Which clothes are better in winter cotton or synthetic? विंटर कॉटन या सिंथेटिक में कौन से कपड़े बेहतर हैं?


               winter cotton or synthetic


 Which clothes are better in winter cotton or synthetic? विंटर कॉटन या सिंथेटिक में कौन से कपड़े बेहतर हैं?

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Winter cotton या synthetic में winter cotton बेहतर माना गया है । क्यों माना गया है । इसके बारे में जानने के लिए synthetic और winter cotton के बारे मे जाने

दोस्तों वस्त्र तो सब पहनते है । वस्त्र से हमारे शरीर की रक्षा होती है । तथा बहुत से fabric ऐसे होते हैं जो हमारे शरीर को फायदा के साथ-साथ नुकसान भी पहुंचाते हैं आज हम ऐसे ही कुछ फैब्रिक के बारे में जानेंगे। 

इस आर्टिकल में हम ऐसे ही fabric के बारे में जानेंगे सिंथेटिक और विंटर कॉटन में सबसे बेहतर कपड़ा कौन सा माना गया है। 

Synthetic fabric :-  

Synthetic का हिंदी मतलब है कृत्रिम यानी बनावट यह दो प्रकार के होते हैं। 

(a) यंत्रों द्वारा निर्मित :- 

मनुष्य ने रसायनों के सहयोग से रेयान का निर्माण किया यह यांत्रिकी के द्वारा तैयार तंतु है। 

(b) रसायनिक रेशे :- 

अनेकों रासायनिक एलिमेंट को मिलाकर रसायनिक विधियों से यह रेशे बनाए जाते हैं । इनकी बने वस्त्र टिकाऊ सुंदर पक्के रंगों में तथा सिकुड़न रहित होते हैं। 

इनमें मुख्यत चार अधिक प्रचलित हैं - 

(I)  नायलॉन :-  इसके रेशे प्रारंभ में अमेरिका में ही बनाए गए थे। 9 व्यक्तियों ने 7 साल के अथक प्रयास से बहुत से रसायनों को मिलाकर रेशों का निर्माण किया था। यह आग में घुल जाता है और सर्दी व गर्मी का तुरंत असर होता है । 

(II) आरलॉन व एकरीलॉन :- यह दोनों रेशे भी एक्रिलिक है। इन्हें इच्छा अनुसार वह आवश्यकतानुसार आकारों में बनाया जाता है। 

(IV) डेकरॉन:-  यह पॉलिएस्टर से निर्मित रेशा है। यह रेशा  सीधा चिकना तथा पूर्ण रूप से गोल होता है। 

Synthetic clothes बहुत सारे पेट्रोलियम से बना होता है उसमें बहुत सारे केमिकल होते हैं तथा बहुत सारी चीजों से बना होता है यह हमारे शरीर के लिए नुकसान होता है बहुत सारे लोगों पर कुछ कपड़ा शूट भी करता है जिनकी senstive skin की होती है उन लोगों पर यह कपड़ा शूट नहीं होता।  तथा ऐसे लोगों को एलर्जी हो जाती है। 

तथा Synthetic कपड़ा जो भी व्यक्ति पहनते हैं उससे कुछ ना कुछ समस्या होती ही रहती है । खासकर बच्चों को क्योंकि इनकी skin काफी sensitive रहती है। इसलिए synthetic fabric से बना वस्त्र सही नहीं होता है। 

Synthetic clothes लोग इसलिए पहनते हैं क्योंकि सिंथेटिक में रिंकल नहीं पड़ता है सिंथेटिक फैब्रिक पूरा प्लास्टिक होता है सिंथेटिक फैब्रिक को लोग ज्यादा इसलिए पसंद करते हैं क्योंकि इसमें सिकुड़ने की चांस बहुत कम होते हैं इसलिए लोग इसे ज्यादा पसंद करते है। और सिंथेटिक फैब्रिक लंबे समय तक रिंकल फ्री होते हैं। तथा धुलने पर जल्दी सूख जाता है। इसलिए लोग इसे उपयोग में लेते हैं। 

पर synthetic fabric  हमारे शरीर के लिए काफी नुकसानदायक होता है। सिंथेटिक कपड़ा खूबियों के कारण लोकप्रिय तो है पर इनके शरीर पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव की जानकारी यह सोचने पर विवश कर देती है कि उसे पहने या नहीं। सिंथेटिक कपड़े बनाने के लिए बहुत से हानिकारक केमिकल उपयोग में लाए जाते हैं यह विषैले केमिकल हमारे शरीर के लिए बहुत नुकसानदायक होते हैं--

सिंथेटिक कपड़ें पॉलिएस्टर, नायलॉन, एक्रिलिक, डेकरान आदि शामिल होते हैं। सिंथेटिक कपड़ों की डाई करने, ब्लीच करने, उन्हें बनाने की प्रक्रिया के लिए उपयोग में आने वाले खतरनाक केमिकल के कारण कई खतरनाक बीमारियों का सामना करना पड़ता है जैसे:- 

कैंसर, हार्मोन्स में बदलाव, प्रतिरोधक क्षमता की कमी, तथा मानसिक समस्या जैसी समस्या उत्पन्न हो सकता है। इसलिए सिंथेटिक कपड़ा विंटर कॉटन की अपेक्षा नुकसानदायक और अच्छा नहीं माना जाता है। 

विज्ञान की तरक्की के साथ फाइबर कृत्रिम रूप से बने जाने वाले सिंथेटिक फैब्रिक करते है। 

Winter cotton :- 


Winter cotton बहुत ही soft व कमाल का fabric  होता है। विंटर कॉटन की खूबी ऐसी है जिसका रंग आखिरि तक जैसे के तैसा ही होता है। तथा यह कई रंग में देखने को मिलते हैं अधिक से अधिक winter cotton कई किस्म देखने को मिलता है। 

Winter cotton  का रंग स्कीम खास दो ही होते हैं एक  white और दूसरा off white इसकी खूबी यह है कि इसकी whiteness आखिर तक ऐसी ही रहेगी। और यह जो स्टफ है इसे सर्दी के मौसम में पहने जाने वाला वस्त्र है। 

तथा winter cotton का स्टफ जो होता है हेल्थी वह मोटा होता है इतना भी मोटा नहीं है जो चूभे तथा काफी soft  होता है।  और winter cotton मुलायम होने के साथ-साथ बहुत ही अलग गुणवत्ता के होते हैं। 


तथा winter cotton  से बना वस्त्र काफी मुलायम आरामदायक होता है। पहने ने वह देखने में यह वस्त्र काफी लुभात्मक लगता है यह वस्त्र ठंडी के मौसम में  पहने जाने वाला वस्त्र है। winter cotton की मोटाई बहुत कमाल की होती है। 

Winter cotton कई प्रकार के होते हैं। 

(1) warm winter cotton 
(2)white winter cotton 
(3) off white winter cotton  
(4) Luxuriant winter cotton  

Winter cotton  कई श्रेणी में देखने को मिलते हैं। यह ऐसी फैब्रिक है जिससे किसी भी तरह का नुकसान नहीं होता है हमारे शरीर को तथा वस्त्र बनने पर यह देखने में काफी कमाल का लगते हैं। और गर्माहट के साथ-साथ आरामदायक भी होता है। 

Winter cotton  fabric से हमारे शरीर को किसी भी तरह का कोई नुकसान नहीं होता है। यह वस्त्र सर्दी के मौसम में पहने जाने वाला वस्त्र है। 

Winter cotton fabric बहुत ही मुलायम और आरामदायक के साथ साथ देखने में भी काफी खूबसूरत लगता है। 

इस प्रकार हमने जाना की winter cotton और synthetic fibric मैं से सबसे अच्छा कपड़ा माना जाता है winter cotton fabric . 

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प्रिंटिंग के कितने तरीके हैं ? रंगों की पक्की पन की जांच किस प्रकार की जाती है?How many printing methods are there? How is the solidity of colors tested?


                   Printing ( छपाई )

प्रिंटिंग के कितने तरीके हैं ? रंगों की पक्की पन की जांच किस प्रकार की जाती है?How many printing methods are there? How is the solidity of colors tested?

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जीवन में रंगों का महत्व है। रंग प्रत्येक के मन व प्राण है। फिर रंग चाहे जीवन में हो चाहे वातावरण में हो चाहे वस्त्रों में। चारों और रंग ही रंग नजर आते हैं। मनुष्य तो क्या पशु पक्षी तथा जीव जंतु भी रंगों से प्रभावित होते हैं। वस्त्रो को रंगने की पद्धति प्राचीन काल से ही है। तब वनस्पतियों से फूल पत्तों से रंग लेकर बनाकर वस्त्रो को रंगा जाता था। आज भी उस तरीके को और परिष्कृत बनाकर वनस्पतियों से रंग लेकर तथा रासायनिक मिश्रण बनाकर रंग तैयार करते वक्त सभी रंगों के फूल का स्पर्श कराकर वस्त्रों को एक नया look देने की प्रथा चल रही है। 

विभिन्न प्रकार के रंगों का प्रयोग हर प्रकार के वस्त्रों में नहीं किया जा सकता है रंगों की गुणवत्ता और किस रंग का प्रयोग किन वस्त्रों पर किया जाना चाहिए इनकी जानकारी दोनों के गुण दोष जानकारी प्रयोग किया जाए चाहिए। रंग चाहे किसी भी प्रकार से बनाए गए हैं वे सभी घुलनशील होते हैं। 

प्रिंटिंग के कितने तरीके हैं ? रंगों की पक्की पन की जांच किस प्रकार की जाती है?How many printing methods are there? How is the solidity of colors tested?

छपाई (printing) :--  

जब कपड़े भली-भांति रंग जाते हैं तो उनकी दूसरी परीसज्जा छपाई के रूप में होती है। घरेलू तरीकों में बहुत तरीके छपाई के होते थे जिनमें से कुछ आज भी प्रचलित है।

( a) (ब्लॉक प्रिंटिंग) block printing  :- 

ब्लॉक प्रिंटिंग इसको ठप्पों की छपाई कहते हैं । प्राचीन काल से कुछ भी छापने के लिए हाथ से डिजाइन बनाए जाते थे। किंतु जब काम अधिक करने की योजना बनी तो लकड़ी के टुकड़ों पर अपना नमूना छाप कर उसकी कटाई करके एक परमानेंट ब्लॉक बना लिया जाता है। रंग जहां छापना होता है छाप लेते हैं। यह काम हाथ से बनाने से शीघ्र हो जाता है। बहुरंगी ब्लॉक प्रिंटिंग करने के लिए जितने रंगों का प्रयोग करना होता है उतनी ब्लॉक बनाकर अलग-अलग रंगों में रखकर छापा मारना होता है। 

(b)  (रोलर प्रिंटिंग)Roller printing  :- 

इस विधि में रोलरों पर अपना इच्छित नमूना बनाया जाता है। और उससे पूरे थान के थान शीघ्रता से छप जाते हैं। इसमें एक रंग के तथा बहुरंगी दोनों तरह के वस्त्र प्रति घंटा हजारों मीटर छप जाते हैं। नंबर 1 तथा नंबर दो मैं केवल इतना अंतर है कि नंबर 1 यानी कि ब्लॉक प्रिंटिंग हाथ से तथा रोलर प्रिंटिंग मशीन से होती है। 

(c) डुप्लेक्स प्रिंटिंग (Duplex printing) :-- 

इस विधि में छपाई बहुत सुंदर होती है। इसकी छपाई ऐसी होती है मानो बुनाई में ही हो। किंतु इस छपाई को करने वालों को बड़ा सावधान रहना पड़ता है, नहीं तो छपाई बिगड़ सकती है। 

(d) ब्लॉच प्रिंटिंग (Blotch printing ):- 
 
इस printing में नमूने तो छपते ही हैं साथ में खाली स्थान भी छपते हैं। 

(e) निस्सरण प्रिंटिंग (Extract printing ):- 

यह श्वेत नमूने की छपाई होती है ऐसे रोलर जिस पर नमूने बने होते हैं। और उनका ब्लीच से संपर्क रहता है, कपड़ा इन रोलर में देकर कपड़े डिजाइन के अनुसार रंग खींच लेते हैं। ऐसे डिजाइन का स्थान शवेत होकर उभरता है। अधिकतर यह कार्य गहरे रंग के कपड़ों पर किया जाता है इस प्रिंटिंग का दोष यह होता है कि ब्लीच वाला स्थान गल कर हल्का हो जाता है। 

(f) स्क्रीन प्रिंटिंग ( Screen printing) :

स्क्रीन प्रिंटिंग एक बहुत समय लगने वाला महंगा सौदा है। इसको केवल हाथों के द्वारा ही किया जाता है। एक फ्रेम का प्रयोग इस प्रिंटिंग में किया जाता है। जिस कपड़े पर स्क्रीन प्रिंटिंग करनी हो उसे मेज पर बिछा कर दो लोगों की सहायता से फ्रेम बिछाकर रंग लगाते हैं। नमूने में जहां रंग नहीं लाना होता है वहां पर अवरोधक लगा देते हैं। एक से अधिक रंगों का भी प्रयोग इस प्रिंटिंग में करते हैं किंतु अलग रंग के लिए अलग फ्रेम का प्रयोग करना पड़ता है। अत: छपाई महंगी भी है और समय भी अधिक लगता है। 

(g) स्टैंसिल प्रिंटिंग (Stencil printing) :- 

इस विधि को शुरू करने तथा कपड़ों पर छपाई की शुरुआत करने का श्रेय जापानी वैज्ञानिकों को है इसकी कार्यप्रणाली स्क्रीन प्रिंटिंग से मिलती जुलती है। इसमें  डिजाइन को धातु की सीट पर या उनके द्वारा चिकने कागज पर बना लिया जाता है फिर उस सीट का स्टैंसिल काट लेते हैं स्क्रीन प्रिंटिंग के समान एक रंग के लिए एक स्टैंसिल तथा जितने भी रंग प्रयोग करने हो उतने स्टैंसिल कट करने पड़ते हैं। 

स्टैंसिल काट लेने के उपरांत वस्त्र पर बिछाकर दो लोगों की मदद से नमूने को सीधा रखते हुए स्टैंसिल द्वारा कलर कपड़े पर दे आते हैं और यह कलर हाथ की ब्रश द्वारा स्प्रेगन से उस स्टैंसिल के ऊपर लगाया जाता है जो वहां से वस्त्र पर डिजाइन के रूप में जाता है इस प्रकार सुंदर से सुंदर डिजाइन वस्त्रों पर बनते हैं। 

(h) अवरोधक प्रिंटिंग (Resist printing) :-  

यह भी छपाई का अनोखा तरीका है क्योंकि रोलर पर जो डिजाइन चाहिए होता है बना दिया जाता है और डिजाइन के अलावा जहां रंग नहीं चाहिए उस स्थान पर रेजिन युक्त पेस्ट को रंग अवरोधक के रूप में लगा देते हैं और उसके उपरांत वह वस्त्र रोलर पर से गुजारे जाते हैं। अब डिजाइन के रूप में अवरोधक पदार्थ का पेस्ट वस्त्र पर आ जाता है और वस्त्र को रंग लिया जाता है अवरोधक पदार्थ की वजह से सिर्फ डिजाइन वाला भाग रंगा जाता है और बाकी रह जाता है उसके उपरांत वस्त्र को धोकर वह अवरोधक पेस्ट को उतार देते हैं और सुंदर छपा हुआ वस्त्र सामने होता है। 

(I)  ताने की छपाई (warp printing) :--

इस छपाई में तने हुए तानों पर ही डिजाइन अंकित कर दिये जाते हैं। और छपाई के बाद उसमें बाना पुरा किया जाता है। बुनाई करते समयका काम श्वेत रंग के धागों से किया जाता है बाने का धागा एक ही रंग का रखा जाता है ताकि तानों पर की गई पेंटिंग स्पष्ट रहे इस की बुनाई अर्थात weaving में भी कारीगरों को बहुत सावधान रहना पड़ता है इस प्रकार ताने के डिजाइन कलात्मक दृष्टि से बहुत सुंदर प्रतीत होते हैं जिससे कि वस्त्रों का मूल्य भी बढ़ जाता है। इस बुनाई की कठिनाइयों को देखते हुए ही यह अधिक चलन में नहीं है। 

वस्त्रों के रंगों की पक्केपन की जांच
(Testy colour Fastness of fabric 

जो वस्त्र मिलों में तैयार होते हैं चाहे वे सस्ती हो या महंगे हो केवल रंगीन हो या पेंटिंग हो सभी रंगों के पक्के पन का जाच सबसे पहला होता है, क्योंकि वस्त्र प्रयोग उपरांत धुलते हैं, धूप में सुखाए जाते हैं, प्रेैस (आयरन) भी किए जाते हैं, पहनने पर पसीना में भी भिगते हैं। तों जैसे-जैसे वस्त्र प्रयोग किए जाते हैं, वह हल्के रंग के या प्रिंट के होते जाते हैं । 

अतः वस्त्रों के रंगों के जांचने के लिए जो उपयोग होते हैं अब उनके विषय में जानकारी प्राप्त करेंगे। 

1. धुलाई के द्वारा रंग परिवर्तन :-

जो भी वस्त्र लेना हो उसका छोटा सा टुकड़ा धोकर व सुखाकर परीक्षण कर लिया जाता है कि रंग कितना पक्का है अथवा नहीं । साबुन लगाने से पूर्व पानी में ही यदि रंग निकलने लगे तो बिल्कुल कच्चा रंग मानना चाहिए और यदि साबुन लगाने पर निकले तो धोकर सफेद कपड़ो पर फैला कर देखे कि सफेद कपड़े में रंग आया या नहीं और साथ ही उसे प्रेस भी कर दे तो स्पष्ट पता लग जाएगा कि कपड़ों का रंग किस श्रेणी का है धोने के अलावा कपड़े के टुकड़ों को जेवेल वाटर में डालकर भी जांचा जा सकता है। 

2. आयरन करने के द्वारा ( Testing by ironing) :--

धोनें के उपरांत उस गीले कपड़े के ऊपर बार-बार आयरन को रख कर देखा जाता है कि प्रेस के ताप द्वारा कपड़े के रंग में अंतर आया या नहीं। 

3. भाप द्वारा वस्त्र को जांचना (Testing by steam) :-  

जांचने वाले कपड़े के टुकड़ों को लेकर दोनों और एक एक सफेद कपड़ा लगाकर खोलते हुए पानी के ऊपर जाली रखकर उस पर रख देते हैं थोड़ी ही देर के उपरांत स्टीम लगने से मूल कपड़े का रंग सफेद कपड़ो पर लग जाएगा यदि वह रंग कच्चा होगा तो रंग सफेद कपड़े मे छप जाएगा और यदि पक्का होगा तो सफेद कपड़े के टुकड़े सफेद ही रहेंगे। 

4. कपड़े को सूर्य प्रकाश में जांचना (Testing in sunlight):--

सूर्य का प्रकाश भी वस्त्रों के रंग पर असर डालता है अतः वस्त्र का एक टुकड़ा किसी अपारदर्शी मोटे कागज से ढककर कुछ दिनों के लिए धूप में रख दें और कुछ दिनों के उपरांत उस टुकड़े को अपारदर्शी कागज से निकालकर बाकी कपड़े से मिलाने पर पता लग जाएगा कि उस पर धूप एवं सूर्य प्रकाश का प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है या नहीं। 

5. पसीने से वस्त्र की जांच (Testing by perspiration) :--

यद्यपि यह जांच हम पसीने के द्वारा भी कर सकते हैं किंतु कपड़े के टुकड़े को किसी अम्ल के घोल में 10 मिनट तक डुबोकर रख देते हैं फिर उसमें से निकाल कर किसी सफेद कपड़े में लपेट कर रख देते हैं इस प्रकार एक तो वह कपड़ा सूख जाता है। दूसरे रंग का भी पता लग जाता है जो परिणाम आते हैं वही पसीने से भी समझने चाहिए। 

इस प्रकार के वस्त्रों को रंग या वर्गों के द्वारा रंग ना उसके लाभ व हानियां तथा वे रंग युक्त कपड़े बहुत समय तक अच्छी दशा में उपभोक्ता के पास रह सके उसके लिए रंगों की जांच भी जरूरी है उसका तरीका भी हर गृहणी को अथवा घर का संचालन करने वाले को ज्ञात होना चाहिए। 

सूती,ऊनी और रेशमी कपड़ों के बारे में जाने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें। 👇


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कपड़ों की सिलाई करते समय मार्जिन सिलाई के लिए रखा गया अतिरिक्त कपड़ा । The extra fabric kept for stitching margin while stitching a garments.

 

                   Extra fabric Margin


कपड़ों की सिलाई करते समय मार्जिन सिलाई के लिए रखा गया अतिरिक्त कपड़ा । The extra fabric kept for stitching margin while stitching a garments. 


:-- कपड़े की सिलाई करते समय मार्जिन सिलाई के लिए रखा गया अतिरिक्त कपड़ा क्या है यह जानने के लिए  artical को अंत तक पढ़े। 


🌿कपड़ो की सिलाई करते समय रखा गया अतिरिक्त कपड़ा मार्जिन सिलाई कहते है । मार्जिन वह है जो हमारे वस्त्र के fitting का निशान लगाने के बाद 1/2" या 1/1/2" का जायदा कपड़ा रखते हैं वह भाग अतिरिक्त मार्जिन कहलाता है । तथा seam allowance से हटकर बचा कपड़ा मार्जिन भाग कहलाता है। 🌿

Seam allowance & margin 

🌿हम सभी लोग तरह-तरह के वस्त्र धारण करते हैं तथा अपने पसंद अनुसार नापसंद अनुसार सभी तरह के पोशाक पहनते हैं सभी ड्रेस में एक्स्ट्रा कपड़ा रखा जाता है कपड़े की फिटिंग होने के बाद दोनों साइड में बचा कपड़ा मार्जिन होता है ।🌿

अतिरिक्त कपड़ा

🌿मार्जिन भाग हमें हर एक पोशाक में देखने को मिलता है। जो कपड़े की सिलाई करते समय मार्जिन सिलाई के लिए अतिरिक्त कपड़ा रखा जाता है। जब भी हम कोई भी वस्त्र तैयार करने के लिए कटिंग करते हैं हमारी जितनी साइज होती है उसके according seam allowance छोड़ते हैं। ताकि वह कपड़ा हम लंबे समय तक धारण कर सके। 🌿

Margin 

🌿किसी भी कपड़े में मार्जिन रखने से यह होता है। कपड़ा लम्बे समय तक बना रहता है । स्पष्ट रूप से कहा जाए तो कपड़े की सिलाई करते समय जो भी कपड़ा में मार्जिन रखते हैं। अतिरिक्त शेष extra कपड़ा मार्जिन कहलाता है।
जिसे seam allowance के लिए छोड़ते हैं। 🌿
 
सही माप पैटर्न

🌿यह margin इन सभी पोशाकों को तैयार करने के लिए रखते हैं ताकि ड्रेसेस को भलीभांति तैयार कर सके जितना हमारा शरीर का माप होता है उसके according हम वस्त्र बनाने के लिए निशान (mark) लगाते हैं। और अपने शरीर के अनुसार कपड़े पर निशान लगाने की बाद seam allowance  के लिए extra मार्जिन रखते हैं। यह मार्जिन1/2" या  1/1/2" रखते हैं। जिसे अतिरिक्त बचा कपड़ा कहते हैं। 🌿

🌿हम जानेंगे seam allowance के बारे में इससे हमें ज्ञात होगा margin के बारे मे seam allowance वह अतिरिक्त स्थान है जिसे पैटर्न के टुकड़े के किनारे की आस पास जोड़ते है। ताकि इसे एक साथ सिल दिया जा सके।  और उसके अलावा जो भी पोशाक तैयार करते हैं। seam allowance के साथ extra margin रखते हैं ताकि कपड़े को छोटा बड़ा कर सके। 🌿

और हमारे वस्त्र लंबे समय तक चल सके इसलिए कपड़ों की सिलाई करते समय मार्जिन के लिए अतिरिक्त शेष कपड़ा रखते हैं। 

फैशन डिजाइनर tools वह materials के बारे में जानने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें। 
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फ़ैशन उद्योग के साथ फ़ैब्रिक पेंटिंग का संबंध Relation between fabric painting with fashion industry

 

                      Fabric painting 
                 with fashion industry 


💐फ़ैशन उद्योग के साथ फ़ैब्रिक पेंटिंग का संबंध Relation between fabric painting with fashion industry 💐



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फैशन उद्योग के साथ फैब्रिक पेंटिंग का गहरा संबंध है।  पेंटिंग कला का एक रूप है डिजाइन वे रचना है जो एक कलाकार के कल्पना से पैदा होता है विशिष्ट प्रकार की पेंट तथा ब्रश के कपड़े पर उसकी सुंदरता बढ़ाने के लिए किया गया फैब्रिक पेंटिंग कहलाता है। और फैशन उद्योग में फैब्रिक पेंटिंग का संबंध गहरा होने के साथ-साथ यह फैशन को निखारता है। और कपड़े को आकर्षित बनाता है। 



कपड़े पर छपाई होने से उसकी सुंदरता और गुणवत्ता बढ़ जाती है। फैशन उद्योग में फैब्रिक पेंटिंग का बहुत बड़ा योगदान है। फैशन क्षेत्र में फैब्रिक का किरदार अहम भूमिका होता है। हम जानेंगे फैशन उद्योग में  फैब्रिक पेंटिंग का क्या संबंध है। फैशन उद्योग में फैब्रिक का संबंध के बारे में जानने के लिए हमें फैब्रिक पेंटिंग के बारे में पूर्ण रुप से जानना होगा आखिर फैब्रिक पेंटिंग क्या है। 


आइए जानते हैं फैब्रिक पेंटिंग के बारे में ---



पेंटिंग कला का एक रूप है। फैब्रिक पेंटिंग का अर्थ होता है (कपड़े पर छपाई करना) जो एक कलाकार की कल्पना के अनुसार चित्रित होता हैं। तथा कपड़े पर छपाई होने के बाद उस कपड़े की गुणवत्ता और भी ज्यादा बढ़ जाती है तथा वह कपड़ा फैशन वर्ग में सम्मिलित हो जाती है। 

कपड़ों के ऊपर निश्चित पैटर्न या डिजाइन के अनुसार रंग चढ़ाने की प्रक्रिया वस्त्रों की छपाई कहलाता है। 

कपड़े पर छपाई कई प्रकार की होती है तथा उसके कई सारे वर्ग होते हैं जैसे:- 

1. हाथ द्वारा ठप्पा से छपाई हेतु एक डिजाइन इससे ठप्पा  की जटिलता का अनुमान लगाया जा सकता है। 

2. बातिक छपाई

(I) छींट बांधनी

3. बांधनी छपाई

(I) कपड़े की छपाई को दो भागों में बांटा गया है सिद्धांत तथा कार्य प्रणाली

4. मशीन के द्वारा ठप्पो से छपाई

5. स्टैंसिल की छपाई

6. स्क्रीन की छपाई

7. बेल छपाई तथा सिलेंडर छपाई 

(I)  छपाई की निम्न प्रथाएं होती है - 

जैसे:- रासायनिक अथवा यांत्रिक क्रियाओं के आधार पर इन नीतियों को अलग-अलग वर्गों में रखा जा सकता है। जो प्रत्येक से भिन्न है इसी को छपाई की प्रथाएं कहते हैं। 

इसमें कई तरह की छपाई आती है जैसे :- 

भाप द्वारा छपाई, रंजक छपाई और कटाव छपाई जो छपाई की प्रथाएं श्रेणी में आते हैं। 

फैब्रिक पेंटिंग मैं उपयोग की जाने वाली पेंट अच्छी गुणवत्ता की होनी चाहिए। विभिन्न प्रकार के कपड़ों के अनुसार अलग-अलग प्रकार की तैयारी करनी पड़ती है। मोटे ऊनी वस्त्र presses तथा स्मूथ डिजाइन के योग्य होते हैं। 

कोमल ऊनी कपड़े सफेद तथा तकनीकों के लिए उपयुक्त होते हैं। 


हम यह जानेंगे कि कपड़े पर पेंटिंग कैसे और किस तरह से की जाती है उसके लिए सामग्री की प्रक्रिया कौन-कौन सी होती हैं। हाथ द्वारा कपड़े पर छपाई करने के लिए निम्न सामग्री की आवश्यकता होती हैं जैसे:-- 
1.कपड़े का चुनाव तथा सुरक्षा
2. पेंट का चुनाव
(I)  ब्रश का चुनाव 
(ii) कार्बन पेपर पर पेंसिल का चुनाव

3. एंब्रॉयडरी फरेम का चुनाव 
(I) एंब्रॉयडरी फरेम बदलना

4. डिजाइन छापने के तकनीक का चुनाव
(I)  ट्रेसिंग तकनीक
(ii) स्टैंसिलिंग तकनीक
(III)  डिजाइन को बड़ा करना 

5. डिजाइन, कलर का चुनाव
(I) मोनो फ्रेम डिजाइन 
(ii) कलर डिजाइन
(III) कलर मिक्सिंग

6. डिजाइन के प्रकार
(I)  ब्रश लाइन
(ii) लाइन डिजाइन,बेबी वर्क
(III) अक्षरों की बनावट,
(iv) ज्योमैट्रिक डिजाइन,
(v) वेजिटेबल डिजाइन, टाई एंड डाई

7. शैलियों व तकनीक का चुनाव
इसके अंतर्गत निम्न सामग्री आते हैं जैसे:-
शेडिंग, लाइट व शैडो, रफ वर्क और स्मूथ वर्क

8. विशेष प्रभाव चुनाव
(I)  3D पेंट्स
(ii) नग का काम
(III) सूखे ब्रश की तकनीक
यह सारे वर्ग हाथ द्वारा कपड़े पर छपाई करने के लिए सामग्री की आवश्यकता पड़ती है। 


मशीन द्वारा छपाई कई तरह से होते हैं उसके निम्न श्रेणी होती है 
जैसे:- 
1. रोटरी स्क्रीन प्रिंटिंग
2. कपड़े पर डिजिटल पेंटिंग
3. फ्रीहैंड फैब्रिक पेंटिंग
4. रोल पलिश हाथ प्रेस डेक्का प्रिंटिंग मशीन

इससे हमें ज्ञात होता है कि फैब्रिक पेंटिंग के द्वारा फैशन और भी निखरता है तथा किसी भी कपड़े पर तरह-तरह के प्रिंट होते हैं उससे वस्त्र देखने व पहनने में काफी आकर्षित लगते हैं फैब्रिक पेंटिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें तरह-तरह के पेंटिंग्स और बनावट से वस्त्र दिखने में बहुत ही खूबसूरत लगते हैं और फैशन क्षेत्र में इसकी भूमिका अहम होती है फैशन क्षेत्र में हमें कपड़ों में कई तरह की बनावट व प्रिंट देखने को मिलती है जो फैशन वर्ग को बढ़ावा देती है। 

जैसे किसी साधारण फैब्रिक पर  पेंटिंग करने से उस फैब्रिक की गुणवत्ता के साथ-साथ रंग रूप बनावट सब बदल जाता है। उस पेंटिंग की गई फैब्रिक उच्च श्रेणी वर्ग में आ जाते हैं जो फैशन उद्योग में चार चांद लगा देते हैं। 


स्पष्ट रूप से देखा जाए तो फैब्रिक पेंटिंग वह है जो कपड़े को  सुंदर और आकर्षक बनाता है। 
फैब्रिक पेंटिंग वह है जो पूर्ण रूप से वस्त्र को नया रूप देता है लोगो को लुभाता है। तथा आकर्षित करता है। 
किसी भी साधारण फैब्रिक पर पेंटिंगकर दी जाए तो उस फैब्रिक का मांग बढ़ जाता है तथा लोगो में ज्यादा पसंद किया जाता है । 

पुराने समय से लेकर अब तक फैब्रिक पेंटिंग का मांग होता आया है और अब के समय फैब्रिक पेंटिंग को और नए नए तरह का प्रिंट कर उस और फैशनेबल बनाया जा रहा है। तथा इतने तरह के फैब्रिक पेंटिंग होने लगे हैं कि लोगो मे कॉफी पसंद किया जा रहा है । तथा साधारण फैब्रिक को पेंटिंग द्वारा नया रूप प्रदान कर प्रिंटेड फैब्रिक बनाना उसे फैब्रिक पेंटिंग कहते है। 

फैब्रिक पेंटिंग फैशन उद्योग में इस प्रकार संबंध रखता है तथा जनता को अपनी और आकर्षित करना और लोगों में बहुत ही ज्यादा पसंद किया जाना उस वह फैशन वर्ग ट्रेंडिंग कहलाता है। फैशन उद्योग में फैब्रिक पेंटिंग का संबंध यह है कि किसी भी साधारण फैब्रिक पर तरह-तरह के डिजाइनर पेंटिंग द्वारा उससे फैब्रिक को और भी डिजाइनर बनाकर लोगों के सामने फैशनेबल रूप से प्रस्तुत करना आदि। 

फैब्रिक पेंटिंग फैशन को उभरता निखरता है इसलिए फैशन उद्योग में फैब्रिक पेंटिंग का संबंध उच्च होता है। तथा गहरा संबंध  होता है।  

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फैशन डिजाइनिंग कोर्स करने के बाद आर्मी जॉइन कर सकती हैं लड़कियां या नही इसके बारे में जाने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें। 👇


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फैशन डिजाइनिंग के बाद आर्मी ज्वाइन कर सकती है लड़की। A girl can join Army after fashion designing



           💐Army Fashion Designeing 💐

फैशन डिजाइनिंग के बाद आर्मी ज्वाइन कर सकती है लड़की।  A girl can join Army after fashion designing? 

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🍁Fashion designing  के बाद Army join कर सकती हैं या नहीं इसके बारे में जानने के लिए fashion के बारे मे और Army के बारे मे जानना होगा इसके लिए पूरे post को अंत तक पढ़े ।  

दोस्तों फैशन ऐसी प्रक्रिया है। जिसमें फैशन के अंदर हमें वो  सभी श्रेणी के फैशन देखने को मिलते हैं। 🍂
जैसे:- 

                    

🍁किसी भी तरह का force line हो या कोई भी राज्यों में पहने जाने वाले वस्त्र हो हम फैशन रूप देते हैं । और उन सभी पहनावे को Stylish look देते हैं। तथा लोगों के सम्मुख प्रस्तुत करते हैं। लोग उसे पसंद कर पहनने  के लिए आतुर हो जाते हैं। जब लोगों में यह ज्यादा से ज्यादा पसंद किया जाता है तो उन सही पोशाक को फैशनेबल के श्रेणी में रख दिया जाता है। 🍂

                  


🍁तथा कहने का यह तात्पर्य है फैशन श्रेणी एक ऐसी श्रेणी है जिसमें वह सभी लड़कियां जो फैशन कैरियर में जाना चाहती हैं उनका दिमाग सिर्फ उसी के प्रति उन्मुख होता है। इसके अलावा वह किसी और line  में जाने को सोच भी नहीं सकती। जो लड़कियां अपना लक्ष्य बना लेती हैं कि मुझे फैशन से ही अपना करियर बनाना है वह लड़कियां किसी और कैरियर के बारे में सोच भी नहीं सकती। तथा फैशन की प्रक्रिया पूरा होने के बाद वह अपना जीवन फैशन में ही बिताना चाहेंगीं । 🍂

                    

🍁 Army  ऐसी force line  है जहां व्यक्ति बिना कुछ सोचे समझे देश के लिए खुद को समर्पित कर देते हैं। तथा आर्मी में जाने वाले व्यक्ति सिर्फ देश के बारे में ही सोचते हैं उसके अलावा वह व्यक्ति किसी और लाइन में जाने तथा किसी भी चीज के बारे में सोच भी नहीं सकता। Army के लोग अपनी पूरी जिंदगी देश के हवाले समर्पित कर देते हैं। उसी प्रकार किसी भी कार्य लाइन में जुड़ने के बाद वह व्यक्ति उसी लाइन और अपनी करियर बनाने के बारे में सोचता है और खुद को समर्पित कर देते हैं। 

अर्थात कहने का यह तात्पर्य है फैशन कैरियर और आर्मी लाइन दोनों ही काफी अलग श्रेणी में आते हैं। 🍂

                  

🍁क्योंकि दोनों एकदम अलग लाइन है । फैशन की दुनिया में सभी तरह के पहनावे को Stylish रूप दे कर अपना सकते हैं । पर फैशन कैरियर से होकर Army line  में  जाना दोनों एक दूसरे के परे हैं। 

अधिक से अधिक लड़कियां फैशन क्षेत्र में कदम रखती हैं कुछ पहनावा  को लेकर कुछ फैशन को अपनाकर आदि तथा जो लड़कियां फैशन दुनिया में प्रवेश करती हैं और चरम सीमा तक पहुंचती है उससे होकर दूसरे लाइन में जाना उल्टी दिशा प्रदान करता है। 🍂

                           

🍁कहा जाता है जिस व्यक्ति को जिस लाइन में जाना होता है वह शुरुआत से ही उसी कैरियर की तैयारी करता है तथा जिस करियर कि आप तैयारी कर रहे हो और आपको दूसरी लाइन में जाना पड़े तो आपके लिए बहुत कठिन सा लगता है। तथा फैशन क्षेत्र से होकर Army Line में प्रवेश करना एकमात्र उल्टे घड़ी के समान दिशा में जाना। 🍂


🍁किसी भी तरह का कैरियर अपनाना या किसी भी लाइन में जाना सबसे बड़ा योगदान हमारे बौद्धिक क्षमता की होती है। जो हमें मंजूरी उसी चीज की देती है जिसमें हमारी दिलचस्पी अधिक होती है।
इन सभी बातों से यह ज्ञात होता है फैशन डिजाइन का कोर्स करने के बाद लड़कियों को Army join करना असंभव सा होता है। 

स्पष्ट कहा जाए तो लड़कियां फैशन क्षेत्र से होकर आर्मी ज्वाइन नहीं कर सकती। वही लड़कियां कर सकती है जिसमें उनकी रूच हो।  
एक लाइन से दूसरे लाइन में जाना तभी संभव हो पाता है जब लोगों की बौद्धिक क्षमता और रूचि उस लाइन के प्रति हो। 🍂


🍁 सुचना :-  कुछ लड़कीयॉ व उनके परिवार ऐसे भी होती हैं किसी भी तरह की मजबूरी के कारण वो उस लाइन में नहीं जा पाती जिसमें उनकी बौद्धिक क्षमता के साथ-साथ रुचि भी होती हो। अर्थात भविष्य में कभी भी मौका मिलने पर वह व्यक्ति उस लाइन में जाने की पूरी पूरी कोशिश करता है। और वह उस मुकाम को हासिल कर सकते हैं। 

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