारा तैयार करते हैं। बुनाई भी कई तरह की होती है- (felting),(knitting),(braids and laces) तथा सिंगल बुनाई, (Twill) बुनाई तथा साटिन बुनाई। इन सब की जानकारी वस्त्र निर्माण से ही मिलती है।🌳

                वस्त्रों का सुरक्षा संबंधी ज्ञान।      

🌳जिस उद्देश्य के लिए कपड़ा खरीदना है वह उद्देश्य सामने रखकर कपड़ा लेना-- यथा, सोफा के लिए, खाने की मेज व कुर्सियों के लिए पर्दों के लिए अथवा बेडरूम के लिए-- यह ध्यान रखते हुए उसकी बुनाई, धागा (yarn), प्रिंट, रंग वह कपड़े की मोटाई को देख कर लेना, क्योंकि चलते फिरते पर्दों में हाथ रखते हैं, प्रयोग करने में गंदे होते हैं तो स्थान देखकर कि पर्दे कहां लगने हैं, उनका कड़ापन, धुलाई व चमक आदि को भलीभांति जांचने के लिए इन सभी सुरक्षा संबंधी नियमों की जानकारी करना आवश्यक है। यानी खरीदे जाने वाले वस्त्र की क्षमता के विषय में जानना भी अत्यंत जरूरी है। 🌳

                वसर एवं मौसम के अनुकूल

 🌳सभी जानते हैं कि शरीर की रक्षा के लिए वस्त्र पहने जाते हैं अतः सर्दी गर्मी या अवसर के अनुकूल ही बस चलिए जाए। जिस गृहणी को वस्त्र विज्ञान के विषय में ज्ञात होगा, वह तो इन बातों को ध्यान में रखकर वस्त्र खरीदेंगे अन्यथा ज्ञान ना होने पर पछतावा करना पड़ सकता है। कौन सी ऐसी प्राकृतिक है अथवा कौन से रासायनिक है उनका भी ज्ञान होना चाहिए। अन्यथा गर्मी में सिर्फ या ऊनी वस्त्र पहने हुए देखकर कैसा लगेगा । पूरी बाजू के ढके हुए कपड़े कितने अजीब लगेंगे या सर्दियों में बिना बाजू वाले वस्त्र तथा आरकण्डी, वायल की साड़ियां दिखने में कितनी अजीब लगेगी। इसके अतिरिक्त प्राकृतिक या निशानी या पशुओं से इनकी भी पूरी पहचान होना हमारे लिए जरूरी है। मौसम के अनुकूल वस्त्र ना पहना हुआ हो तो बहुत भद्दा प्रतीत होता है। रेशे के वास्तविक संवाहक गुणो की  जानकारी होना भी जरूरी है।🌳

                          रंगो का महत्व

🌳तंतुओं की जानकारी के साथ-साथ अनुकूल रंगों के बारे में भी पूरी तैयार होना जरूरी है। सर्दी के लिए गहरे रंग तथा गर्मी के लिए हल्के रंग का चयन ही देखने में अच्छा तथा पहनने में आरामदायक लगता है। वस्त्र चाहे प्रिंटेड , हो या एक रंग के या कोई दृश्य आदि से संबंधित हो, चाहे जो भी हो, होने पक्के रंगों में ही चाहिए जिन पर धूप, बरसात व प्रकाश आदि का असर न हो सके। जो रंग उन वस्तुओं पर प्रयोग किए गए हो, वे अच्छी क्वालिटी के तथा अच्छी विधि से प्रयोग किए गए हों।🌳

        
            वस्त्रों की उचित देखरेख की विधियां

🌳जब वस्त्र संबंधी गुण व दोष देखकर, विचार करके वस्त्र घर में लाया जाए तो मौसम के अनुसार ढंग से उनको सहेजना भी एक कला है, गर्म वस्त्रों को रखते समय और नील डाल कर रखना या Nepthelene balls आदि डालकर रखने से उनमें किराया फफूंदी नहीं लगती है। सलमा तिल्ला आदि काम वाले कपड़ों को सफेद सूती वस्त्र में लपेट कर रखना चाहिए, नहीं तो उनमें किया हुआ काम काला हो जाएगा। जिस स्थान में रखे वहां पर अच्छी तरह से धूप लगा ले ताकि कीड़ा भी ना लगे। डेलिकेट कपड़े को अधिक दबाकर रखना उचित नहीं हैं अन्यथा इनमें कृष अर्थात सलवटे पड़ जाती हैं। इसी तरह के कपड़े को जितना संभाल कर रखेंगे, उनकी रौनक उतनी ही अच्छी लगेगी और वस्त्र भी बहुत समय तक अच्छे रहेंगे।🌳

            वस्त्रों की परिष्कृति तथा परिसज्जा:

Textile की जानकारी से ही वस्त्रों की परिष्कृति अर्थात 
कपड़े की शुद्धता तथा परिसज्जा यानी उसको सजाना  अर्थात वस्त्र का सौंदर्य बनाए रखने के लिए ढंग का भी ज्ञान होता है। नहीं तो महंगा वस्त्र खरीदी तो लिए मगर उस को सावधानीपूर्वक ध्यान से नहीं रखा तो समझो पैसा बर्बाद कर दीया। हम जो वस्तु बाजार से लाते हैं वह मूल रूप से वैसा नहीं होता है। वह पहले तंतु रूप, फिर धागा ,फिर बुनाई ,वह भी कई कई तरीकों का होता है। उसमें शुरू से वस्त्र बहुत रफ क्वालिटी का होता है। इसके बाद उसे रोलर आदि पर से कई रसायनों के साथ मिलो में ट्रीटमेंट दिया जाता है, तब उसका रूप परिवर्तित होता है। इस तरह से वस्त्र सजाने की क्रियाओं के नाम हैं--- बीटिंग, ब्रशिंग, कैलेंडरिंग, ग्लेजिंग, सिरेइंग, शिरीनराइजिंग, सनफ्लाइजिंग, टैण्टरिंग, करेपिंग, कथा मर्सराइजिंग आदि। बताई हुई क्रियाओं में किसी कपड़े पर कोई भी किसी कपड़े पर कोई क्रिया करके तंतुओं को फाइल बनाकर मार्केट में भेजा जाता है जिसको सब करते हैं--- अपने अपने हिसाब से तथा अपने अपने ज्ञान के अनुसार। 🌳

                       पसंद के अनुसार चयन 

🌳घर की आवश्यकता तथा स्वयं की सूझबूझ के अनुसार ही बाजार में से अपने योग्य वस्त्र ही एक ग्रहणी खरीदती है, क्योंकि गृहणी ही परीसज्जा की विभिन्न विधियों को जानती है अलग-अलग क्वालिटी के वस्त्रों को ठीक तरीके से पहचान कर तथा सस्ते या महगें वस्त्रों को श्रेणी के अनुसार उपयोग में लाने की कला वस्त्र विज्ञान से ही मिलती है। जैसे किसी घर में दीवारें कम हो उसके स्थान पर से अधिक हो तो उन पर डबल पर्दे डालने की व्यवस्था, लेकिन रोशनी भी कम नहीं होनी चाहिए। अतः शीशों पर day light लाने के लिए नेट के पर्दे यानी सियर्स का प्रयोग करें और अंधेरा करने के लिए दूसरी रोड पर मोटे पर्दे उसी नेट के मेल से खाते हुए लगाए तो कमरे की खूबसूरती व रोशनी वैसे ही आती रहेगी इसी को परिसज्जा अर्थात refinement कहते हैं।🌳

🌳इसी के साथ ही यह सोचना पड़ता है कि किस वस्त्र का आजकल रिवाज चल रहा है---  यह भी वस्त्र विज्ञान से ही पता चलता है। इसी से गिरिडीह फैशन के मुताबिक किफायती वस्त्र अपने परिवार के लिए लेने में सक्षम रहती है। इसी के साथ परिवार के हर सदस्य का कार्यक्षेत्र, व्यक्तित्व तथा पसंद को ध्यान में रखकर ही वस्त्र खरीदने चाहिए ताकि वस्त्र पहनने से व्यक्तित्व में निखार आए। 
बीते हुए फैशन यानी आउट ऑफ फैशन का वस्त्र घर में तो चल सकता है। किंतु कार्यक्षेत्र में नहीं चल सकेगा। किसी भी व्यक्ति को अपने पद व स्टाइल के अनुसार ही वस्त्र का चुनाव करना चाहिए।🌳

🌳इसके अतिरिक्त कुछ विभागों में वर्दी का प्रचलन भी होता है जैसे सेना, पुलिस व डॉक्टरों के सफेद कोट, स्कूली बच्चों की यूनिफार्म। ऐसे संस्थानों में कोई पसंद का ध्यान नहीं दिया जा सकता है। Uniformity लाने के लिए तथा विशेष पहचान बनाने के लिए यह वस्त्र जिस डिजाइन की दिए जाते हैं वैसे ही पहनने होते हैं। यहां पसंद का प्रश्न ही नहीं उठता इसी प्रकार शोक के अवसर पर किसी को लाल-पीले कपड़े पहने देखिए तो अजीब लगेगा और खुशी के अवसर पर किसी को मैंले-गंदे या सादा कपड़े पहने देखोगे तो अच्छा प्रतीत नहीं होता है। ऐसे ही तीज-त्यौहार, उत्सव पर भी सुंदर आकर्षक वस्त्र सभी पहनते हैं। अतः वस्त्र विज्ञान की जानकारी की बदौलत ही फैशन, स्टाइल, पसंद को हम परिवर्तित (modify) कर-करके पहना सकते हैं। इसी को शालीनता का नाम देते हैं।🌳

                    वस्त्रों की धुलाई कला

🌳जिस वस्तु का प्रयोग नित्य-प्रति होता है उस की साफ-सफाई, धूल उचित तरीकों से करनी पड़ती है। आधुनिक समय में इतने भिन्न भिन्न प्रकार के तंतुओं से कपड़ा निर्माण होता है, सभी को सफाई करने की प्रक्रिया अलग-अलग होती है, क्योंकि कोई सूती है तो कोई रेशमी या कोई ऊनी अथवा रासायनिक है। सभी को धोने की, सुखाने की पद्धति भी अलग-अलग प्रयोग की जाती है। कोई सादा साबुन पानी से तो कोई हल्के गर्म पानी से, कोई इजी (Eezee) से तो कोई रीठो से धोए जाते हैं। किसी को ब्रश से धोना है तो किसी को केबल साबुन के घोल में डुबोकर रखना है तो किसी को नहीं निचोड़ना है तो किसी को लटकाकर सुखाना है। कोई लंबाई नहीं बढ़ जाता है तो कोई चौड़ाई बढ़ता है। परिणाम स्वरूप इन सब बातों की जानकारी हमें वस्त्र विज्ञान से ही मिलती है अन्यथा कपड़े खराब होने का डर होता है । किसी कपड़े को धूप में सुखाना है तो किस वस्त्र को छाया में, किसी को माड़ लगाना है तो किसी को नील मैं डूबाना है।  किस वस्तु पर क्षारीय तत्व की, किस पर साबुन की प्रक्रिया होती है और किस पर नहीं। बताया सब कुछ ज्ञान देने वाला वस्त्र विज्ञान ही होता है यानी टेक्सटाइल (Textile)  🌳

🌳अतः हमने वस्त्रों से संबंधित सभी जानकारियां पूर्ण रूप से आप तक शेयर किए। अतः घरेलू स्तर पर, मार्केट के स्तर पर, कथा वैज्ञानिक विधियों को आसानी से समझने के लिए वस्त्र विज्ञान (Textile) का ज्ञान होना अति आवश्यक होता है। अतः फैशन  के बारे में जाने से पहले वस्त्र विज्ञान की जानकारी होना अति आवश्यक होता है अर्थात असंख्य किस्मों के वस्त्र आजकल मार्केट में देखने को मिल रहे हैं उनके धोने के लिए भिन्न-भिन्न तरीकों को समझने के लिए यह जानना आवश्यक है कि उनकी उत्पत्ति, बनावट व विशेषताएं क्या हैं ताकि उन्हें ठीक प्रकार से धोया  या देखा और समझा जा सके। 🌳

इस आर्टिकल में हमने टेक्सटाइल के बारे में जाना टेक्सटाइल क्या है तथा टेक्सटाइल फैशन से किस प्रकार संबंध रखता है। 

टेक्सटाइल के साथ साथ हमें यह भी जाना आवश्यक होता है कि व्यक्तियों के अनुसार कपड़ों का चयन किस प्रकार किया जाए किया जाता है इसके बारे में जाने के लिए नीचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करें 👇


Personality Factor and choice of clothes . व्यक्तित्व के अनुसार कपड़ों का चयन।

 
                  Choice of clothes 

    🔵  Personality Factor and choice of clothes . व्यक्तित्व के अनुसार कपड़ों का चयन। 
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🌿परिधान धारण करना उनके चुनाव पर ही आधारित है क्योंकि परिधान धारण करने से व्यक्तित्व में निखार आता है अतः वस्त्रों का चयन करते समय बहुत सी बातें होती है इनका ध्यान रखना जरूरी होता है। कुछ महिलाएं ऐसी होती हैं जो ड्रेस उनको मिले उसे धारण कर लेती हैं। कुछ महिलाएं व पुरुष भी अपनी body shape को बिना जाने बिना परखे कुछ भी पहन लेते हैं जिससे उनका व्यक्तित्व दबा दबा सा लगता है। परिधान धारण करने का मुख्य उद्देश्य ही यह होता है कि दूसरों को प्रभावित करना कपड़ों या वस्त्रों को पसंद करने से पहले यह जानना आवश्यक है कि आपकी बॉडी (body) किस (type)की है। 🌿

🌿Body types निम्न तरह की होती हैं--- 
  1. प्लस साइज (plus Size)
  2. पीयर शेप (pear shape)
  3. ( Boyish shape) 
  4. (Hourglass Figure ) 
  5. (Long and Lean shape )🌿
  
                               Plus size 

                             

🌿Stabdard size से अधिक नाप वाले plus size कहलाते हैं। उन लोगों के लिए fitting coats, tight belts, cut pants, knee length and kaftans तथा pencil shape dkirts ही सूट करते हैं।

                             Pear shape 

                            

🌈ऐसी महिलाएं जिनके hips तो chest and shoulder से अधिक चौड़े होते हैं, उनको ऐसी ड्रेस पसंद करनी चाहिए। कि देखने वालों का ध्यान हिप पर खप जाए, ऊपर की ओर ही आकर्षण बनाए रखने के लिए backless, halter neck वाली या deep nevk वाले वस्त्र पहनने चाहिए। 🌈

                          Boyish shape 

                         

🌈ऐसी महिलाओं की नाप में छाती कम आ रही बराबर ही होते हैं अतः शारीरिक गोलाई (curves) को ऐसे उभारे की कमर पतली लगे इसके लिए इनको sporting jackets, A-line skirt, यदि साड़ी हूं तो कमर से टाइप करके तथा ब्लाउज कमर से अच्छी फिटिंग वाला पहले धीरे काफ्तान में कमर पर बेल्ट बांधकर प्रयोग करें। 🌈

                    Hourglass Figure 

                            

🌈इस आकृति में burst और hip बराबर होते हैं। कमर 8 इंच से 10 इंच तक कम होती है। ऐसी आकृति वालों को ही ड्रेस जंचती है। क्योंकि यह फिगर सुंदर है। 🌈

                 Long and Lean shape 

                              

🌈ऐसी लंबी वह पतली आपत्ति वाली महिलाओं के शरीर के कटाव (curve) कम ही दिखते हैं। इनकी बनावट विभिन्न models के जैसी होती है, इन्हें ड्रेस बनाकर जांच ना होता है। style वह चाल ढाल से यह attractive लगती है। 🌈

                  समाज व कपड़ों की पसंद
            (Society and clothing choice )

                            

🌈समाज में अधिक आने जाने वाली महिलाओं व पुरुषों को ड्रेस बहुत चुनकर पहनी चाहिए वहां के वातावरण स्थान पदवी आदि के अनुसार ड्रेस का चयन करना चाहिए। कुछ लोग अपने मन के हिसाब से कपड़े पहनते हैं कुछ यह सोचकर पहनने का निर्णय लेते हैं की आस पड़ोस की विचारधारा के अनुसार सभी को अच्छा लगे ऐसा सोचकर पहनने का निर्णय लेते हैं । लेकिन यदि आप यह विचार करते हैं कि जो मैं पहन रही हूं या रहा हूं वह मेरे व्यक्तित्व को प्रदर्शित करेगा या नहीं , यानी thinking  पहनने वाले की positive या negative भी हो सकती है, यह कि अमुक परिधान में व्यक्तित्व कैसा दिखाई देगा। प्रायः स्त्रियां अपने परिधान के विषय में बहुत अधिक सोचती विचारती हैं जबकि पुरूष कम ही इतना सोच विचार करते हैं। 🌈

                      वस्त्रों में जागरूकता
                ( clothing Awareness)

                               

🌈Personality Factor मैं body types के विषय में जो जानकारी दी गई है उन्हीं body types आधार के अनुसार ही ड्रेस चुनकर पहनी जाए तो वही clothing Awareness कहलाती है।🌈

🌈अवसर के अनुसार ड्रेस पहनना:  

हमारे वस्त्रों का धारण करना हमारे परिधानों के प्रति जागरूकता को दर्शाता है जैसे कि ऑफिस में या मीटिंग में जाना, विवाह समारोह या किसी भी पार्टी में जाना हुआ पिकनिक या घूमने के लिए जाना सभी परिस्थितियों में भी विभिन्न प्रकार के वस्तुओं का चयन करने व उन्हें धारण करना है हमारी जागरूकता है🌈

       टेक्सचर व प्लेट्स से प्रभावित आधुनिक फैशन
         ( Current Fashions with special.             emphasis on Texture and Plaids )

                             

🌈Plaids : अमेरिका में plaids को तारतन (Tartan) कहा जाता है। यह प्रायः चैकदार कपड़ा होता है जिससे प्रभावित होकर आधुनिक फैशन में भी इसको स्थान मिला है।🌈

🌈Kilt

यह 16वीं शताब्दी में स्कॉटलैंड में आदमी व लड़कों के पहनने जाने वाली पारंपरिक ड्रेस होती थी जिसकी लंबाई घुटनों तक तथा पीछे के भाग से प्लेट्स होती थी उसी को kilt कहते हैं। 🌈

🌈Texture and plaids : 

16वीं शताब्दी वाले फैशन को कुछ परिवर्तित करके आज आधुनिक से फैशन में मिला लिया गया है। अर्थात् kilt के style मैं कंधे के ऊपर पहनकर, कमर में सामने से इसे जो बांधा जाता था उसी के patrern पर आज के समय में Bagiper बजाने वाली की तथा फौज में musicians  कि इस प्रकार की uniform बना दी गई है।🌈

🌈अर्थात् bagpiper बजाने वालों की भी कंधे से लटकती हुई चैकदार वूलन ड्रेस या ठंडी ड्रेस ( मौसम के अनुसार) निश्चित कर दी गई है। इसके अतिरिक्त आधुनिक फैशन में इस पारंपरिक ड्रेस का Texture and plaids का प्रयोग कई तरह से हो रहा है । जैसे पर्स बनाने में, हैंड बैग बनाने में, necks मैं, वैली व स्कार्फ तथा अनेकों प्रकार की स्कर्ट्स तथा जैकेट्स में चेक मटेरियल का तथा क्लिट्ज डालकर डिजाइनिंग करने का प्रचलन आज भी बहुत से तरीको से हो रहा है। छात्र छात्राओं के लिए Texture and plaids  को भिन्न-भिन्न रूपों में डिजाइन बनाने व नए नए प्रयोग करने के लिए यह चैकदार कपड़ा बहुत उपयोगी है।🌈

           ड्रेपिंग ( Draping ) 

                   

🌈ड्रेपिंग वह तकनीक है जिसके द्वारा एक डिजाइनर वस्त्र को बनाने (create) के लिए डमी ( dummy) या स्केच ( sketch) पर ड्रेस की फार्म (form) मैं unstitched cloth को लटका देते हैं यानी drape  कर देते हैं। इसी पर डिजाइनर सैंपल (sample) का पूरा का पूरा रूप बना देते हैं।  इस कार्य में कपड़े को सिलाई नहीं की जाती है। सिलाई के स्थान पर जैसे-जैसे डिजाइन बनाना होता है वैसे कपड़े को डमी पर सेट कर के ड्राइंग पीलिया ऑल पिन लगाकर बेल्ट ओके द्वारा रोक कर अथवा चिपकाने वाले यानी sticking material के द्वारा ड्रेस को shape देते हैं Drapped body garments को अलग-अलग मटेरियल के द्वारा है दिखा सकते हैं। लेकिन प्रशिक्षणथी जब कक्षा में draping को सिखाती है तो प्रायः स्केच पर ही सिखाती है। स्केच बनाकर उस पर अलग-अलग मैचिंग के कपड़ों के द्वारा चिपका कर उसको सुंदर बनाने के लिए ब्लैक स्केच पेन या sparkling colours से outline बनाते हैं। अतः इसके या डमी द्वारा विद्यार्थी draping सीखते हैं। 🌈

 इन सभी के अतिरिक्त इन सब से जुड़े कुछ ऐसे पालना तथा अवज्ञा के बारे में बताऊंगी जो इस प्रकार है: 

           आदतों की पालना तथा अवज्ञा करना
     ( Conformity and Non- conformity)

🌈Conformity : 

यह वह प्रोसेस है, जिसके द्वारा एक individual व्यक्ति के विचार,  विश्वास व आदतें दूसरों से प्रभावित हो जाती है।  यह प्रभाव किसी व्यक्ति के अंदर किसी समूह को देखकर या समाज में देखकर अपने अंदर स्वयं आ जाता है। यह असर अनजाने में या सीधे रूप से या सामाजिक दबाव से भी उत्पन्न हो जाते हैं। ये conformity किसी वाह्य व्यक्ति की उपस्थिति या अनुपस्थिति दोनों ही दिशाओं में भी स्वयं आ जाती है। जैसे की उदाहरणत: खाते समय या किसी शादी में व्यक्ति समाज में बने हुए नियमों का पालन स्वयं ही करने लगता है। जैसे खाने से पहले हाथ धोने की आदत का कोई भी व्यक्ति पालन स्वयं करता है क्योंकि यह उनकी बचपन से ही आदत बन चुकी है इस नियम का पालन अकेले हो चाहे 8 या 10 लोगों के बीच में हो। यह स्थिति वहां पर भी होती है जहां पर समान उम्र कल्चर धर्म या समान शैक्षिक स्तर के लोग उपस्थित हों। इन चीजों या नियमों से हटने पर उसको सामाजिक बहिष्कार का डर होता है। ऐसा माना जाता है कि confirmity केवल teenagers ( युवा होते हुए बच्चों) व युवाओं से ही संबंधित है, परंतु वास्तव में मानव की हर उम्र पर हर समय असर होता है। एक समान सामाजिक स्तर के उम्र के तथा समूह के विचारधारा या आदतों का स्थिति के अनुसार सद्प्रभाव या दुष्प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के तौर पर समान स्तर के समूह में आमतौर पर देखा गया है कि अधिकतर yound crowd  नशे व शराब जैसी आदतों से बहुत जल्दी प्रभावित हो जाते हैं यह उन आदतों में पड़कर शामिल हो जाते हैं। लेकिन इसी समूह में दूसरों की देखा देखी सड़क पर सुरक्षित तरीकों के आधार पर ड्राइविंग करते है जो कि इसका अच्छी आदतों का एक उदाहरण है जो कि उसके सुप्त मस्तिष्क ( sub-consciouse mind )  मैं यह आदत बन चुकी है। 🌈
 
🌈Non- conformity :

समाज में उपस्थित नियमों तथा कानूनों को ना मानना या उनके अनुसार ना चलना ही non-conformity है।  समाज के द्वारा बनाए गए नियमों का आदतो ( practices) ना मानना या इनसे सहमति ना होना भी Non-conformity ही कहलाता है। उदाहरणत: आप भी कार्य करते हो जो आपके आसपास किसी ने ना किया हो। जैसे किसी उत्सव में या पार्टी आदि ने किसी के घर बिना उपहार के पहुंच जाना। जबकि यह एक सामाजिक नियम व प्रेम पूर्ण व्यवहार है कि आप किसी के यहां निमंत्रण पर किसी पार्टी में जाए तो अवसर के अनुसार उपहार लेकर जाएं। 
जिस प्रकार यह Conformity और Non- conformity सामाजिक दायरे में निहित है, इसी प्रकार अपनी ट्रेड में फैशन टेक्नोलॉजी में डिजाइन बनाने में, परिधान तैयार करने में इन सभी नियमों का, आदतों का पूरा पूरा ध्यान देना जरूरी है ताकि परिधान निर्माण सुंदर व व्यवस्थित रहे। 🌈

इस आर्टिकल में हमने कपड़ों के बारे में जाना। 

तथा मध्यकालीन युग के फैशन कैसे थे इसके बारे में जाने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें👇




                  

































 

Fashion

"फैशन डिजाइनिंग में ड्राइंग और स्केचिंग: एक पूरी गाइड"

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