( Detergent or Synthetic Detergent) अपमार्जक अथवा संश्लेषित अपमार्जक

                 
Detergent or Synthetic Detergent

Detergent or Synthetic Detergent) अपमार्जक अथवा संश्लेषित अपमार्जक :--


Detergent or Synthetic Detergent) अपमार्जक अथवा संश्लेषित अपमार्जक :--

🌿अभी तक हमने जाना धुलाई क्या है? धुलाई के उपकरण, जल, वस्त्रों के शोधक पदार्थ इन सभी के बारे में जाना, 
आज हम जानेंगे अपमार्जक अथवा संश्लेषित अपमार्जक क्या है तथा उसके बारे में कार्य क्या क्या है , अपमार्जकों की खोज एवं निर्माण, अपमार्जक के गुण, इन सभी के बारे में विस्तार से जानेंगे -- 

साबुन और डिटर्जेंट का इस्तेमाल तो सब करते हैं अपने घरों में लेकिन उसकी जानकारी बहुत कम लोगों को होती है। आइए हम जानते हैं अपमार्जक के इतिहास के बारे में ---🌿

अपमार्जक (Detergent) :-- वस्त्रों की सफाई करने वाले पदार्थों को अपमार्जक (detergent) कहते हैं। इसी  को शोधक भी कहा जाता है।

                     

🌿संश्लेषित :-- 

मिश्रित रसायनों को ही संश्लेषित अपमार्जक (synthetic detergent)  कहते हैं। वस्त्रों की सफाई के लिए प्रारंभ में साबुन का निर्माण हुआ । फिर उसमें और परिवर्तन समय-समय पर किया गया। आज हमारे सामने रिन, 555, सर्फ,टाइड जैसी अनेकों प्रकार की साबुन वस्त्रों की सफाई के लिए आ गए हैं। अनेकों साबुन जिनको घिस कर प्रयोग किया जाता है उसके साथ ही साथ आसानी से कार्य करने वाले, जिसमें श्रम भी कम लगता है ऐसे अपमार्जक (detergent)  मार्केट में आ गए हैं, जो घिसने वाले साबुन से अधिक श्रेष्ठ है। इनसे कपड़े धोना सरल तथा सहज तो है ही साथ ही कम समय तथा कम श्रम में धुलाई होती है। आजकल कपड़ों पर साबुन रगड़ कर धोना कोई भी पसंद नहीं करता है इसलिए Detergent को इस युग में वस्त्रों की धुलाई के लिए वरदान माना जाता है, इसके अतिरिक्त यह साबुन के मुकाबले सस्ते भी पड़ते हैं। डिटर्जेंट को पानी में डालकर जैसे ही हाथ से हिलाते हैं तो बाल्टी फेन से भर जाती है, कपड़े भिगोते-भिगोते वे झाग (फेन) कपड़ों के अंदर समाते जाते हैं और मेल को निकालने का काम शुरू कर देते हैं।🌿

            अपमार्जक क्या है तथा उसके कार्य


                

🌿अपमार्जक (detergent)

ठंडे व गर्म तथा कठोर और मृदु दोनों तरह के पानी में एक जैसा कार्य करते हैं। दोनों तरह के पानी में खूब अधिक झाग बनाते हैं । जिन वस्त्रों को गर्म पानी में धोने से नुकसान होता है वह ठंडे पानी में अच्छी तरह से साफ किए जा सकते हैं। 

आजकल डिटर्जेंट में कपड़े धोने के बाद उनमें नील या  विरंजक (bleach)  का प्रयोग करने की जरूरत भी नहीं होती है क्योंकि आधुनिक युग में डिटर्जेंट में ही यह सब भी डाला जाने लगा है। इसलिए इसको संश्लेषित डिटर्जेंट यानी कि Synthetic detergent  का नाम दिया गया है। 🌿

🌿जबकि साबुन की टिक्की से लगातार धोते-धोते वस्त्रों में अन्य वस्तुओं का इस्तेमाल करना पड़ता है। अन्यथा वस्त्र पीले पड़ जाते हैं। नील विरंजक जैसे पदार्थों की दूसरे रूप (substitute) के साथ अन्य लाभदायक बनाने वाले तत्व तथा जलमृदुकारक तत्व का भी इन डिटर्जेंट में समावेश किया जाता है। इसी के फलस्वरुप वस्त्रों की धुलाई अधिक अच्छे तरीके से होती है। इनका प्रयोग करने से धुलाई के बर्तन, वस्त्र, धुलाई मशीन तथा हाथों को भी किसी प्रकार की क्षति पहुंचाती है। 🌿

  

             अपमार्जको की खोज एवं निर्माण

🌿पहले वस्त्रों को रेत मिट्टी के साथ धोया जाता था। उसमें आई परेशानियों को दूर करने के लिए साबुन की खोज तथा निर्माण किया गया। जब उसको भी प्रयोग करते हुए बहुत समय हो गया तो उससे भी बेहतर कुछ बनाने का वैज्ञानिकों द्वारा प्रयत्न किया गया। यह प्रयत्न इसलिए किया गया कि hard water  मैं जब कपड़े धोए जाते थे तो साबुन का hard water मैं विद्यमान कैल्शियम से संपर्क होने पर रसायनिक क्रिया के फलस्वरुप एक चिपचिपा दही की तरह सफेद-सफेद पदार्थ निकलता था। जो वस्त्रों में कहीं भी या बर्तनों में चिपक जाता था।अतः साबुन के इस दोष को दूर करने के लिए कुछ नया बनाने की वैज्ञानिको के दिमाग में आया। इसी प्रयास के चलते डिटर्जेंट की खोज हो गई । 🌿

                  

🌿वैज्ञानिकों ने साबुन के दोषो से छुटकारा पाने के लिए कार्बनिक मिश्रणों को  डिटर्जेंट के नाम से प्रस्तुत किया। जनता में जब बहुत पसंद किया गया तो धीरे-धीरे साबुन के स्थान पर डिटर्जेंट ही उसका उत्तम विकल्प मान कर अपनाया जाने लगा। 1940 के आसपास घर-घर में डिटर्जेंट ने प्रवेश कर लिया था। प्रारंभ में फ्लैक्स (flakes)  के रूप में भी आता था। 🌿
                        

🌿अब इसका उत्पादन बढ़ाया गया। इन डिटर्जेंट के मुख्य गुण थे-- सहज प्रयोग, कम मूल्य, द्रुत क्रियाशीलता, कम समय, कम श्रम तथा सरलता से खंगाल कर साफ वस्त्र प्राप्त करना।🌿
 
🌿निर्माण प्रक्रिया:- यह तो सभी जानते हैं कि डिटर्जेंट्स मूल रूप से कार्बनिक रसायन हैं । इसके निर्माण की प्रक्रिया विशिष्ट है जोकि साबुन निर्माण से सरल है। इसका निर्माण मूल रूप से पेट्रोलियम उत्पादन से होता है। जिसे सल्फेटेड या सल्फोनेटेड किया जाता है। यह कार्य रसायन कंपनियों में वही के कर्मचारियों के द्वारा किया जाता है। इन रसायनों को डिटर्जेंट निर्माताओं के पास भेज दिया जाता है यहां पर सल्फेटेड पदार्थों को रिएक्टर कैटल में डाला जाता है और घोटने वाले यंत्रों से इनको घोटा जाता है। घोटने के परिणाम स्वरूप इसमें उसमें पैदा होती है। उसे ठंडा रखने की व्यवस्था वहां होती है। अब यह मिश्रण गहरे रंग के तैलीय पिंड के रूप में होता है। यह कार्य न्यूट्रलाइजर में किया जाता है। इस प्रकार इस में ताप बहुत उत्पन्न हो जाता है। जिसे ठंडा भी साथ-साथ किया जाता है।  इस प्रकार इसके तैयार गुणों व कीमत में भी अंतर आ जाता है। अभी इस मिश्रण को सुखाने  वाले टावर पर छिड़का जाता है। इस प्रकार सुख कर या पाउडर के रूप में आता है क्योंकि इसमें विद्यमान जल का वाष्पीकरण हो जाता है। इस प्रकार यह डिटर्जेंट हमारे सामने डिब्बों में या थैलियों में आता है। 🌿

🌿यह दो रूपों में हमारे सामने आता है। एक तो light duty तथा दूसरा heavy duty डिटर्जेंट ।  light duty  को replace करने के लिए पहले बना था। किंतु इसमें सफाई का गुण कम आया था। बाद में सफाई के गुण बढ़ाने के लिए ही heavy duty बनाया गया। इसमें कुछ जटिल फास्फेट बढ़ाए गए जिससे कि इसकी स्वस्थ करने की क्षमता बढ़ गई थी। हर प्रकार के मेले वस्त्रों को अब यह डिटर्जेंट साफ करने लगे थे। 🌿

🌿इस प्रकार आज का डिटॉर्जन जो कई नामों से हमारे घरों में प्रयोग होता है उसके इतिहास के बारे में जाना। 🌿

अपमार्जक ओके गुण ( Qualities of Detergent) :-- 

🌈डिटर्जेंट ठंडे, गर्म तथा कठोर व मृदु दोनों तरह के पानी में घुलनशील हैं, फेन या झाग उठाने में सक्षम है तथा वस्त्रो की पूर्णत: सफाई करने की क्षमता रखते हैं। 🌿

इनमें आद्ररक क्षमता तथा परिक्षेपण (wetting and dispersing property) का प्रयाप्त गुण होता है ।

सरफेस दबाव (surface tension)  को कम करते हैं। 

साबुन से अधिक वस्त्रों को स्वच्छ करने की तथा शोधक क्षमता होती है। 

डिटर्जेंट में साफ किए गए वस्त्रों को खंगालना सरल होता है। 

प्रयोग में डिटर्जेंट आसान है। 

धुलाई में समय व श्रम दोनों की बचत होती है। 

साबुन से सस्ते होते हैं। 

डिटर्जेंट से स्वच्छ किए वस्त्रों में मेैल वापस नहीं चिपकता है।

एक गैलन पानी में एक चम्मच डिटर्जेंट पाउडर ही काफी होता है। 
हाथों, धुलाई के बर्तन वह मशीन के लिए लाभकारी है। 

इनके द्वारा तेल व वसा आसानी से वस्त्रों से अलग हो जाती है। 
कठोर जल में भी डिटर्जेंट की जरूरत नहीं होती है। 

नान सैलूलोजिक मानव निर्मित रेशों से भी बने वस्त्रों पर इसका प्रतिस्थैतिक प्रभाव पड़ता है। 

इनमें हर तरह के रेशों के वस्त्र धोने से खराब नहीं होते हैं। 

बट्टी घिसने के समय भी बचत होती है तथा छोटी बट्टी होने पर उसमें लगने वाले श्रम की भी बचत होती है। 

यह पूर्णत: छार रोहित होते हैं। अतः किसी भी वस्त्र पर इनका प्रभाव गलत नहीं पड़ता है।

जब कठोर जल में साबुन का मेल जब जल में विद्यमान कैल्शियम के साथ होता है तो चिपचिपा जैसा सफेद पदार्थ निकलता है। डिटर्जेंट के द्वारा ऐसा कुछ भी नहीं होता है। 

इस प्रकार डिटर्जन के इतने अधिक लाभ हैं जो कि जनसाधारण में धीरे-धीरे पता लगते हैं सभी इन्हीं का प्रयोग करने लगे हैं। वास्तव में अपमार्जक मनुष्य के हितैषी के रूप में ही अब समाज में स्थापित हो गए हैं। 🌿


वस्त्रों के शोधक पदार्थ ⬇⬇⬇⬇⬇⬇⬇⬇⬇



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